छान घोंट के: स्‍वामी अग्निवेश को काशी से आखिरी सलाम

2014 में जब कैलाश सत्यार्थी को नोबेल शांति पुरस्कार मिला, तो स्वामी जी ने बिहार से मुझे फ़ोन कर के करीब दो घंटे लम्बी बात की। मैंने स्वामी जी से कहा कि “आप विस्तारवादी देशो के खिलाफ हैं, इसलिए आपको Right Livelihood award मिला जबकि कैलाश जी को नोबेल।”

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पंचतत्‍व: सुबर्णरेखा की लड़खड़ाती जीवनरेखा

स्वर्णरेखा नदी में सोने के कण पाये जाते हैं, पर उद्योगों और घरों से निकले अपशिष्ट के साथ खदानों से निकले अयस्कों ने इस नदी के जीवन पर सवालिया निशान लगा दिया है. यह नदी सूखी तो झारखंड, बंगाल और ओडिशा में कई इलाके जलविहीन हो जाएंगे

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आर्टिकल 19: आजतक नहीं, रिपब्लिक! जब खालिस दुर्गंध यहां मिले तो कोई वो क्‍यूं ले, ये न ले…

आजतक की ये दुर्गति इसलिए हुई है कि अरुण पुरी ने अर्णब गोस्वामी बनने में पूरी ताकत झोंक दी। उसके पास न अपनी रिपोर्टें थीं, न अपना कोई पत्रकारीय विमर्श और न ही कोई स्वतंत्र सोच। आजतक बस ईवेंट जर्नलिज्म कर सकता था।

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तिर्यक आसन: विकास की रेसिपी और अपनी बीट से पौधे उगाने का अस्तित्‍ववादी हुनर

कभी रुपये की कीमत गिरने से प्रधानमंत्री अपनी गरिमा खोते थे, अब नहीं खोते। कभी जनता और विपक्ष पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि की आग से झुलस जाते थे, अब नहीं झुलसते। पेट्रोल की धीमी आँच पर पक रही विकास की रेसिपी में अखिल भारतीय मंत्रिमंडल के खानसामों द्वारा प्रतिदिन डाले जाने वाले धर्म के चटपटे मसालों ने कीमतों को पचाना सिखा दिया है।

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बात बोलेगी: महापलायन की ‘चांदसी’ तक़रीरों के बीच फिर से खाली होते गाँव

लॉकडाउन की लंबी अवधि को पार करते हुए, अनलॉक की भी एक लंबी अवधि पूरी करने के बाद, आज सच्चाई ये है कि गाँव लौटे 100 में से 95 लोग शहरों और महानगरों की ओर लौट चुके हैं। उन्हें कोई मलाल नहीं है कि शहरों और महानगरों ने कैसी बेरुखी दिखलायी।

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राग दरबारी: GDP, बेरोज़गारी, बीमारी पर जनता की चुप्‍पी का राज़ 200 सीटों में छुपा है!

जहां कहीं भी किसी भी राजनीतिक दल ने अपनी निर्भरता कॉरपोरेट मीडिया से हटाकर अपने मीडिया संस्थानों पर कर ली है, उसकी हालत वहां इतनी खराब नहीं है. महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश व तेलंगाना को उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है.

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तन मन जन: पोषण मतलब 100 करोड़ कुपोषितों का चमकता बाज़ार

भुखमरी और कुपोषण को ख़तम करने के नाम पर आज कल कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं सक्रिय हैं। बाज़ार में मुनाफ़े के लिए खड़ी ये कम्पनियां भूख और कुपोषण के खिलाफ अनेक कार्यक्रम भी चला रही हैं। इनके खाद्य व्यवसाय में सक्रिय होने के बाद कुपोषण के मामले और बिगड़े ही हैं।

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देशान्‍तर: यूरोप के आखिरी तानाशाह को एक शिक्षिका की चुनौती

बेलारूस की जनता डर के साये से निकलकर हज़ारों की संख्या में पहली बार सड़कों पर है। रोजाना हो रहे प्रदर्शनों के कारण हालात तेजी से बदल रहे हैं और पूर्व सोवियत संघ का सबसे मजबूत सोवियत, जहां राष्ट्रपति लुकाशेंको का एकक्षत्र राज पिछले 26 साल से कायम था, ख़त्म होने के कगार पर है।

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गाहे-बगाहे: कुछ नहीं है तो अदावत ही सही!

महाभारत अनेक झूठी बातों का पुलिंदा ही है, बेशक इस झूठ में पुरुष-श्रेष्ठता के कई महान और घृणित प्रयास निहित हैं और स्त्रियां सबसे कमजोर जीव हैं। उन्होंने आँखों पर पट्टी बांधने, सती होने, यौन-शेयरिंग करने और मुसलसल गुलामी व बलात्कार झेलने के अलावा किया ही क्या है?

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