कुछ महीने पहले प्रयाग अकबर की किताब पर आधारित और दीपा मेहता के निर्देशन में बनी एक वेब सीरीज़ देखी थी नेटफ्लिक्स पर– लैला. इसमें हमने 2047 के ‘आर्यावर्त’ राष्ट्र को देखा. इसमें महिला और महिला की यौनिकता पर नियंत्रण करने के तमाम प्रयास और षड्यंत्रों को देखा. नस्ली शुद्धीकरण के नाम पर महिलाओं के साथ होने वाली जुल्मतों और एक विशेष धर्म आधारित समाज की पूरी शासन व्यवस्था को भी इसमें दिखाया गया. बच्चों और महिलाओं को हथियार बनाकर कैसे उस समाज की स्थापना की गयी और उस व्यवस्था को बनाये रखा जाता, इसको भी भलीभांति न केवल दिखाया गया बल्कि मुझे तो लगता है कि चेताया भी गया है. इस वेब सीरीज़ का डिस्क्लेमर है कि किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से इसकी कोई साम्यता नहीं है, पर इस सीरीज़ को देखते हुए साम्यता दिखाने लगती है. कैसे? ज़रा गौर फरमाएं.
हमारा समाज महिला-पक्षीय तो कभी भी नहीं रहा है, पर पिछले कुछ वक़्त से योजनाबद्ध तरीके से शुचिता के नाम पर महिला और उसकी यौनिकता पर नियंत्रण करने के प्रयास बहुत तेज हुए हैं. ऐसे तमाम मामले हम देख सकते हैं जहां धर्म, जाति आदि के नाम पर महिला के निर्णय को नकारते हुए समाज के तथाकथित ठेकेदार अपने कुत्सित कार्य किये जा रहे हैं. हदिया और उसके प्रेम निर्णय को ही देख लीजिए- हम सभी गवाह हैं कि कैसे दो वयस्क इंसानों के प्रेम और विवाह तक पहुंचने के निर्णय को नकारते हुए तथाकथित ठेकेदारों ने एनआइए तक की जांच बैठा डाली. ये ठेकेदार खुद बालाकोट में किये कथित हमले का कभी सबूत नहीं दे पाए, पर देखिए कि प्रेम और प्रेम विवाह को न केवल रद्द करने वरन् साजिश करार देने के लिए मासूम हदिया के पीछे तमाम ताकतवर लोग लग गए. ये तो सिर्फ हदिया का हौसला था कि वह लड़ती रही अपने हक़ के लिए- ऐसी ही लड़कियां चुभती हैं समाज के तथाकथित ठेकेदारों को!
हाल ही में हम सभी ने यह ख़बर भी पढ़ी–सुनी कि उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुए अंतर-धार्मिक विवाहों में इस बात को जानने के लिए राज्य सरकार ने एसआइटी की जांच बैठायी है कि कहीं इन शादियों के पीछे कोई विदेशी फंडिंग और ‘’लव जिहादी’’ षड्यंत्र तो नहीं है. एसआइटी की जांच रिपोर्ट आ गयी और उसमें ऐसी किसी भी सम्भावना की हवा नहीं मिली. उम्मीद की किरण बने हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समझदार जजों ने इस मुद्दे पर न केवल अपनी सूझ-बूझ का परिचय दिया बल्कि राज्य सरकार को फटकार भी लगायी.
ऐसा नहीं कि यह किसी एक या दो राज्य की बात है. लगभग हर उस राज्य में यह प्रकिया जोर-शोर पर है जहां सरकार हिन्दुत्ववादी विचारधारा की है. वहां प्रेम विवाह और खासकर दूसरे धर्मों में किये गये विवाहों को निशाने पर रखकर महिलाओं/लड़कियों को यह समझाया/बताया और चेताया जा रहा है कि तुम वही कर सकती हो या करना चाहिए जो हम चाहेंगे. हमारे सोच के खिलाफ जाओगे तो हश्र बुरा ही होगा.
इतने से भी तथाकथित हिन्दुत्ववादियों का जी नहीं भरा, तो अब ये बाकायदा कानून बनाकर सुनियोजित तरीके से एक बार फिर लड़कियों को बेड़ियों में बाँधने में लग गये हैं. उत्तर प्रदेश सरकार न केवल अंतर्धार्मिक शादियों के खिलाफ कानून ला चुकी है बल्कि ऐसी शादियों से गर्भवती महिलाओं पर भी इनकी पैनी नज़र है और ये गर्भ-धारण संस्कार के नाम पर एक और शिकंजा कसने को बेताब हैं.
वो दिन दूर नहीं अब जब दूसरे धर्मों में शादी करने वाली हिन्दू लड़कियों को सुधार-गृह भी भेजा जाएगा, उनकी धार्मिक शुद्धि भी की जाएगी और ज़रूरी लगा तो शारीरिक और मानसिक यातना भी दी जाएगी. ऐसी शादियों से हुए बच्चों के साथ ये हिन्दुत्ववादी क्या करेंगे, इसका तो अगर सोचने बैठेंगे तो ही रूह कांप जाएगी.
ताज्जुब की बात ये है कि महिला विरोधी सरकार सिर्फ उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक में ही नहीं है. देश की राजधानी में बैठी सरकार हो या अन्य राज्य सरकारें, महिला सुरक्षा के नाम पर सभी बार-बार यह याद दिलाती रहती हैं कि देश की लडकियों/औरतों- तुम घर से बाहर निकलते ही असुरक्षित हो और खुद तो कम से कम इतनी सक्षम नहीं हो कि अपनी सुरक्षा के लिए खुद लड़ सको, इसलिए हम तुम्हारी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेंगे; हम डर का ऐसा माहौल पैदा कर देंगे कि तुम्हारे परिवार वाले भी तुम्हारी पहरेदारी करेंगे और सिर्फ तुम्हारे लिए हम जगह जगह सीसीटीवी कैमरे भी लगा देंगे; तुम जो आज़ादी के नाम पर अपनी मनमानी करने का सोच रही हो हम उस सब पर लगाम कसेंगे!
सरकारों की चिंता और इतनी फ़िक्र- कभी धर्म के नाम पर तो कभी सुरक्षा के नाम पर और उसके साथ लड़कियों को, औरतों को नासमझ करार देते हुए अपनी जिन्दगी के निर्णय लेने के नाकाबिल बताते हुए- सिर्फ और सिर्फ कमजोर बताने, कमअक्ल साबित करने और पुरुषों पर आश्रित बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही. मतलब घर की चारदीवारी में तो जैसे महिला सबसे ज्यादा महफूज़ हैं!
केन्द्र सरकार का बेटी बचाओ अभियान भी लगता है कि एक नारा नहीं, बल्कि लड़कियों के लिए एक चेतावनी थी जिसे हमने हाथरस, कानपुर, उन्नाव, बिहार की गुलनाज़, हरियाणा की निकिता और देश की तमाम जगहों पर हुई महिला-विरोधी हिंसा और उसके प्रति शासनतंत्र के रुख़ में साफ-साफ झलकते देखा है.
हिन्दुत्ववादी समाज बनाने की ओर जिस तरह से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में प्रयास तेज कर दिये गये हैं. अंतरधार्मिक विवाह के खिलाफ और ऐसे विवाह को नकारने, कम करने या लगभग खत्म करने की मंशा से जो क़ानूनी जामा पहनाया जा रहा है और उसमें सरकारों की जो मुस्तैदी देखने को मिल रही है, उससे कहीं न कहीं लगता है कि वेब सीरीज़ लैला के नाम पर हमने भावी हिन्दुत्ववादी समाज का ब्लूप्रिंट देख लिया है, जो घातक तो है ही और उससे कहीं ज्यादा महिला-विरोधी है. साथ ही साथ तमाम सरकारों में 2047 के पहले ही ऐसा समाज हकीकत बनाने की हड़बड़ी भी दिख रही है.
इन दिनों जोर-शोर से चर्चा में छाये ‘’लव जिहाद’’ का मुद्दा दरअसल सिर्फ इतना नहीं है. लव, प्यार, मुहब्बत यह सिर्फ एक भावना नहीं बल्कि एक सोच है– प्यार, सम्मान, बराबरी, आजादी और हकदारी की. जहां प्यार होता है वहां हमारे संविधान में बताये गये मूल्य भी स्वतः आते जाते हैं और धीरे-धीरे पितृसत्ता की बेड़ियां कमजोर पड़ने लग जाती हैं. यही मूल बात है जिसे तमाम सरकारें और धर्म के पहरेदार नहीं चाहते क्योंकि जिस दिन लोगों को समझ आ जाएगा, उस दिन इनकी जाति, धर्म और राजनीति की दुकान बंद होने लग जाएगी.
अब वक़्त है कि हम और आप सोचें कि हमें आखिर कैसा समाज चाहिए– क्या सचमुच हम लैला सीरीज़ में दर्शाये गये समाज/राष्ट्र में जीना चाहते हैं? क्या सचमुच हमें महिलाओं की आज़ादी, उनके निर्णय से इतनी दिक्कत है? कहीं ऐसा तो नहीं कि धर्म तो बहाना है, पर असल में हिन्दू धर्म को खतरा महिलाओं से और उनकी आज़ादी से ही है?
लेखिका दिल्ली स्थित सामाजिक कार्यकर्ता हैं
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