कंगूरे की चमकती ईंटों के दौर में नये-नवेले राम
जिस राम को तुलसीदास जानते थे, वाल्मीकि जानते थे, धीरे-धीरे वे राम नेपथ्य में चले गये। संघ और भाजपा ने अपने लिए एक नये राम का निर्माण किया। वे राम, जो फूलों से कोमल और ब्रज से भी कठोर थे उन्हें धीरे-धीरे केवल कठोर बनाया जाने लगा। राम की भुवनमोहिनी मुस्कान और कोमल काया तस्वीरों के साथ-साथ आम जन के अवचेतन से भी दूर की जाने लगी।
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