फेसबुक की अधिकारी आंखी दास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को “भारत का जॉर्ज बुश” मानती हैं। फेसबुक में 2011 में नौकरी शुरू करने के बाद तुरंत बाद 2012 में आंखी दास ने नरेंद्र मोदी का फेसबुक कैम्पेन संभाला और दस लाख फैन पहुंचने के मौके पर लिखा, ‘’हमारा गुजरात अभियान कामयाब हुआ’’। फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा को बहुमत मिला, तो आंखी दास ने लिखा, ‘’भारत को राजकीय समाजवाद से आखिरकार पिंड छुड़ाने में तीस साल की ज़मीनी मेहनत लगी है।‘’
ये तमाम बातें रविवार रात वॉल स्ट्रीट जर्नल पर प्रकाशित जेफ़ होरवित्ज़ और न्यूली पुर्नेल की ताज़ा स्टोरी में उजागर हुई हैं। भारतीय जनता पार्टी और फेसबुक के रिश्तों पर वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक स्टोरी से विवादों में आयीं फेसबुक की नीति निदेशक (भारत, दक्षिण एशिया और मध्य एशिया) आंखी दास के बारे में कुछ चौंकाने वाली सूचनाएं अख़बार ने जारी की हैं। देर रात प्रकाशित इस स्टोरी में नरेंद्र मोदी और भाजपा के सम्बंध में आंखी दास के आंतरिक संदेशों का उद्घाटन किया गया है।
वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक यह सिलसिला कई साल से चल रहा था। आंखी दास द्वारा भाजपा के घोर समर्थन और कांग्रेस को बदनाम करने की कोशिशों को फेसबुक के कर्मचारी कंपनी की नीति का उल्लंघन मानते थे, जिसका संकल्प दुनिया भर के चुनावों में खुद को राजनीतिक रूप से तटस्थ रखना है।
लोकसभा चुनाव 2014 के नतीजे आने से एक दिन पहले ही आंखी दास ने नरेंद्र मोदी के कैंपेन पर एक पोस्ट लिखी थी, ‘’हमने उनके सोशल मीडिया कैंपेन में आग लगा दी, उसके बाद बाकी सब इतिहास है।‘’ मोदी के कैंपेन में दास ने फेसबुक की शीर्ष ग्लोबल इलेक्शन अधिकारी केटी हरबाथ को ‘’सबसे पुरानी हमसफ़र’’ का दरजा देते हुए श्रेय दिया था। एक तस्वीर में मोदी और हरबाथ के बीच दास मुस्कराते हुए खड़ी नज़र आती हैं।
स्टोरी बताती है कि कुछ कर्मचारियों के अनुसार दास की भावनाएं और हरकतें कंपनी की तटस्थता के संकल्प के विपरीत जाती थीं। जिन पोस्टों का जिक्र वॉल स्ट्रीट जर्नल की स्टोरी में किया गया है, वे 2012 से 2014 के बीच की हैं। यानी इनकी शुरुआत आंखी दास के फेसबुक में घुसने के एक साल बाद शुरू होती है और मोदी की जीत पर जाकर खत्म होती है। ये सारी पोस्ट फेसबुक इंडिया के कर्मचारियों के एक समूह में लिखी गयी थीं जिसके सैकड़ों कर्मचारी सदस्य थे।
दास ने 2011 में जब फेसबुक ज्वाइन किया, उस वक्त कंपनी कई राजनीतिक दलों के लिए अपना प्रशिक्षण शुरू कर चुकी थी। इसी में एक था 2012 में मोदी का चुनावी कैंपेन, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे। यह विधानसभा चुनाव जीतने के बाद मोदी ने तत्काल राष्ट्रीय स्तर के चुनाव के लिए कैंपेन शुरू कर दिया, जिसमें प्रशिक्षण और सहयोग फेसबुक का था। रिपब्लिकन पार्टी की विचारधारा वाली सुश्री हरबाथ ने 2013 में एक आंतरिक पोस्ट में लिखा था कि आंखी दास, नरेंद्र मोदी को ‘’भारत का जॉर्ज बुश’’ मानती हैं।
दास को अपनी राजनीतिक आस्था सामने रखने में कोई संकोच नहीं होता था। स्टोरी कहती है कि जब एक सहकर्मी ने उनकी एक आंतरिक पोस्ट पर प्रतिक्रिया दी कि मोदी के पेज से कहीं ज्यादा कांग्रेस के फॉलोवर फेसबुक पर हैं, तब दास का उसे जवाब था: ‘कांग्रेस से उनकी तुलना कर के उन्हें नीचा मत दिखाओ। ओह, ख़ैर… मुझे अपना पक्ष नहीं ज़ाहिर करना चाहिए!!!”
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान आंखी दास अपने साथी कर्मचारियों के साथ बीजेपी के आंतरिक आकलन को साझा करती थीं जिसमें मोदी की जीत बतायी जा रही थी। वे उनसे कहती थीं कि उन्हें यह ‘’बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता और करीबी दोस्त से प्राप्त हुआ है।‘’
इस स्टोरी में एक और बात जो पहली बार सामने आयी है वो यह है कि भाजपा ने फेसबुक की विज्ञापन नीति में राजनीतिक विज्ञापनों से जुड़ी पारदर्शिता का उल्लंघन किया लेकिन यह जानने के बावजूद कंपनी ने पार्टी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।
इन नियमों के मुताबिक विज्ञापनदाताओं को अपनी पहचान की पुष्टि करवानी होती है और फेसबुक यूजरों के सामने अपनी पहचान उजागर करनी होती है। फेसबुक के विज्ञापन अपने नाम से खरीदने के अलावा भाजपा ने सैकड़ों हज़ार डॉलर नए बने संगठनों के माध्यम से विज्ञापन में निवेश किया, जिन्होंने ऐसा करते वक्त पार्टी की भूमिका को उजागर नहीं किया।
इसका पता चलने पर फेसबुक ने न तो विज्ञापन हटाए न ही पेज, बल्कि आंतरिक स्तर पर भाजपा से बात की और मुद्दा उठाया। ऐसा भारत और अमेरिका के पूर्व फेसबुक कर्मचारियों का कहना है।
एक और दिलचस्प बात इस रिपोर्ट में सामने आयी है कि फेसबुक इंडिया सीधे कैलिफोर्निया के मेनलो पार्क स्थित फेसबुक मुख्यालय को रिपोर्ट करता है लेकिन आंखी दास की टीम को इससे विशेष छूट मिली हुई है। उनके ऊपर न तो फेसबुक की एशिया टीम की निगरानी है और न ही फेसबुक की वैश्विक सार्वजनिक नीति टीम उन पर निगरानी रखती है।
आंखी दास ने कई बार भेजे सवालों के बावजूद वॉल स्ट्रीट जर्नल को अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी है, हालांकि एक आंतरिक संदेश में उन्होंने अपने सहकर्मियों से एक मुस्लिम विरोधी पोस्ट के लिए माफी ज़रूर मांगी है।
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