क्या आपको ऊपर दी गई तस्वीर में दिख रहा शख्स याद है? दिमाग पर ज़ोर डालिए, याद आ जाएगा। पिछले साल जून में अखबारों में छपी यह तस्वीर है रायगढ़, छत्तीसगढ़ के पर्यावरण और आरटीआई कार्यकर्ता रमेश अग्रवाल की। शुक्रवार की सुबह इन्हें धमकी देकर दो लोगों ने गोली मार दी। फिलहाल रमेश अग्रवाल की जान बच गई है और जांघ में लगी गोली निकाल दी गई है।
पहले झूठा मुकदमा, फिर जेल, अस्पताल में हथकड़ी डाल कर भर्ती करवाया जाना और अब जानलेवा हमला। यह सिला मिला है जिंदल की चार मिलियन टन सालाना क्षमता वाली कोयला खदान के विरोध का, जिसकी जनसुनवाई को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल भी ”नियमों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के स्पष्ट उल्लंघन का स्पष्ट उदाहरण’ करार दे चुका है। ट्रिब्यूनल पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अधीन काम करता है जिसकी कमान कांग्रेस की सांसद और मंत्री जयंती नटराजन के हाथ में है। अग्रवाल, जो एनजीओ चेतना मंच चलाते हैं, उसकी कार्यकर्ता सरिता रथ का मानना है कि अग्रवाल पर गोली जिंदल कंपनी के अफसरों ने चलवाई है क्योंकि वह कंपनी के स्टील प्लांट और कोयला खदानों का विरोध कर रहे थे। जिंदल कंपनी के मालिक नवीन जिंदल हैं जो हरियाणा के कुरुक्षेत्र से सांसद हैं और गृह व रक्षा मामलों पर संसदीय समिति के सदस्य भी हैं।
जिंदल कंपनी के साथ रमेश अग्रवाल और स्थानीय गांव वालों का संघर्ष पुराना है। पिछले साल कंपनी के 2400 मेगावाट थर्मल प्लांट के खिलाफ लोगों को जनसुनवाई में भड़काने का आरोप रमेश अग्रवाल और हरिहर पटेल पर लगाकर उन्हें जेल में डाल दिया गया था। अग्रवाल ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को इस प्लांट के खिलाफ पत्र लिख कर बताया था कि बगैर पर्यावरणीय मंजूरी के कंपनी ने निर्माण कार्य शुरू कर दिया है। इस पर कार्रवाई करते हुए मंत्रालय ने अस्थायी तौर पर टर्म ऑफ रेफरेंस को वापस ले लिया था जिससे प्लांट का काम रुक गया था। इसके बाद ही रमेश अग्रवाल पर मुकदमा ठोका गया। ऊपर दी गई तस्वीर उनकी कैद में रहते हुए है जिसे मेल टुडे ने पिछले जून काफी प्रमुखता से प्रकाशित किया था।
इसी साल अप्रैल में श्री अग्रवाल और उनके सहयोगियों ने दावा किया था कि जेएसपीएल द्वारा परिचालित कोयला खदान के लिए अनिवार्य जनसुनवाई स्वीकृत प्रक्रियाओं के मुताबिक नहीं आयोजित की गई। इसके बाद नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने खदान को मिली पर्यावरणीय मंजूरी रद्द कर दी और जनसुनवाई को ”नियमों व न्याय के प्राकृतिक सिद्धांत का उल्लंघन” बताया। जनसुनवाई की वीडियो क्लिप में गांव वालों को जनसुनवाई रोकने के लिए चिल्लाते साफ सुना जा सकता है। इसके बाद क्लिप के मुताबिक लोगों पर पुलिसवालों ने हमला कर दिया था।
अभी ओडिशा के अंगुल में 25 जनवरी को जिंदल कंपनी के गुंडों और पुलिस-प्रशासन द्वारा खेले गए बर्बर खूनी खेल में चोटिल 40 गांवों के आदिवासियों के ज़ख्म भी नहीं भरे हैं, कि पूंजी ने एक बार फिर अपना असली रंग दिखा दिया है। शुक्रवार को रमेश अग्रवाल को दो लोगों ने गोली मार दी है। सत्तर साल के अग्रवाल बच तो गए हैं, लेकिन नवीन जिंदल के हाथों में एक बार फिर खून लग गया है। कंपनी के अधिकारी इसमें अपना हाथ होने से इनकार कर रहे हैं। उन्हें ऐसा करना ही है क्योंकि उसी के लिए उन्हें तनख्वाह मिलती है।
दिलचस्प बात है कि एक ओर कांग्रेस के सांसद नवीन जिंदल हैं, दूसरी ओर कांग्रेस की ही सांसद और मंत्री जयंती नटराजन। लेकिन गोली लगती है उसे जो न तो सांसद है, न ही पूंजीपति। राजनीति और कॉरपोरेट का यह खूनी गठजोड़ अब नूराकुश्ती का रूप ले चुका है। इसमें न तो पूंजीपति का कुछ बिगड़ता है, न ही सरकार का। पिसते हैं वे लोग जो सरकारों द्वारा बनाए गए नियमों और संवैधानिक मूल्यों की मांग कर रहे हैं।
लेकिन बात छुपती नहीं है। अंगुल में भी यह बात सामने आ गई थी। रायगढ़ में भी बच्चा-बच्चा जानता है कि रमेश अग्रवाल को गोली किसने मारी। अब इसे छुपाया भी जाए तो कैसे? बड़ी दिक्कत है कि आजकल खून से सने हाथ छुपाना मुश्किल हो गया है। इसीलिए मीडिया को इस खेल में पार्टी बनाया जाना ज़रूरी है। जिंदल पर्याप्त धनी हैं और वे चाहें तो तमाम चैनलों को, अखबारों को पैसे या विज्ञापन देकर खबर को दबा सकते हैं। लेकिन अव्वल तो यह खबर कहीं चलेगी नहीं क्योंकि जिंदल राष्ट्रीय ध्वज के क्रूसेडर भी हैं और सरकार के प्रतिनिधि भी। दूसरे, मीडिया खुद जिंदल जैसों का है। कहीं चल भी गई तो क्या? सबसे आसान तरीका है कि अपना मीडिया प्रतिष्ठान ही खड़ा कर दिया जाए। हां, जिंदल के लिए यह सबसे आसान और कारगर है।
इसीलिए स्टार न्यूज़ से एबीपी न्यूज़ बन चुके चैनल के साथ जिंदल का करार पक्का हो गया है। यह करार फिलहाल सिर्फ छत्तीसगढ़ के लिए है। अब जल्द ही आपके सामने एबीपी छत्तीसगढ़ नाम का नया चैनल आ जाएगा। उसमें रमेश अग्रवाल, हरिहर पटेल और जिंदल के प्लांट का विरोध कर रहे गांव वाले अपराधी होंगे। न भी हुए तो जिंदल ज़रूर एक क्रूसेडर होंगे जो कारखाना लगाकर आदिवासियों की गरीबी दूर करने चले हैं।
कहीं कोई दिक्कत नहीं है। चित भी मेरी, पट भी मेरी, सिक्का मेरे बाप का।
इतना हिपोक्रिट होने की क्या ज़रूरत है भाई? इतनी मेहनत? पहले सरकार को खरीदो, फिर मीडिया को और फिर लोगों की चेतना को? जिंदल को मुफ्त की सलाह- संविधान को जला दीजिए, जनता को गोली मार दीजिए, फिर मौज से स्टील बनाते रहिए। सस्ता-सुभीता तरीका है। आजमा कर तो देखिए…!
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रविवारीय महाबुलेटिन में 101 पोस्ट लिंक्स को सहेज़ कर यात्रा पर निकल चुकी है , एक ये पोस्ट आपकी भी है , मकसद सिर्फ़ इतना है कि पाठकों तक आपकी पोस्टों का सूत्र पहुंचाया जाए ,आप देख सकते हैं कि हमारा प्रयास कैसा रहा , और हां अन्य मित्रों की पोस्टों का लिंक्स भी प्रतीक्षा में है आपकी , टिप्पणी को क्लिक करके आप बुलेटिन पर पहुंच सकते हैं । शुक्रिया और शुभकामनाएं
वाह अजय जी, ये तो काफी अच्छा प्रयास है,बधाई।
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