बंधुवर, लिंक भेजने के लिए धन्यवाद.
मैंने केवल कटघरे का ज़िक्र इसलिए किया क्योंकि कटघरे की बात वहीँ थी. बाकी आपकी किसी बात का जवाब मैं क्यों दूँ? उसमें झोल ही झोल है. नामवर की क़तरब्योंत भी आप मेरे विरोध के लिए जायज ठहरा रहे हैं, जबकि वह सरेआम बेईमानी थी क्योंकि मेरी किताब को नामवर जी “एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि” कहें, यह मंगलेश जी को बर्दाश्त हो नहीं सकता. इसीलिए पंक्ति उड़ा दी. वरना एक अदद पंक्ति — सही हो चाहे गलत — नामवर सिंह की राय थी जिसे संपादक सेंसर क्यों करेगा? यह हिंदी की छिछली दुनिया है मित्र.
आप कहते हैं कनक दीक्षित हिंदूवादी हैं! मैंने कभी उनका यह रूप न देखा न सुना. नेपाल से वे प्रसिद्ध पत्रिका “हिमाल'” का संपादन करते हैं. उन्होंने ही चे गेवारा पर मेरे लम्बे लेख को अंग्रेज़ी में अनुवाद करवा कर चे की तस्वीरों के साथ “हिमाल” में प्रकाशित किया था. उनके भाई कुंदा दीक्षित नेपाली टाइम्स नामक साप्ताहिक के संपादक हैं. दोनों नेपाल की जानी-मानी हस्तियाँ हैं. हाँ, आनंदस्वरूप वर्मा इनसे घृणा करते हैं, पर इसके कारण मैं जानता हूँ.
नेपाल के आलावा कनक और मैं पाकिस्तान, इटली, बेल्जियम, तुर्की आदि अनेक देशों में पत्रकारिता और दक्षिण एशिया के हालात पर बात करने के लिए साथ भी हुए हैं. वे व्यंग्य में जब-तब खुद ज़रूर कहते थे कि नेपाल में तो हमें “कुलीन परिवार” कहकर खारिज करने वाले भी हैं. पर, मुझे याद है और यह वहां इतिहास है, नेपाल की राजशाही के खिलाफ सड़क पर सबसे पहले पत्रकारों में कनक ही उतरे थे. दिल्ली में भी सड़क पर बैठे कनक को पुलिस द्वारा उठाये जाने की तस्वीरें छपीं थीं. ओछे वामपंथियों में हर विरोधी को हिंदूवादी करार दिए जाने का फैशन चल पड़ा है. इस से तो जो वामपंथ के करीब है, धीरे-धीरे दूर हट जाएगा. अगर कनक दक्षिणपंथी हैं भी तो मुझे इससे फर्क भी नहीं पड़ेगा. मैं तो शुरू से इस आवाजाही की ही तरफदारी कर रहा हूँ… वैसे उनकी और मेरी निकटता का एक और बड़ा कारण हमारी सिनेमा रुचि है. वे तो काठमांडू में नियमित रूप से एक फिल्म समारोह भी आयोजित करते हैं.
पर इस तरह तो मैं आपकी हर बात का जवाब देता जाऊँगा. उसमें फिर आप पेंच निकालेंगे. फिर जवाब. छोड़ो यार, कुछ बेहतर काम करें.
आपका,
ओम थानवी
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