मिटेंगे अब अपराधों के साये: किसान आंदोलन के अवसान पर दो कविताएं


सांत्वना

बहुत लोग गेहूं की रोटी खाते हैं

चावल खाते हैं

कुछ ज्वार बाजरा मक्का भी खाते हैं

दलहन तिलहन सब्जी और फल खाते हैं

उनके विभिन्न उत्पाद और व्यंजन जिव्हा का स्वाद बढ़ाते हैं

खाते सभी हैं गरीब हों अमीर हों या मध्यवर्गीय

कोई भूखा नहीं रहना चाहता

और जो भूखा होता है वह खाना चाहता है

उसकी सबसे बड़ी चाहत होती है अन्न

बीज धरती में जमता है

और वह धरती दुनियाभर में पसरी है

दुनियाभर में हैं बीज रोपने वाले

उपजती फसल के रखवाले

सुबह दोपहर शाम

बरखा शीत ग्रीष्म

अनवरत लगे रहते इस उद्यम में

गलाते देह

खाद पानी का ध्यान कीटनाशकों का छिड़काव

प्राकृतिक बाधाओं से मुठभेड़

मंडियों तक पहुंचाने का उपक्रम

यह सब हमारी क्षुधा शांति हेतु आवश्यक कर्म है

पर हमें इससे क्या

बाजार में सबकुछ मिलता है

अनाज भी

पर अन्न तो घर में, बाजार में, मंडियों में और

दुकानों में पैदा नहीं होता

कारखाने में नहीं बनता

दफ्तरों में नहीं उपजता

न कोर्ट कचहरी में

उपज प्रक्रिया से हमें मतलब नहीं

किसानों से हमें क्या लेना देना

हम उन्हें रोकेंगे राजधानी के बाहर

गाड़ेंगे कीलें, लगाएंगे कांक्रीट के अवरोधक, काटेंगे सड़कें,

करेंगे पानी की बौछार, चलाएंगे बेंत

किसान अन्न बेचते हैं दाम पाते हैं और

सरकारी सब्सिडी भी लोन भी और बीमा भी

वे मजे में रहते हैं

जो आत्महत्या करते हैं वे प्रेम में असफल होने के कारण

हां हरयाणा के मंत्री यही कहते हैं

मौके की नजाकत देखकर

कभी-कभी तत्काल राहत की घोषणा भी करती है

सरकार हमदर्दी रखती है अफसोस प्रकट नहीं करती

वे जो हम से प्रेम करते हैं

हम उनके परिजनों को सांत्वना देते हैं

उनके मरने के बाद।


मिटेंगे अब अपराधों के साये

वर्षों की धुंध,

सामंतों, जमीदारों, साहूकारों, बिचौलियों और 

सहकारी मंडियों का फरेब

पूंजीपतियों की बिसात

तुम्हारा खून पसीना और आँसू, तुम्हारी हताश आशाएँ, भय और सहिष्णुता

एक बार फिर हम तक पहुंचे तुम्हारे दीर्घ अनुभव

राजधानी के मुहाने पर लगे टेंट और ट्रेक्टर ट्रॉली के जरिए

जो पहले भोगे गए

अत्याचारों, डकैती, अपमान, झांसा और अन्याय

की प्रतिकृति थे

मेहनत की, और भुगतना पड़ा यह सब

‘इच्छा और कौशल’ के बरक्स सत्ता का अहंकार

पुलिस, सीआरपीएफ, आईटीबीपी की तैनाती

बेंत, वाटर कैनन और पैलेट गन

रायफल और आंसू गैस

हां, वह सत्ता के मद में अंधा है

नागरिकों का तिरस्कार करता है और अक्सर करता है

और करेगा आगे भी

आंदोलनकारी मेहनती किसानो

आओ और मार्ग प्रशस्त करो

शांत, अडिग, धीरोदात्त

कोई देरी नहीं

भूले नहीं वो दिन

भयानक, घृणित, षडयंत्रपूर्ण।

जब झूठा राजा, झूठे प्रशासकों और मंत्रीपुत्र ने

किया वो सबसे जघन्य कर्म

दिन दहाड़े बर्बर हत्याएं

जिन नागरिकों ने उन पर भरोसा किया लोकतंत्र के नाम पर

उन्हें रौंदा

सत्ताखोरो, सफेद लोहे की तरह है तुम्हारा गर्म दिल

फिर भी हम तुम्हारी बात सुनते हैं!

तुम्हारी जयजयकार करते हैं

हाँ, तुम्हारी ‘घंटी अब बज चुकी है,’

अभी भी समय है! होश में आओ |

आओ, एक-एक आततायी, लातों के भूत

जिनका वक्त अब पूरा हुआ

उनके अपराध को चुनौती दो

पुराने अपराधों के साये मिटेंगे सिर्फ हमारी एकता से।


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