वात आ वातु भेषतं शंभु मयोभु नो हृदे।
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ऋग्वेद के दसवें मंडल की यह ऋचा बताती है कि शुद्ध वायु ही प्राणवायु है, जो जीवन तत्व बनकर हमारे भीतर रहती है। यानी वायु की शुद्धता के साथ छेड़छाड़ खतरनाक हो सकती है। मशहूर शोध पत्रिका द लैंसेट की एक हालिया रिपोर्ट भी यही कहती है। द लैंसेट की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 2019 के दौरान भारत में 16.7 लाख मौतों के लिए वायु प्रदूषण ही जिम्मेदार है।
इनमें 50 फीसद (851,698) मौतें महज पांच राज्यों में ही हुई हैं। ये पांच राज्य हैं उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और राजस्थान। शोधकर्ताओं के मुताबिक वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों का यह आंकड़ा पिछले साल देश में हुई कुल मौतों का 18 फीसद है।
ऐसा नहीं है कि वायु प्रदूषण की मार से सिर्फ जान-माल का नुकसान हो रहा है। इसका बुरा असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। 2019 में वायु प्रदूषण से हुई मौतों और बीमारियों के कारण भारत के सकल घरेलू उत्पाद को 2.60 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। यह रकम देश की जीडीपी का करीब 1.4 फीसद है।
वैसे हैरत की बात है कि वायु प्रदूषण का सबसे बुरा असर उत्तर प्रदेश और बिहार पर दिखा है। उत्तर प्रदेश को राज्य के जीडीपी का 2.2 फीसद और बिहार को अपने जीडीपी का 2 फीसद हिस्सा वायु प्रदूषण के कारण गंवाना पड़ा है, लेकिन यह हैरत की बात है क्योंकि दोनों की राज्यों में उद्योगों की स्थिति के लिहाज से प्रदूषण का स्तर इतना ऊंचा हो सकता है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल ही है।
देश में वायु प्रदूषण की स्थिति के बारे में लैसेंट की रिपोर्ट ‘द इंडिया स्टेट लेवल डिजीज़ बर्डन इनिशिएटिव’ वायु प्रदूषण के घर के अंदर और बाहरी स्रोतों से होने वाले स्वास्थ्य और आर्थिक असर की बात करती है। दो दिन पहले 25 फरवरी को सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की ओर से जारी स्टेट ऑफ इंडियाज़ एनवायरमेंट रिपोर्ट 2021 में भी ऐसी ही चिंताएं जाहिर की गई हैं।
lancetलैसेंट की रिपोर्ट के मुताबिक:
घरेलू वायु प्रदूषण के कारण रोगों का बोझ कम हो रहा है। हालांकि, बाहरी या परिवेशीय वायु प्रदूषण से रोगों में वृद्धि हो रही है। 1990 से 2019 के बीच देश में घरों के भीतर वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में 64.2 फीसद की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं, बाहरी परिवेश में वायु प्रदूषण से मृत्यु दर इस अवधि में 115 फीसदी बढ़ी है।
दूसरी तरफ एसओई 2021 का विश्लेषण यह बताता है कि कम औद्योगिक राज्यों यानी उत्तर प्रदेश और बिहार में वायु प्रदूषण जानलेवा कैसे बना। उसकी रिपोर्ट के मुताबिक “वायु प्रदूषण का शिकार खास तौर से ऐसे राज्य हैं जहां गरीब अधिक हैं और जहां बच्चों और उनकी मांओं के लिए कुपोषण एक बड़ी लड़ाई है। ऐसे राज्यों में वायु प्रदूषण ज्यादा हमलावर है।”
एसओई 2021 के मुताबिक वायु प्रदूषण जनित मौतों में यूपी सबसे ऊपरी पायदान पर है। इसमें पांच साल से कम उम्र के बच्चों में निचले फेफड़ों के संक्रमण सबसे ज्यादा मौत का कारण बनते हैं।
प्रदूषण के कारण क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मनरी रोग, श्वसन तंत्र में संक्रमण, फेफड़े का कैंसर, हृदयरोग, स्ट्रोक, मधुमेह, नियोनेटल डिसऑर्डर और मोतियाबिंद जैसी बीमारियां भी तेजी से बढ़ी हैं। असल में, बच्चों में निचले फेफड़ों के संक्रमण और वायु प्रदूषण के घटक पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 के बीच एक गहरा रिश्ता है। पांच साल तक के बच्चों में निचले फेफड़े का संक्रमण जितना प्रभावी है उतना उनसे बड़ी उम्र के बच्चों में नहीं।
इन रिपोर्ट्स में बताया गया कि वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में 36 फीसद घरेलू प्रदूषण से होती हैं। जाहिर है इसकी एक बड़ी वजह चूल्हे से निकलने वाला धुआं भी होता है।
चूल्हों का कम प्रदूषणकारी होना बेहद जरूरी है। साथ ही, हमें देश में धूल प्रबंधन पर भी ध्यान देना होगा क्योंकि पीएम 2.5 भी बाहरी वायु प्रदूषण का बड़ा हिस्सा है जो वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में 58 फीसद योगदान देता है।