अरविंद केजरीवाल की हालिया चुनावी हार केवल एक राजनीतिक पराजय नहीं है, बल्कि यह उनके नैतिक और राजनीतिक पाखंड की हार भी है। यह वह समय है जब हमें यह समझने की जरूरत है कि अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी की नीतियों का असल उद्देश्य क्या है।
अरविंद केजरीवाल ने खुद को एक नायक, एक आम आदमी का नेता और भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने वाले योद्धा के रूप में पेश किया था, लेकिन इस राजनीतिक व्यक्तित्व ने बहुत जल्द अपनी असली रंगत दिखाई है। उनके द्वारा चलाया जा रहा राजनीति का मॉडल अब स्पष्ट रूप से एक ‘गैंग’ और ‘रैकेट’ के लोकतंत्र की तरह दिखने लगा है, जो लोकतांत्रिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर अपने स्वार्थ की पूर्ति कर रहा है। यह केवल उनके लिए सत्ता की कुर्सी की राजनीति नहीं है, बल्कि देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ गहरी साजिश है।
मैंने 24 अगस्त 2011 को अन्ना हजारे जी को लिखे खुले पत्र में ही इस आंदोलन की कमजोरियों को उजागर कर दिया था। उस समय भी यह स्पष्ट था कि यह आंदोलन किसी वास्तविक बदलाव की कोशिश नहीं, बल्कि सत्ता में आने का एक साधन भर था। 2014 में जब मैंने केजरीवाल को ‘मुसोलिनी’ कहा, तो कई एनजीओ और कार्यकर्ताओं ने मुझ पर हमले किए।
राजनीतिक खेल, व्यक्तिगत निशाना
अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली सरकार ने मेरे खिलाफ जो आरोप लगाए, वह मात्र व्यक्तिगत नहीं थे, बल्कि यह एक बड़े राजनीतिक खेल का हिस्सा थे। 2015 में मेरे खिलाफ झूठे आरोपों की साजिश रची गई, जो न केवल मेरे संगठन पीपुल्स विजिलेंस कमेटी ऑन ह्यूमन राइट्स (PVCHR) के काम को रोकने की कोशिश थी, बल्कि यह उस प्रणाली को कमजोर करने की एक चाल थी जो न्याय, समानता और मानवाधिकार के लिए कार्य कर रही थी।
केजरीवाल के शासन में मेरे सहित कई ऐसे उदाहरण सामने आए हैं, जहां उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वियों और आलोचकों को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाया। यह सीधे तौर पर लोकतांत्रिक मूल्यों का उल्लंघन है क्योंकि लोकतंत्र में आलोचना और विरोध की स्वतंत्रता सबसे अहम होती है। इस तरह के दमनकारी कदमों ने यह साफ कर दिया कि केजरीवाल का लोकतंत्र केवल उनके खुद के राजनीतिक हितों को साधने का एक साधन बन चुका था, न कि एक सशक्त और सक्रिय लोकतंत्र के रूप में।
अप्रैल 2015 में मुझ पर झूठे आरोप लगाए गए, जो एक कथित घटना पर आधारित थे, जो मई 2013 में हुई बताई गई। यह स्पष्ट रूप से एक राजनीतिक षड्यंत्र था, जिसका उद्देश्य मुझे मानवाधिकारों के लिए मेरी आवाज उठाने से रोकना था।
जबसे इस मामले की शुरुआत हुई है, 2017 से यह मामला तीस हजारी कोर्ट में लटका हुआ है। अदालत में लगातार तारीखें बढ़ाई जाती हैं और मामले की कोई सुनवाई नहीं हो रही है। आरोपियों की तरफ से लगातार अनुपस्थिति और न होने वाले तर्कों ने न्याय प्रक्रिया को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
मेरे खिलाफ आरोपों के बावजूद, अदालत में अब तक कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं की गई है, और आरोपियों की अनुपस्थिति को ध्यान में रखते हुए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। यह मामला 2017 से दिल्ली के तिस हजारी फास्ट ट्रैक कोर्ट में लंबित है। 69 सुनवाइयों के बावजूद, शिकायतकर्ता लगातार गैरहाजिर हैं। सभी अभियोजन साक्ष्य पूरे हो चुके हैं, फिर भी मामला लंबित है। अक्टूबर 2023 में शिकायतकर्ता ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से यह दावा किया कि वह अपने छोटे बच्चे के कारण भारत नहीं आ सकती। उनके सोशल मीडिया पोस्ट बताते हैं कि वह यूरोप और मध्य पूर्व की यात्राएं कर रही हैं।
सरकार द्वारा नियंत्रित अभियोजन विभाग में बार-बार बदलाव कर न्याय प्रक्रिया को और बाधित किया जा रहा है। अक्टूबर 2023 के बाद से तीन अलग-अलग सरकारी वकीलों ने समय मांगा, जिससे मामले को अनावश्यक रूप से लटकाया जा रहा है।
केजरीवाल और उनकी सरकार ने मेरे खिलाफ जो आरोप लगाए, उनके परिणामस्वरूप कानूनी प्रक्रिया पूरी तरह से ठप हो गई। इस मामले की सुनवाई लगातार टलती रही और दिल्ली की अदालत में अभियोजन ने केवल न्याय में देरी का खेल खेला। विदित है कि अभियोजन और राज्य आयोग केजरीवाल के सरकार के अधीन थे। यह केवल मेरे लिए नहीं, बल्कि पूरे न्यायिक तंत्र के लिए शर्मनाक है।
संस्थाओं के दुरुपयोग के खिलाफ लड़ाई
यह स्पष्ट है कि जब सत्ता के लोग न्यायिक संस्थाओं का दुरुपयोग करते हैं, तो न्याय की प्रक्रिया में विलंब और अवरोध पैदा होते हैं। यह इस बात को दर्शाता है कि हमारी अदालतें और न्यायिक प्रणाली केवल निष्पक्ष नहीं रहतीं, जब सत्ता के लोग अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए संस्थाओं का दुरुपयोग करते हैं।
यह अरविंद केजरीवाल की असलियत को सामने लाता है। उनका दावा कि वह भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ हैं, अब बेमानी साबित होता है। जब सच्चाई और न्याय के पक्ष में खड़ा होने वाला एक कार्यकर्ता उनके रास्ते में आया, तो उन्होंने उसे अपने राजनीतिक दबावों से चुप कराने की कोशिश की। यह कार्रवाई उनकी खोखली राजनीति का प्रमाण है, जो केवल अपने व्यक्तिगत हितों और सत्ता के लालच में समर्पित है।
मेरे खिलाफ इन सभी साजिशों के बावजूद, मैं यह स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि सच और न्याय की हमेशा जीत होती है। यह संघर्ष केवल मेरी व्यक्तिगत लड़ाई नहीं है, बल्कि वह समुदायों और वर्गों की लड़ाई है, जिन्हें हमेशा नजरअंदाज किया गया। मुझे विश्वास है कि इस संघर्ष की सफलता हमें हमारे समाज में बड़े बदलाव की ओर ले जाएगी। यह केवल मेरी आवाज की जीत नहीं होगी, बल्कि उन सभी लोगों की भी होगी जो निरंतर अन्याय और शोषण के खिलाफ खड़े हो रहे हैं।
अरविंद केजरीवाल की राजनीति ने यह सिद्ध कर दिया है कि वह असली लोकतंत्र की आड़ में तानाशाही की ओर बढ़ रहे हैं। उनका खुद का आचरण और उनकी पार्टी की कार्यशैली इस बात को साबित करती है कि उनके लिए लोकतंत्र केवल एक सशक्त अभियान नहीं, बल्कि एक राजनीतिक खेल बन चुका है। वह लोकतंत्र को एक भ्रामक परिधि में बदलने का काम कर रहे हैं, जहां सत्ता की भूख और अपनी राजनीति के फायदे के लिए हर मानवीय और लोकतांत्रिक मूल्य को ताक पर रखा जा रहा है। यह वह लोकतंत्र नहीं है, जिसका सपना हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने देखा था, बल्कि यह राजनीति अपने लाभ के लिए देश को खींच कर अपने जाल में फंसा रही है।
उनके कार्यकाल में दिल्ली सरकार के अधीन कई संस्थाओं का दुरुपयोग किया गया। विशेष रूप से, वे संस्थाएं जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुदृढ़ करने और भ्रष्टाचार की निगरानी करने का काम करती हैं, उन्हें केजरीवाल और उनकी पार्टी ने अपने हितों के लिए मोड़ दिया। उदाहरण के लिए, दिल्ली सरकार ने जो कदम उठाए, उसमें महिला आयोग और अभियोजन जैसी संस्थाओं का इस्तेमाल अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ किया। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वह लोकतंत्र के बजाय सत्ता के साथ अपनी निजी राजनीति करने की कोशिश कर रहे हैं।
यह एक ऐसा संघर्ष है, जो केवल मेरी नहीं, बल्कि समाज के सबसे कमजोर वर्गों की आवाज की जीत है। अरविंद केजरीवाल की हार और उनकी खोखली राजनीति हमें यह सिखाती है कि सत्ता और राजनीति में जब तक नैतिकता नहीं होती, तब तक समाज में वास्तविक बदलाव नहीं आ सकता। हमारे संघर्ष में केवल सत्य और न्याय का ही रास्ता होगा। अब हम यह साबित करेंगे कि किसी भी सत्ता की दमनकारी ताकतें कभी भी हमारी आवाज को दबा नहीं सकतीं। हम अपने समाज को न्याय, समानता और मानवाधिकार के सिद्धांतों पर आधारित देखेंगे।
खोखली नैतिकता का विफल होना
अरविंद केजरीवाल की राजनीति में जो खोखलापन है, वह धीरे-धीरे सबके सामने आ रहा है। उन्होंने एक बार “सच्चे लोकतंत्र” का सपना दिखाया, लेकिन असल में उनकी राजनीति में कोई नैतिकता नहीं है।
जब मैं और मेरे जैसे सैकड़ों मानवाधिकार कार्यकर्ता समाज में बदलाव लाने के लिए संघर्ष कर रहे थे, तब उन्होंने सत्ता का दुरुपयोग किया। मेरे खिलाफ झूठे आरोप लगाए गए और मेरे खिलाफ राजनीतिक अभियान चलाया गया। यह एक ऐसी साजिश थी जिसका उद्देश्य केवल मेरे काम को बाधित करना नहीं था, बल्कि उस सत्य को दबाना था जो मैं और मेरा संगठन पूरी दुनिया के सामने रख रहे थे।
अरविंद केजरीवाल ने हमेशा भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ बोलने का दावा किया है, लेकिन जब बात खुद उनके राजनीतिक हितों की आई, तो उन्होंने पूरी तरह से इन सिद्धांतों का उल्लंघन किया। मेरे खिलाफ उन आरोपों का मुख्य उद्देश्य मेरी आवाज को दबाना और समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा करने वाले संघर्ष को तोड़ना था। यह आरोपों का झूठा होना केवल मेरी निंदा का मामला नहीं था, बल्कि यह मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ किए गए उत्पीड़न का उदाहरण था।
अरविंद केजरीवाल ने जो खुद को एक जनप्रतिनिधि और आम आदमी का नेता माना था, वह दरअसल केवल आलोचना और विरोध को दबाने के लिए तैयार थे। जिन लोगों ने उनके फैसलों और उनकी नीतियों पर सवाल उठाया, उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाइयां की गईं। यह किसी भी लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत है क्योंकि जब आलोचना और विरोध को दबाने की कोशिश की जाती है, तो वह लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करता है।
आज के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में, जहां अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार की नीतियां पूरी तरह से विफल साबित हो रही हैं, हमें यह याद रखना होगा कि हमारा संघर्ष केवल सत्ता के खिलाफ नहीं, बल्कि एक पूरी व्यवस्था और समाज के खिलाफ है, जो कभी भी न केवल गरीबों, बल्कि हर नागरिक को न्याय दिलाने में विफल रही है। यह संघर्ष जारी रहेगा, और हम अपने समाज को एक बेहतर भविष्य देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
सत्य को दबाया जा सकता है, हराया नहीं। आज उनकी पराजय इस सत्य की पहली विजय है।
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