शिक्षा का लोकतान्त्रिक मूल्य और डॉ. भीमराव अम्बेडकर

डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा दिया गया सूत्र ‘शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो’ इस सूत्र में ही उनके संघर्षपूर्ण जीवन का व उनके शैक्षिक विचारों का सारांश छिपा हुआ है।

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भारतीय संविधान : हाशिये के समाज का मैग्नाकार्टा

आज के समय में हाशिये के समाज में तमाम सामाजिक विद्रूपताएं व समस्याएं दिखाई देती हैं। इसका कारण यह भी है कि संविधान द्वारा मिला हुआ कानूनी प्रावधान इन्हें उचित तरीके से नहीं मिल सका है जिसके वह वास्तव में हकदार थे।

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अन्नदाता, जागो और देखो, हल की जगह चलाये जा रहे हैं बुल्डोजर!

प्रेम ही आदमी को कवि बनाता है। कवि की ज़रूरत इसलिए होती है कि जब हवाओं में घृणा भरी हो, वह प्रेम का संगीत बाँटता है। वह सुंदरता से प्रेम करना सिखाता है और बताता है, क्या सुंदर है, क्या नहीं।

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सावित्री बाई फुले को सिर्फ अतीत में नहीं बल्कि वर्तमान में देखने की जरूरत है

सावित्री बाई फुले को सिर्फ इस लिहाज से न देखा जाए कि वह एक दलित महिला थीं और उन्होंने कुछ स्कूलों की स्थापना की। उनका योगदान सिर्फ कुछ जातियों के विकास तक नहीं सीमित है। सावित्री बाई फुले अपने आपको एक मनुष्य की दृष्टि से देखती थीं।

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किनिर: आदिवासी अस्मिता पर प्रहार करने वाली नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाती कविता

कविता संग्रह की मूल अंतर्वस्तु ही जंगल को बचाने की है। कविता संग्रह के माध्यम से जंगल गाथा कहने में तनिक हिचकिचाहट नहीं दिखायी देती। ये कविताएं नये भावबोध से लैस हैं। यहां नया भावबोध का तात्पर्य यह भी है कि उनकी कविताएं किसी परंपरागत सौंदर्यशास्त्र के पैमाने के अनुसार न चलकर अपनी स्वयं की जमीन बनायी हैं।

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UGC की CARE लिस्टेड पत्रिकाएं: अकादमिक जगत में भ्रष्टाचार की नर्सरी

यूजीसी CARE लिस्ट सिर्फ एक कोटापूर्ति बन कर रह गई है। आए दिन यह भी शिकायतें मिलती हैं कि फलां विश्वविद्यालय या महाविद्यालय में शोधार्थियों को बाध्य किया जा रहा है कि वे अपने शोध-पत्र का प्रकाशन यूजीसी लिस्ट में शामिल पत्रिकाओं में करवाएं। अब शोधार्थी के पास पैसे देने के अलावा कोई चारा नहीं बचता है।

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