बनारस के प्रशासन ने शहर के एक व्यापारी नेता राकेश जैन को कड़ा नोटिस भेजा है। इल्जाम यह है कि व्यापारी नेता ने बनारस के कोविड रोगियों की मुश्किलों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सीधी बात करने की हिमाकत की और बाद में अपने संवाद को सोशल मीडिया पर प्रसारित कर दिया। बनारस के जिलाधिकारी को यह नागवार इसलिए गुजरा कि व्यापारी नेता ने हुक्मरानों का कच्चा चिट्ठा मुख्यमंत्री के सामने खोल दिया। यह भी बता दिया कि बनारस के कुछ प्राइवेट अस्पताल कोरोना मरीजों को किस तरह से लूट रहे हैं और नौकरशाह सिर्फ तमाशा देख रहे हैं।
इसके बाद मुख्यमंत्री ने बनारस प्रशासन के कस्टोडियन को फटकार लगायी तो वे बुरा मान गए और व्यापारी पर गोपनीयता के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए नोटिस भेजकर तीन दिन के अंदर जवाब मांग लिया। पुलिस के जरिये भेजवाये गये नोटिस में वैधानिक कार्रवाई का अल्टिमेटम दिया गया। बनारस भर के व्यापारिक संगठनों के पदाधिकारियों ने 26 अगस्त को कमिश्नर कार्यालय में पत्रक देकर इस विवाद को सुलझाने की मांग की है।
व्यापारियों ने एकमत होकर मांग की है कि जनहित में उठायी गयी आवाज को नोटिस देकर दबाने की प्रवृत्ति बंद की जाए। इस प्रकरण के बाद बनारस में व्यापार जगत और जिला प्रशासन आमने सामने आ चुके हैं। सवाल उठ रहा है कि आखिर बनारस की सरकार का कनटोप रोज़-रोज़ क्यों उड़ जाता है?
खेल देखिए। राकेश जैन को धमकाने के लिए सोशल मीडिया पर जो नोटिस वायरल हुआ उस पर कलेक्टर का दस्तखत तक नहीं है। जाहिर है कि बगैर दस्तखत के कोई नोटिस किसी पास नहीं पहुंचता। दूसरी बात, बनारस प्रशासन ने व्यापारियों की समस्याओं को हल करने के लिए जो सुनवाई पोर्टल बनवाया था, उसे आनन-फानन में डिलीट कर दिया। सवाल उठता है कि प्रशासन की पोल खोलने वाले सुनवाई पोर्टल को अचानक क्यों बंद कर दिया गया? जनसुनवाई पोर्टल होता तो ‘बनारस की सरकार’ की नाकामी की पोल खोलता? जांच से पहले ही सुबूत मिटा दिया गया।
तीसरी बात, बनारस में कोविड मरीजों की जेब पर डाका डालने वाले दो नामी अस्पतालों को 22 अगस्त, 2020 को आनन-फानन में नोटिस क्यों जारी किया गया? इस मामले को विस्तार से समझना होगा। बनारस के एक बड़े भाजपा नेता के सगे भाई संजय सिंह आरटीआइ एक्टिविस्ट हैं। इन्होंने शहर के उन सभी अस्पतालों की सूची हासिल कर ली है जिसमें दर्जनों ऐसे अस्पताल शहर में धड़ल्ले से कोरोना मरीजों इलाज कर रहे हैं जिनके पास प्रदूषण नियंत्रण और फायर विभाग की एनओसी तक नहीं है।
यह हाल तब है जब गुजरात के एक निजी अस्पताल में आग लगने से कोरोना के कई मरीज हाल में जिंदा जल गये थे। कोरोना के नाम पर लूटपाट का धंधा चला रहे निजी अस्पतालों के कारनामे तो ऐसे हैं जिन्हें सुन लेंगे किसी के किसी पसीने छूटने लगेंगे। खेल जो भी, लेकिन जनहित से जुड़ी बातचीत एक सार्वजनिक मसला है जिसका गोपनीयता से कोई सम्बंध कायदे से नहीं होना चाहिए अलबत्ता ऐसे किसी कदम से योगी सरकार की साफ-सुथरी चमकदार छवि जरूर बनती है।
शर्मनाक यह है कि 20 मार्च के बाद कोरोना के चलते बनारस में लॉकडाउन हुआ, लेकिन पांच महीने गुजर जाने के बावजूद महामारी की रोकथाम के लिए शहर में इलाज की जरूरी बुनियादी सुविधाएं अब तक नहीं जुटायी जा सकी। बनारस में इलाज के अभाव में पत्रकार राकेश चतुर्वेदी की जान चली गयी। एडिशनल सीएमओ की मौत हो गयी और परिजनों को किसी और अधिकारी के पिता की लाश पकड़ा दी गयी।
कुप्रबंधन से क्षुब्ध कोरोना का इलाज कराने वाला नौजवान बीएचयू अस्पताल की इमारत से कूदकर जान दे देता है। कोरोना के रोगी आस्पताल से गायब हो जाते हैं। इन सब से तो बनारस की सरकार की नाक नहीं कटती। नाक कटती है तो मुख्यमंत्री से हुई बातचीत के आडियो के वायरल होने से।
संजय सिंह पिछले साल से लगातार बनारस के निजी अस्पतालों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर मुख्यमंत्री को पत्र लिख रहे हैं। ताज़ा पत्र उन्होंने 1 जुलाई 2020 को लिखा था और दो चुनिंदा अस्पतालों को प्रशासन की ओर से नोटिस अगस्त में जारी किया जाता है।
New-Doc-2020-06-30-20.48.45हमें लगता है कि व्यापारी नेता ने कहने का जो तरीका खोजा वो मुख्यमंत्री की बात जनहित में जनता तक पहुंचाने की कोशिश की भर थी। वायरल आडियो कोविड मरीजों को राहत पहुंचाने का एक बड़ा जरिया था और कोविड के दौर में समय के तालमेल में था।
बनारसियों को कलेक्टर भूरेलाल अब तक याद हैं, जो अस्सी के बहुचर्चित कवि सम्मेलन को हर हाल में बंद कराने की अकड़ दिखाते हुए भारी पुलिस फोर्स के साथ पहुंचे थे और चकाचक बनारसी की कविताएं सुनकर भाग खड़े हुए थे। हर किसी को मालूम है कि बनारस लड़ता भी है और लड़ाता भी है। यहां सिर्फ सांफ-नेवले की लड़ाई नहीं होती। मुर्गा, कबूतर, तीतर-बटेर, ललमुनिया से लेकर बकरे, भैसें ऊंट और बाबा की नंदी तक लड़ते और लड़ाये जाते रहे हैं। बेहतर हो कि हम फिलहाल कोविड से लड़ें, अपनों से लड़ने के लिए पूरी जिंदगी पड़ी है।
बनारस की सरकार को ऐसी भाषा और शैली का इस्तेमाल करना चाहिए जिसमें ईमानदारी हो, नैतिकता हो और बाजार खोलने के लिए रोज-रोज नियम-कानून बदलाव करने के बजाय व्यवस्थित तरीके से रोजगार, काम-धंधा व नौकरी करने में लचीलापन हो।
विजय विनीत जनसन्देश टाइम्स, बनारस के प्रभारी हैं