पंचतत्व: चुगलों के चंगुल में फंसी प्रकृति के साथ सहजीवन का प्रतीक सामा चकेबा


कार्तिक का चांद इन दिनों दिल्ली में भी ठह-ठह दिख रहा है. आसमान की दया है कि दिल्ली का धुआं कहीं गायब है. कार्तिक पूर्णिमा के आसपास जब भी मैं आसमान देखता हूं, मेरे मन में एक गीत गूंजने लगता है:

सामचको-सामचको अबिह हे
जोतला खेत में बैसियह हे
सब रंग पटिया ओछिबइह हे
भइया के आशीष दीहअ हे

इससे पहले कि मैं इस मिठास भरे मैथिली गीत का अर्थ बताऊं, मेरा मन ललचा रहा है कि एक किस्सा सुना ही डालूं. किस्सा इसी गाने से जुड़ा है. यह कोई धार्मिक या पौराणिक कथा नहीं है, बस सदियों से मौखिक परंपरा में चली आ रही एक लोककथा है.

भगवान कृष्ण की एक बेटी थी. नाम था श्यामा या मैथिली में सामा. कृष्ण के एक बेटे भी थे जिनका नाम था साम्ब। मिथिला वाले उनको सतभइयां या चकेवा भी कहते हैं. सामा और चकेवा में असीम स्नेह था. सामा प्रकृति-प्रेमी थी जिसका ज्यादातर समय परिंदों, पेड़-पौधों, लता-गुल्मों और फूल-पत्तों के बीच बीतता था. सामा अपनी दासी डिहुली के साथ वृंदावन जाकर ऋषियों के बीच तपोवन के एकांत में खेला करती थी.

कृष्ण का एक मंत्री था, चुरक. इसे कालांतर में मिथिला में चुगला नाम से जाना गया. चुरक या चुगला ने सामा के खिलाफ कृष्ण के कान भरने शुरू कर दिए. उसने सामा पर वृन्दावन के एक तपस्वी के साथ संबंध होने का आरोप लगाया.

कृष्ण ईश्वर थे, पर मंत्री की बातों में आने का चलन तब भी था. कृष्ण भी मंत्री की बातों में आ गए. कृष्ण ने आक्रोश में अपनी पुत्री को पक्षी बन जाने का शाप दे दिया. नतीजतन, सामा पक्षी बन गई और वृंदावन के वन-उपवन में रहने लगी. उस निर्दोष को इस रूप में देख वहां के साधु-संत भी पक्षी बन गए.

जब सामा के भाई चकेवा को इस प्रकरण की जानकारी हुई तो उसने कृष्ण को समझाने की भरसक कोशिश की. कृष्ण नहीं माने, तो वह तपस्या पर बैठ गया. अपनी कठिन तपस्या के बल पर अंततः उसने कृष्ण को मनाने में सफलता पा ली. प्रसन्न होकर कृष्ण ने वचन दिया कि सामा हर साल कार्तिक के महीने में आठ दिनों के लिए उसके पास आएगी और कार्तिक की पूर्णिमा को पुनः लौट जाएगी.

कार्तिक में सामा और चकेवा इन दोनों प्यारे भाई-बहनों का मिलन हुआ. उसी दिन की याद में सामा चकेवा का त्यौहार मनाया जाता है.

दिल्ली में श्रीदुर्गा जन सेवा ट्रस्ट की ओर से किराड़ी में प्रथम सामा-चकेबा उत्सव, जागरण फोटो

सामा चकेवा का त्योहार आठ दिनों का होता है और सूर्योपासना छठ के पारण के बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी से शुरू होता है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन इसका अवसान होता है.

इस त्योहार में सामा और चकेवा की जोड़ी के साथ चुगला, वृन्दावन, बटगमनी, वृक्षों, पक्षियों आदि की मिट्टी की छोटी-छोटी मूर्तियां बनाई जाती हैं. बांस की रंग-बिरंगी टोकरियों में इन मूर्तियों को सजाकर उनकी पूजा की जाती है. सांझ को गांव या नगर की लड़कियों और महिलाओं की टोली लोकगीत गाती हुईं निकलती हैं.

सामा खेलते लोकसंस्कृति अपने चरम पर होती हैं. गाने होते हैं, चुहल होती है. अंत में चुगलखोर चुगला का मुंह जलाने के बाद सभी महिलाएं गाती-गुनगुनाती घर लौट जाती हैं. इस दौरान सामा-चकेवा का विशेष श्रृंगार किया जाता है और उसे खाने के लिए हरे धान की बालियां दी जाती हैं और रात्रि में उसे युवतियों द्वारा खुले आसमान के नीचे ओस पीने के लिए छोड़ दिया जाता है.

कार्तिक शुक्ल सप्तमी से लेकर पूर्णिमा तक यह सिलसिला चलता है और इस त्योहार के आखिरी दिन यानी कार्तिक पूर्णिमा को बहनें अपने भाइयों के साथ खेतों में जाती हैं. चूड़ा, दही, गुड़ और मिठाई से मुंह जूठा कराने के बाद वे भाइयों के घुटने से मूर्तियां तुड़वा देती हैं. उसके बाद सामा चकेवा का विसर्जन होता है. जाते-जाते चुगलखोर चुगला की पटसन से बनाई गई मूंछ में आग लगा दी जाती है. भाइयों को मिठाई खिलाकर और उनकी लंबी उम्र की प्रार्थना करने के बाद अगले वर्ष फिर सामा चकेवा के आने की कामना के साथ इस आयोजन का समापन होता है.

पंचकोसी मिथिला में सामा-चकेबा को जुते हुए खेतों में भसाने (विसर्जित करने की) की परंपरा है जबकि अन्य जगहों पर उसे नदी एवं तालाब में प्रवाहित किया जाता है. विसर्जन के दौरान महिलाएं सामा-चकेवा से फिर अगले वर्ष आने का आग्रह करते हुए गीत गाती हैं, जिसका जिक्र ऊपर किया थाः

सामचको-सामचको अबिह हे
जोतला खेत में बैसियह हे
सब रंग पटिया ओछिबइह हे
भइया के आशीष दीह हे

अब इतनी लंबी कहानी के पंचतत्व में उल्लेख की कोई वजह तो होगी!

वजह है. असल में, हमारे देश में स्थापित पौराणिक और शास्त्रीय पर्वों के साथ लोक उत्सवों की अद्भुत छटा है, जिसमें कर्मकांड कम और समाज की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण होती दिखती है. लोक आस्था का पर्व छठ हो या फिर सामा चकेबा, दोनों ही पर्यावरण के पर्व हैं. भाई-बहन के रिश्ते को भैया दूज और राखी से परे ले जाकर सामा-चकेबा का पर्व अद्भुत आयाम देता है. इस आयाम में, प्रकृति और पर्यावरण के महत्व को बेहद मासूम अभिव्यक्ति दी जाती है.

आठ दिनों के इस त्योहार का बड़ा मकसद प्राचीन काल से ही मिथिला क्षेत्र में हर साल आने वाले प्रवासी पक्षियों को सुरक्षा और सम्मान देना है. बरसात के बाद कार्तिक के महीने से सर्दियों की शुरुआत होती है. ताल-तलैया-पोखरों से भरे मिथिला के मैदानी इलाकों में दूर-दराज़ से दुर्लभ नस्लों के रंग-बिरंगे परिंदों का आना शुरू हो जाता है.

ये पंछी हिमालय या सुदूर उत्तरी ध्रुव के बर्फीले इलाकों से इधर आते हैं क्योंकि सर्दी यहां बनिस्बतन कम पड़ती है और पानी भी पर्याप्त मात्रा में है.

मिथिला में आए प्रवासी पक्षी

प्रवासी पक्षियों के आगमन की शुरुआत सामा चकेवा पक्षियों से होती है. इन पक्षियों को शिकारियों के हाथों से बचाने के साथ ही मनुष्य और पक्षियों के सनातन रिश्तों को आगे ले जाने और पर्यावरणीय सह-अस्तित्व को स्थायित्व देने के लिए ही संभवतः हमारे पूर्वजों ने सामा और चकेवा के मिथकीय प्रतीक गढ़े.

सामा और चकेवा पक्षियों की कल्पना कृष्ण की संतानों के रूप में की गई. चुगला संभवतः इन मासूम पक्षियों के शिकारियों का प्रतीक है. शायद यही वजह है कि महिलाएं गांव के पोखरों की मिट्टी लेकर सामा चकेवा पक्षी बनाने के बाद उन्हें पारंपरिक तरीके से सजाती भी हैं और उनके स्वागत में गीत भी गाती हैं. कार्तिक पूर्णिमा को इस पक्षी जोड़े की विदाई और चुगला रूपी शिकारी की मूंछें जलाने के साथ इस पर्व का समापन इस उम्मीद के साथ किया जाता है कि प्रवासी पक्षियों को यहां के लोगों से कोई शिकायत नहीं होगी और अगले वर्ष वे फिर लौटकर यहां के मैदानों, झीलों और ताल-तलैया को अपने मासूम कलरव से भर देंगे.

अब तो सामा चकेबा त्योहार ही एकल परिवारों के दौर में कम हो रहा है, इसके साथ ही लोगों के हृदय की विशालता भी उसी तरह कम होती जा रही है, जैसे बड़े-बड़े पोखरे मकान-दुकान बनाने के लिए भरे जा रहे हैं.

पर यकीन मानिए, हर त्योहार पूजा नहीं होता। उनमें समाज अपने को सहेजकर रखने का यत्न भी करता है. सामा-चकेबा भी वैसा ही पर्व है.


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One Comment on “पंचतत्व: चुगलों के चंगुल में फंसी प्रकृति के साथ सहजीवन का प्रतीक सामा चकेबा”

  1. बहुत ही अच्छे से आपने न केवल मिथिला के विलुप्त होती लोकसंस्कृति की जानकारी दी है वल्कि पक्षियों के प्रवास से जोड़कर जैव विविधता के संरक्षण के प्रति भी चेतना जगाने का प्रयास किया है।

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