अगर हनुमान जी इस देश का बजट बनाते तो कैसा होता?


एक फ़रवरी को बजट पेश होने से पहले वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने हनुमान जी के दर्शन किए, उसके बाद ही कुछ चैनल ये विज़ुअल चलाने लगे और बार-बार ये बात चलने लगी कि अनुराग ठाकुर ने बजट से पहले हनुमान जी के दर्शन किए। एक चैनल ने इस बात को अच्छे से पकड़ लिया और उसी बात के इर्द गिर्द पूरा पैकेज चलने लगा। चैनल की ऐंकर- “मंत्री अनुराग ठाकुर ने बजट से पहले किए हनुमान के दर्शन, क्या हनुमान जी बजट के लिए कोई संजीवनी देंगे, क्या ये बजट इस महामारी के बीच जनता के लिए संजीवनी बनकर उभरेगा।” ऐंकर यहीं पर नहीं रुकी वो दोहा चौपाई पढ़ने लगी- ‘रामकाज कीन्हे बिनु मोहिं कहाँ विश्राम’। क्या अनुराग ठाकुर भी बजट से पहले यही मंत्र लेकर निकले हैं?

ऐंकर तो हनुमान से होते हुए बजट पर चर्चा करने लगी लेकिन मैंने सोचने लगा कि अगर हनुमान जी बजट पेश करते तो वो बजट कैसे होता। सरकार के बजट पर विपक्ष आरोप लगा रहा है कि सरकार अपने चहेते लोगों के लिए बजट लायी है और आम जनता के लिए इस बजट में कुछ नहीं है। हनुमान जी राम के सबसे बड़े भक्त थे और राम ही उनके सबसे चहेते भी थे, लेकिन हनुमान जी में एक लोक भाव भी था और अपने वानर समुदाय के प्रति भी ज़िम्मेदारी थी। तो अगर हनुमान जी वित्त मंत्री होते तो बजट में सबसे ज़्यादा राशि समंदर पर पुल बनाने के लिए जारी करते क्योंकि उस समय के सबसे मिशन का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट था समंदर पर पुल का निर्माण।

इस पुल में उन्नत पत्थरों का इस्तेमाल हुआ और नल नील जैसे इंजीनियरों ने इसे बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और गिलहरी ने भी अपना सहयोग दिया। कुल मिलाकर जन सहयोग से यह पुल बना लेकिन अगर हनुमान जी बजट पेश करते तो पुल के लिए और राशि जारी करते जिससे और कामगारों को बुलाया जा सकता और पुल और जल्दी बन जाता और सीता जी जल्दी घर वापस आ जाती। इस बार सरकार ने भी परिवहन मंत्रालय के प्रोजेक्ट के लिए अब तक की सबसे ज़्यादा राशि जारी की लेकिन देखना ये है कि प्रोजेक्ट पूरा होता है या नहीं और बिना जन सहयोग के काम कैसे पूरा होता है।

भारत सरकार ने कुछ दिनों पहले कहा था कि सरकार हवाई यात्रा की दरों को कम करने का लक्ष्य बना रही है और उसका उद्देश्य है कि हवाई चप्पल पहनने वाला व्यक्ति भी हवाई जहाज़ से यात्रा करे। हवाई चप्पल पहनने वाला व्यक्ति चप्पलें सिलवाकर थक गया लेकिन सरकार का न्यौता नहीं आया हवाई जहाज़ पर चढ़ने का। हनुमान जी के पास तो उनके शरीर में इंस्टाल विमान था और पलक झपकते ही समंदर पार कर जाते, उड़कर संजीवनी ले आते, हालाँकि रावण के पास आज के बड़े उद्योगपतियों की तरह विशेष विमान था लेकिन आम जनता उस समय भी हवाई यात्रा नहीं कर पाती थी। मुझे लगता है कि हनुमान जी का दूसरा सुनहरा प्रोजेक्ट हवाई जहाज़ों की संख्या बढ़ाने का होता और वो चाहते कि उनकी वानर सेना हवाई मार्ग से लंका युद्ध करने जाती। इससे समय भी बचता और समंदर पर पुल बनाने की मेहनत भी ना करनी पड़ती।

देश में इस समय स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति है और सबसे बड़ी समस्या वर्तमान में यही है इसलिए स्वास्थ्य पर ख़र्च बढ़ाना लाज़मी है, लेकिन हनुमान जी तो एक व्यक्ति के उपचार के लिए डॉक्टर समेत पूरा पहाड़ उठा लाये थे और प्राकृतिक उपचार को उन्होंने प्राथमिकता दी, इसलिए उन्हें शायद स्वास्थ्य के लिए विशेष पैकेज जारी करने की ज़रूरत ना पड़ती लेकिन अन्य देशों से सम्बंध को मज़बूत बनाने के लिए उन्हें ज़रूर कुछ करना पड़ता। श्रीलंका की आज़ादी में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका तो निभाई ही थी और सर्जिकल स्ट्राइक करते हुए लंका फूँक दी थी लेकिन लौटते हुए रामजी के सहयोग से लंका को आज़ाद कर दिया था।

सरकार बजट में आय व्यय दोनों का ब्योरा देती है कि ख़र्च कहाँ कहाँ होगा और पैसे कहाँ कहाँ से आएँगे। सरकार ने इस बार ख़र्च का ब्योरा अधिक जारी किया है और आय के लिए कुछ सम्पत्तियों की बोली लगाने का विचार बनाया है। हनुमान जी इस नीति का ज़रूर विरोध करते वो अपने देश की सम्पत्ति को कतई बाहर ना जाने देते। देश के एक नागरिक सीता जी को लाने के लिए उन्होंने समंदर पार कर लिया, उस देश में आग लगा दी, तो अपने देश की सम्पत्ति को भी बाहर जाते नहीं देखते।

और रही बात देश के आम नागरिक के लिए बजट में कुछ ढूँढने की तो इस बार ये काम समंदर में पुल ढूँढने जैसा ही है जो कि मिल नहीं रहा। हनुमान जी जन नेता थे और वानर समुदाय की शान थे लेकिन वो राम को अपना गुरु मानते थे और उनके दिखाए गए रास्ते पर ही चलते थे। हनुमान के बजट में वानर सेना और त्रेता युग की जनता लिए ज़रूर कुछ ना कुछ होता ना कि सिर्फ़ सेठों और साहूकारों के लिए। मैं मन ही मन हनुमान जी के बजट का विश्लेषण करता रहा और तभी ऐंकर ने घोषणा की कि वित्त मंत्री संसद में संजीवनी बूटी की पोटली खोलने के लिए पहुँच गई हैं और मैं आँख फाड़े अपने हिस्से का इंतज़ार करने लगा।



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