अपने सपने के लिए एक युवा का संघर्ष और टीआरपीखोर टीवी चैनल


पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक लड़के का वीडियो वायरल हो रहा है। यह लड़का उत्तराखंड का रहने वाला है और नोएडा में जॉब करता है। अपने एक वीडियो में प्रदीप ने अपील की है कि वायरल होने के बाद से उसकी ज़िंदगी अस्त-व्यस्त हो गई है। वह अपनी सामान्य जिंदगी भी नहीं जी पा रहा है। 

सबसे पहले यह वीडियो टीवी पत्रकार विनोद कापड़ी ने अपने ट्विटर हैंडल पर अपलोड किया था। वहीं से फिर यह वीडियो सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफॉर्म्स पर घूमने लगा। लड़के का नाम है प्रदीप मेहरा। उम्र 19 साल है। उसके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और उसकी मां बीमार है। इन जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए वह नोएडा के सेक्टर 16 स्थित मैकडॉनल्ड्स में जॉब करता है और रोज पैदल दौड़ता हुआ अप-डाउन करता है। वजह पूछे जाने पर लड़का बताता है कि उसका सपना आर्मी में जाना है। काम की व्यस्तता के कारण उसे अलग से दौड़ने का वक्त नहीं मिलता इसलिए वह ऑफिस जाते और आते समय ही दौड़ कर अपनी प्रैक्टिस करता है।

प्रदीप का वीडियो प्रेरणादायक है। लोग उसके जज़्बे की दाद दे रहे हैं और सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रियाएं जाहिर कर रहे हैं। जैसे ही यह वीडियो वायरल हुआ नोएडा के टीवी चैनल उसके पीछे दौड़ पड़े। अपने-अपने स्टूडियो में घण्टों बिठाकर उसका इंटरव्यू करने लगे। कोई उसको स्टूडियो में लाइव दौड़ा रहा है तो कोई उससे बेतुके सवाल-जवाब कर रहा है।

किसी टीवी चैनल को इससे कोई मतलब नहीं है कि उसे जॉब भी करनी होती है। समय पर घर भी जाना होता है। बीमार माँ की देखभाल भी करनी होती है। उन्नीस साल का यह लड़का अपने लक्ष्य से भले भटक जाए लेकिन ये टीवी चैनल वाले अपने टॉप टीआरपी वाले लक्ष्य से नहीं भटकेंगे।

उसने कहा है कि “मैं ज्यादा मशहूर नहीं होना चाहता। इससे मैं अपने लक्ष्य पर फोकस नहीं कर पाऊंगा। मैं अकेले मेहनत करना चाहता हूँ। शोर कामयाबी का होना चाहिए। लगातार फोन और वीडियो से मेरा ध्यान बंट रहा है जिससे मैं बचना चाहता हूं।”

इस कहानी के पीछे जो असली सवाल हैं उसे यह मीडिया नहीं पूछ रहा। आखिर क्यों उसे 19 साल की उम्र में जॉब करनी पड़ रही है? अभी तो उसके खेलने और पढ़ाई करने की उम्र है। देश में जब आयुष्मान जैसी महत्त्वाकांक्षी स्वास्थ्य योजनाएं लागू हैं तो प्रदीप को अपनी मां का बेहतर इलाज क्यों नहीं मिल पा रहा है और उसे कर्ज लेकर दवाई क्यों करवानी पड़ रही है? जिस आर्मी के फील्ड में जाना उसका सपना है जिसके लिए वह इतनी मेहनत और भागदौड़ कर रहा है, सरकार कई साल से उसकी भर्ती क्यों नहीं निकाल रही है?

यह सिर्फ एक प्रदीप की कहानी है। भारत के हर जिले, गांव, कस्बे में आपको ऐसे हजारों प्रदीप रोजाना दौड़ भाग और जीवन-संघर्ष करते हुए मिल जाएंगे। हकीकत यह है कि ऐसे नौजवानों के सपने सरकारी तंत्र की लापरवाही और नाकामियों के चलते दम तोड़ देते हैं।

आंखों में सपने लिए प्रदीप जैसे संघर्षशील लाखों नौजवानों को उर्दू का एक शेर नज्र:

होके मायूस ना आँगन से उखाड़ो ये पौधे, धूप बरसी है यहाँ तो बारिश भी यही पे होगी।


कवर तस्वीर गीता कोठापल्ली के ट्विटर से साभार, कलाकार ash.bagchi


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