तिर्यक आसान: आपका गौरव तो आर्थिक उदारीकरण के समय से ही ठंडा हो चुका है!

आज का विषय है- गौरव। घर का गौरव। क्षेत्र का गौरव। जिले का गौरव। प्रदेश का गौरव। देश का गौरव। गॉडफादर बनने का गौरव। गॉडमदर बनने का गौरव। सबसे बड़ा- पांडुलिपि की तकिया का गौरव।

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बात बोलेगी: ‘अपहृत गणराज्‍य’ की मुक्ति की सम्‍भावनाओं का उत्‍तरायण!

बदलाव ऐसे ही होता है। पहले कुछ बदलते हैं, फिर बहुत लोग बदलते हैं। एक लहर दूसरे के लिए जगह बनाती है, उसे पैदा करती है। लहरें अब शांत और ठहर चुके तालाब में हलचल मचा चुकी हैं। हम उन्हें उठते गिरते देख रहे हैं।

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पॉलिटिकली Incorrect: सिंघु बॉर्डर का लगातार उठता मंच और चढ़ता इक़बाल

इस आंदोलन में 26 जनवरी को ‘किसान गणतंत्र दिवस परेड’ एक ऐसा मुकाम साबित हो सकता है जहां से आंदोलन एक नई ऊंचाई हासिल करेगा, बशर्ते यह मोर्चे की रणनीति के अनुसार सम्पन्न हो पाए। तब सिंघु पर लगे इस मंच का इक़बाल कुछ और फुट ऊंचा हो जाएगा।

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तन मन जन: कोरोना से बचे तो अब बर्ड फ्लू की दहशत!

बर्ड फ्लू भारत के लिए कोई नया रोग या संक्रमण नहीं है फिर भी हर साल इस मौसम में उसकी चर्चा चल निकलती है। वर्ष 2004, 2006, 2016 में भारत में बर्ड फ्लू की चर्चा थी। बड़े पैमाने पर मुर्गे-मुर्गियों को मारा भी गया था। महामारी जैसी स्थिति नहीं बनी थी फिर भी महामारी जैसी दहशत फैला दी गई थी और देश में व्यापार का अच्छा नुकसान हुआ था।

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पंचतत्व: आखिरकार सबसे बड़ी अदालत में यमुना की सुनवाई

केन्द्रीय जल आयोग का प्रस्ताव कहता है कि यमुना धारा के मध्य बिन्दु और एकतरफ के पुश्ते के बीच की दूरी कम-से-कम पांच किमी रहनी चाहिए, लेकिन हकीकत यह है कि मेट्रो, खेलगांव, अक्षरधाम जैसे सारे निर्माण सुरक्षा से समझौता कर बनाए गए हैं.

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दक्षिणावर्त: आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास…

हमने ऐसा महान देश बनाया है, जहां हरेक वह आदमी वह काम जरूर ‘नहीं’ कर रहा है, जिसके लिए उसे तनख्वाह दी जाती है, जिसकी उससे अपेक्षा है। हां, वह हरेक वह काम जरूर कर रहा है, जो किसी दूसरे के क्षेत्र का है औऱ जिसमें उसकी कोई विशेषज्ञता नहीं है।

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तिर्यक आसन: फ़ोटो-पोस्टर में जीवन काटती कमबलियों की आवारा फौज

आवारा फौज के कुछ सदस्य भोजन करने जाते हैं, अछूतों के घर। जब वे अछूतों के घर भोजन करने जाते हैं, तब अखबार में उनकी उदारता, सहिष्णुता के फोटो आते हैं। अगले दिन ‘फैक्ट चेक’ भी आता है- भोजन बाहर से मंगवाया गया था।

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बात बोलेगी: हर शाख पे उल्लू बैठे हैं लेकिन बर्बाद गुलिस्ताँ का सबब तो कोई और हैं…

ये खोज जब तक पूरी नहीं होगी तब तक बेचारे शाख पर बैठे उल्लुओं को ही ‘हर हुए और किए’ का दोषी माना जाएगा। बड़ी चुनौती- शुरू कहाँ से करें? घर से? पड़ोस से? गाँव से? समाज से? प्रांत से या देश से? क्योंकि गुलिस्ताँ का मतलब अब भी काफी व्यापक था।

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तन मन जन: इम्यूनिटी क्या वैक्सीन से ही आएगी?

वैक्सीन का इन्तजार कर रहे लोगों को भी मेरा यही संदेश है कि इम्यूनिटी का वैक्सीन डोज यदि सुरक्षित है तो जरूर लीजिए लेकिन उससे ज्यादा जरूरी है कि आप प्राकृतिक इम्यूनिटी के लिए प्राकृतिक जीवन शैली में लौटिए। आपकी टिकाऊ इम्यूनिटी प्रकृति ही दे सकती है। इसलिए प्रकृति को बचाइए ताकि आप भी बच सकें।

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पॉलिटिकली Incorrect: रैदास के बेगमपुरा में किताबों के लंगर भी होते, काश!

दिल्‍ली के बॉर्डरों पर रैदास के असंख्य बेगमपुरा उग आए हैं। बस इस बेगमपुरा में एक चीज़ की कमी खलती है- किताबों की। सिंघु पर कुछ लोगों ने मिल कर भगत सिंह लाइब्रेरी बना दी है, जहां लोग बैठकर पढ़ते हैं। एक-दो किताबों की दुकानें भी अस्थाई डेरे में शामिल हो गई हैं।

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