कोरोना वायरस महामारी के वैश्विक संकट के दौर में होमियोपैथी को याद करना न केवल प्रासंगिक है बल्कि यह आज के दौर की एक महत्वपूर्ण ज़रूरत भी है।
चिकित्सा विज्ञान के इतिहास में रुचि रखने वाले चिकित्सक एवं शोधार्थी चाहें तो 1997 के जर्नल आँफ हिस्ट्री आँफ मेडिसिन एण्ड एलाइड साइन्सेज़में दो–तीन शोध पत्र पढ़ सकते हैं जिसमें जिक्र है कि सन् 1832 में योरप में फैली ‘एसियाटिक कालरा’ महामारी से तबाह हजारों लोग जब दवा के अभाव में दम तोड़ रहे थे तब आधुनिक चिकित्सा विज्ञान (एलोपैथी) एक तरह असहाय था। सालाना लगभग 20-50 लाख लोग योरप में कालरा से मर रहे थे। 1848 से 1854 तक लन्दन कई बार कालरा महामारी की चपेट में आया। लाखों बीमार हुए, हजारों लोग मरे। रोग का असल कारण किसी को भी पता नहीं लगा। एलोपैथी के सभी विशेषज्ञ कालरा को दूषित हवा से फैलने वाला रोग बताते रहे लेकिन समाधान नहीं मिला। 1854 में जब फिर से कालरा भयंकर महामारी के रूप में फैला तब पहली बार पता लग पाया कि यह हवा से नहीं, दूषित पानी से फैलता है।
उस समय के जाने-माने जनस्वास्थ्य वैज्ञानिक डॉ. जॉन स्नो को बड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी यह स्थापित करने के लिए कि कालरा हवा से नहीं, दूषित पानी से फैलता है। बहरहाल, कालरा से बीमार लोगों के उपचार के लिये ब्रिटेन के किंग जार्ज (छठे) ने रॉयल लन्दन होमियोपैथिक हॉस्पिटल के चिकित्सकों की सेवाएं लीं और हजारों लोगों को मरने से बचा लिया गया। आज कोई डेढ़ दशक बाद जब दुनिया कोरोना वायरस महामारी के संकट में है और उपचार के नाम पर कोई स्पष्टता नहीं है, फिर भी सरकार के स्तर पर कहीं भी होमियोपैथी की सेवाओं के लिए न तो प्रयास है और न ही पहल। कई होमियोपैथिक चिकित्सक जो अपने निजी स्तर पर होमियोपैथिक अनुसंधान और अध्ययन में लगे हैं, चाह कर भी पीड़ितों की आधिकारिक स्तर पर सेवा नहीं कर पा रहे।
कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से लगभग पूरी दुनिया में लॉकडाउन है। महामारी अधिनियम 1897 के अनुसार बगैर केन्द्र सरकार की अनुमति के किसी भी अन्य चिकित्सा पद्धति के चिकित्सक अपने स्तर पर उपचार नहीं कर सकते। यहाँ मैं यह बताना जरूरी समझता हूँ कि एक बार जब 1958 में उड़ीसा में कालरा (हैजा) फैला था तब महामारी अधिनियम 1897 के तहत एक होमियोपैथिक चिकित्सक को भारतीय दंड संहिता 188 (3) के तहत इसलिए दंडित किया गया था कि उन्होंने खुद को कालरा का टीका लगाने से इनकार कर दिया था। उन्होंने टीका के बदले अपनी होमियोपैथिक दवा ले ली थी और वे सुरक्षित रहे, लेकिन कानूनन उन्हें सजा भुगतनी पड़ी थी।
महामारियों में होमियोपैथी की प्रासंगिकता के अनेक प्रमाणिक उदाहरण हैं लेकिन कानूनी अड़चन की वजह से कई घातक बीमारियों में लोगों की जीवनरक्षा के लिए होमियोपैथी का विधिवत उपयोग नहीं हो पाता है और हजारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ जाती है।
बीमारियों और महामारियों में एलोपैथिक चिकित्सा की अपनी सीमाएं हैं और यह जगजाहिर है लेकिन दुनिया भर में सक्रिय मजबूत एलोपैथिक दवा लॉबी का इतना दबाव है कि विफलता के बावजूद एलोपैथी के सामने होमियोपैथी या अन्य वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों को खड़ा होने की भी इजाज़त नहीं है। उदाहरण के लिए, दुनिया में महाशक्तिशाली देश अमरीका कोरोना वायरस संक्रमण के सामने घुटने टेककर असहाय खड़ा है। दुनिया से खुद के नागरिकों को बचाने की अपील कर रहा है। यहां तक कि भारत को धमकी भरे लहजे में उसने कहा कि जल्द दवा भेजो नहीं तो जवाबी कार्रवाई करेंगे? जो दवा अमरीका मांग रहा है वह भी दरअसल मलेरिया की संदिग्ध दवा ही है। हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन को अमरीका के एफडीए (फूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) ने मलेरिया के लिए उपयुक्त नहीं माना था लेकिन अभी जब लाखों अमरीकी नागरिकों की जान का संकट है, तो इस कथित दवा के लिए उसे दुनिया के समक्ष हाथ फैलाने पड़ रहे हैं और चैधराहट की ठसक ऐसी कि वह इसके लिए धमकी भरे शब्दों का प्रयोग कर रहा है।
कहते हैं कि संकट में उम्मीद के हर अच्छे व तार्किक नुस्खे आजमाए जाते हैं। योरप, अमरीका सहित दुनिया के 209 देश इन दिनों कोरोना वायरस संक्रमण की दहशत में हैं और लगभग सभी देश (चीन भी) अपनी पारम्परिक चिकित्सा पद्धतियों को आज़मा रहे हैं, लेकिन भारत में आधिकारिक चिकित्सा पद्धति होते हुए भी सरकार होमियोपैथी पर उतना भरोसा नहीं कर पाती जितना उसे एलोपैथी पर है। मैं स्वयं ब्रिटेन के दो कोरोना वायरस संक्रमित मरीजों का होमियोपैथिक दवा से मुकम्मल उपचार कर चुका हूं। महज एक हफ्ता पहले मोबाइल और इन्टरनेट के माध्यम से मेरे एक परिचित ब्रिटिश परिवार ने अपने फ्लू का इलाज पूछा और केवल होमियोपैथिक दवा की मदद से न केवल वे ठीक हुए बल्कि उन्होंने अपने परिवार के संक्रमित अन्य दो लोगों को भी ठीक किया। वे कोरोना वायरस संक्रमण से इतने दहशत में थे कि अस्पताल जाने के बजाय घर में ही उपचार चाहते थे। यह घटना मेरे रिकार्ड में है।
ऐसे ही मेरे मित्र तथा मुम्बई में रहने वाले देश और दुनिया के जाने माने होमियोपैथिक चिकित्सक डॉ. राजन शंकरन ने मुझे ईरान के होमियोपैथ डॉ. आदित्य कसारियान तथा इटली के होमियोपैथ डॉ. मसिमो मांगियालावोरि के हवाले से 100 से ज्यादा कोरोना वायरस संक्रमित व्यक्तियों के सफल इलाज के प्रमाण भेजे हैं लेकिन अनेक प्रयासों के बावजूद दिल्ली में हम लोगों को कोरोना वायरस प्रभावित मरीजों के इलाज की अनुमति नहीं मिली। दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री श्री सत्येन्द्र जैन की व्यक्तिगत दिलचस्पी के बावजूद भारत सरकार के भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इस प्रस्ताव में रुचि नहीं दिखायी।
जाहिर है कि वैश्विक महामारी में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के दिशानिर्देशों को मानना जरूरी होता है लेकिन लोगों की जान बचाने के लिए होमियोपैथी जैसी एक हानिरहित सूक्ष्मवैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति को मौका देकर सरकार एक बड़ा कदम उठा सकती है। एक होमियोपैथिक चिकित्सक एवं अनुसंधानकर्ता होने के नाते मुझे उम्मीद है कि परिणाम सकारामक ही आएंगे।
जाहिर है कि वैश्विक महामारी में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के दिशानिर्देशों को मानना जरूरी होता है लेकिन लोगों की जान बचाने के लिए होमियोपैथी जैसी एक हानिरहित सूक्ष्मवैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति को मौका देकर सरकार एक बड़ा कदम उठा सकती है। एक होमियोपैथिक चिकित्सक एवं अनुसंधानकर्ता होने के नाते मुझे उम्मीद है कि परिणाम सकारामक ही आएंगे।
होमियोपैथी की उपयोगिता पर लिखते हुए मुझे लगभग तीन दशक से ज्यादा हो चुके हैं और मैंने अब तक होमियोपैथी पर लिखे अपने सैकड़ों लेखों में यह बताने की कोशिश की है कि हर विज्ञान और विचार में कई सम्भावनाएं छिपी होती हैं। ज़रूरत है तो उसे प्रयोग में लाकर आज़माने की। होमियोपैथिक दवाओं के कार्य करने की पद्धति एकदम सरल है। जब कोई रोग एलोपैथिक दवाइयो से ठीक नहीं हो पाता है तब होमियोपैथी एक अच्छा विकल्प सिद्ध हो सकती है। लगभग समाप्त मान लिये गए पुनः लौट आए रोग होमियोपैथिक औषधियो द्वारा ही ठीक हो रहे हैं। बर्डफ्लू, सार्स एवं स्वाइन फ्लू जैसी संक्रामक एवं घातक बीमारियों का भय और आतंक होमियोपैथिक औषधियों द्वारा समाप्त किया जा सकता है। होमियोपैथी में जनस्वास्थ्य की चुनौतियों का सामना करने की बहुत बडी क्षमता विद्यमान है परन्तु आवश्यकता है होमियोपैथी में जनस्वास्थ्य की निहित संभावनाओं को उजागर कर उनका उपयोग किये जाने की।
होमियोपैथी के आविष्कारक डॉ. सैमुअल हैनिमैन (1755-1843), स्मालपॉक्स का टीका ईजाद करने वाले ब्रिटिश चिकित्सक एडवर्ड जेनर (1749-1823) तथा फ्रांस के सूक्ष्मजीव वैज्ञानिक लुई पास्चर (1822-1895) के शोधों की साम्यता और समय तथा परिस्थितियों को ध्यान से पढ़ें, तो आज लगभग 170 वर्षों बाद कोरोना वायरस महामारी ने वैसी ही परिस्थितियां दुनिया के सामने उत्पन्न कर दी हैं। यह वैश्विक मानवीय संकट की घड़ी है। अपने पूर्वाग्रहों को छोड़कर सभी मानवीय चिकित्सक और चिकित्सा संगठन तथा पद्धतियां सामने आएं और आपसी समन्वय से मरते लोगों के लिए ‘‘पेनासिया’’ (रामबाण दवा) की तलाश करें। यह सम्भव है। ज़रूरत है केवल पूर्वाग्रह को छोड़कर आगे आने की। पूरी दुनिया इस पहल का स्वागत करेगी। विश्व संकट की घड़ी में यह एक सुनहरा अवसर भी है।
कोरोना वायरस संक्रमण की स्थिति जल्दी नियंत्रण में आ जाएगी ऐसी उम्मीद नहीं दिखती क्योंकि वायरस प्रकृति की ऐसी ताकत से लैस हैं जिसमें उन्हे एन्टीवायरल दवाओं से मार पाना लगभग नामुमकिन है। हम जितना वायरसों के खिलाफ दवा ईजाद करते जाएंगे, ये वायरस और मजबूत होते जाएंगे। वायरस और इंसानों या जीवों के बीच यह युद्ध थोड़े समय के लिये विराम ले सकता है लेकिन इससे निश्चिन्त नहीं हुआ जा सकता कि मनुष्य दवा और वैक्सीन के बदौलत वायरसों पर विजय पा लेगा। 1918-19 का स्पैनिश फ्लू याद कर लीजिए। पांच से सात करोड़ लोग पूरी दुनिया में मरे थे। यह कोरोना वायरस भी उसी स्पैनिश फ्लू के खानदान का नया ताकतवर वारिस है।
मारने की थ्योरी से आगे सोचिए। वायरस के साथ एक मजबूत जीवनी शक्ति वाला मनुष्य या जीव ही जी सकता है। अमरीकी सूक्ष्मजीव विज्ञान अकादमी भी मान रही है कि वायरस क्रमिक विकास की प्राकृतिक ताकत से लैस हैं और वे हमेशा बिना रुके बदलते-बढ़ते रहेंगे और दवाओं पर भारी पड़ेंगे। इसलिए इन वायरसों से निबटने का तरीका कुछ नया तरीका सोचना होगा।
ये वायरस हौआ बन चुके हैं क्योंकि आज इनका नाम ऐसे लिया जा रहा है मानो ये किसी आतंकवादी संगठन के सदस्य हों। विज्ञापनों में भी वायरस को विध्वंसक दुश्मन के रूप में दिखाया जाता है ताकि इन्हें मारने वाले महंगे रसायन बेचे जा सकें। कोरोना वायरस के मामले में भी यही हो रहा है। आज वायरस के घातक असर से लोगों को बचाने के लिये नये चिंतन की ज़रूरत है। क्या हम वायरस, उसके प्रभाव, रोग और उपचार की विधि पर स्वस्थ चिंतन और चर्चा के लिये तैयार हैं?
लेखक जनस्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं