सिक्किम के चारों (उत्तर, पूर्व, पश्चिम और दक्षिण) जिलों में जून के पहले पखवाड़े के दौरान किए गए एक टेलीफोन सर्वेक्षण से यह पता चला है कि दो-तिहाई से अधिक परिवारों की आय औसतन आधे से भी कम हो गई है। 90 फीसदी लोगों को आशंका है कि लॉकडाउन से पहले की उनकी आय के मुकाबले अगले छह महीनों में उनकी आय में गिरावट आएगी। एक सार्वभौमिक रोजगार गारंटी योजना समय की मांग है। 40 फीसदी परिवारों को मुफ्त राशन नहीं मिला है और 95 फीसदी से अधिक परिवारों को मुफ्त गैस सिलेंडर या जन-धन खाते में कोई पैसा नहीं मिला है, जैसा कि मार्च में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत वादा किया गया था। कोविड-19 बीमारी से इतर दूसरे रोगों से ग्रस्त 50 फीसद मरीजों को अप्रैल और मई के महीनों में लॉकडाउन के कारण इलाज में दिक्कत का सामना करना पड़ा। किफायती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं व सरकारी योजनाओं के कुशल कार्यान्वयन के साथ-साथ कुछ नकद हस्तांतरण भी बहुत अनिवार्य है। हमारा नमूना निश्चित रूप से प्रतिनिधि नमूना नहीं है फिर भी यह हमें लॉकडाउन के दौरान राज्य में जमीनी हालात के बारे में कुछ संकेत जरूर देता है।
सिक्किम में कोविड-19 लॉकडाउन के आर्थिक प्रभाव को समझने के लिए हमने जून, 2020 के महीने में 693 लोगों को कवर करने के लिए 150 फोन कॉल किए हैं। हमारे नमूने में बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और नेपाल के 23 प्रवासी कामगार परिवार थे। हमारे नमूने में शामिल परिवारों की औसत मासिक पारिवारिक आय 2 हजार रुपये से लेकर 2 लाख रुपये है। इस उत्तर-पूर्व के पर्वतीय राज्य में प्रति व्यक्ति आय 525 रुपये से 50 हजार रुपये प्रतिमाह के बीच है जिसका औसत है प्रतिमाह 7208 रुपये। सर्वे में शामिल 150 उत्तरदाता विविध व्यावसायिक पृष्ठभूमि से थे- किसान, छोटी दुकान के मालिक, नाई, मिस्त्री, व्यवसायी, राजमिस्त्री, सरकारी कर्मचारी, मनरेगा कार्यकर्ता, आशा कार्यकर्ता, सीमा के व्यापारी, दिहाड़ी मजदूर, ड्राइवर, सुरक्षाकर्मी, बढ़ई, होमस्टे के मालिक, इत्यादि। 19 से 78 वर्ष के बीच की आयु की 44 महिला और 106 पुरुष उत्तरदाता थे। इनमें से 26 बौद्ध थे, 26 ईसाई, 4 मुसलमान और 94 हिंदू हमारे नमूने में शामिल थे। उत्तरदाताओं में 36 अनुसूचित जनजाति से, 2 अति पिछड़े समुदायों से, 4 अनुसूचित जातियों से, 28 सामान्य से और बाकी 80 उत्तरदाता अन्य पिछड़ी जाति की पृष्ठभूमि से थे। 150 परिवारों में कुल 336 पुरुष और 358 महिला सदस्य थे और कमाने वाले 174 पुरुष और 87 महिला सदस्य थे। परिवार का आकार 2 से 16 सदस्यों के बीच था जिसमें औसत परिवार का आकार 4.6 सदस्य वाला था। इनमें कमाने वाले सदस्यों की संख्या 1 से 3 थी, केवल 13 परिवार ऐसे थे जिनमें इकलौती कमाने वाली सदस्य महिला थी।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्षों में से एक यह है कि कुल 150 में से केवल 47 उत्तरदाताओं (यानी एक तिहाई से कम) ने बताया है कि लॉकडाउन के दौरान उनकी आय में कमी नहीं आई है। बाकी 103 उत्तरदाताओं (दो-तिहाई से अधिक) के लिए, उनकी लॉकडाउन से पहले की औसत आय की तुलना में अब उनकी आय आधे से भी कम (51 फीसदी गिरावट) हो गई है। पांच उत्तरदाताओं ने बताया है कि अप्रैल और मई के महीनों के दौरान उनकी आय बिल्कुल शून्य हो गई है। 150 उत्तरदाताओं में से केवल 12 (यानी सिर्फ 8 फीसदी) ऐसे हैं जिन्हें उम्मीद है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद के छह महीनों में उनकी औसत मासिक आय पहले जैसी बरकरार रहेगी।
कोई भी प्रवासी कामगार अपने मूल स्थानों पर वापस नहीं जाना चाहता क्योंकि वहां रोजगार के अवसर बहुत कम हैं। 115 उत्तरदाताओं (75 फीसदी से अधिक) यह महसूस करते हैं कि शहरी क्षेत्रों में अत्यधिक रोजगार असुरक्षा और कमज़ोर आय के चलते वहां भी रोजगार मुहैया कराने के लिए मनरेगा जैसे अंतिम उपाय अपनाने होंगे। हमारे नमूने में शामिल लोगों में एक-तिहाई से अधिक उत्तरदाताओं के पास पहले से ही मनरेगा जॉब कार्ड हैं और उनमें से कुछ ने इन नौकरियों के प्रावधान के संबंध में संतोष भी व्यक्त किया है। शहरी क्षेत्रों के लोगों के पास मनरेगा जैसी कोई रोजगार गारंटी नहीं है और वहां रहने वाले अधिकांश कामगार चाहते हैं कि ऐसी ही एक योजना शहर में भी लागू हो। सर्वे में शामिल 34 उत्तरदाताओं ने बताया है कि अप्रैल और मई के दौरान उनके परिवारों में कोविड-19 के अलावा दूसरी बीमारियों के कुछ मामले थे। इनमें से 17 उत्तरदाताओं (50 फीसदी) का कहना था कि लॉकडाउन के कारण उनके इलाज में दिक्कत आयी थी।
जहां तक मार्च में पीएम गरीब कल्याण योजना में किए गए तीन ठोस वादों की बात है, तो सर्वे में शामिल व्यक्तियों से पूछा गया था कि क्या उनके जनधन खाते में मुफ्त राशन, पैसा (500 रुपये) और मुफ्त गैस सिलेंडर मिला है। हमारे नमूने में प्रति व्यक्ति 24 हजार रुपये से अधिक की मासिक आय वाले केवल दो परिवार हैं, लेकिन 40 फीसदी से ज्यादा (150 में से 62) उत्तरदाताओं ने बताया है कि घोषणा के दो महीने बाद भी लॉकडाउन के दौरान उन्हें मुफ्त राशन नहीं मिला है। केवल 7 उत्तरदाताओं ने बताया है कि उन्हें अपने जन-धन खाते में धन प्राप्त हुआ है। अन्य ने या तो यह कहा है कि उनके परिवारों में ऐसा कोई खाता ही नहीं है या फिर उन्हें कोई धन नहीं मिला है। 150 में से सिर्फ 2 लोगों ने कहा है कि सिक्किम में लॉकडाउन के दौरान उन्हें मुफ्त गैस सिलेंडर मिला है।
लॉकडाउन के दौरान सीमा पार वाहनों की आवाजाही ठप होने के कारण अंतरराज्यीय सीमा व्यापार और पर्यटन क्षेत्र को बुरी तरह से नुकसान उठाना पड़ा है। पर्यटन व्यवसाय और व्यापार में लगे वाहन मालिकों और ड्राइवरों को इसके चलते भारी नुकसान उठाना पड़ा है और वे अपनी ईएमआई और वाहन ऋण चुकाने में असमर्थ हैं। जब तक स्थिति सामान्य नहीं होती है, बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों से कहा जा सकता है कि तब तक वे ऋणों की अदायगी में कुछ छूट प्रदान करें। खासकर गरीबों और जरूरतमंदों को अपने कर्ज के बोझ को कम करने के लिए नकदी हस्तांतरण की सख्त मांग है। इस संकट के चलते दुकानों और मकानों के किराए का भुगतान कई लोगों के लिए भारी पड़ रहा है और इस मामले में सरकार के हस्तक्षेप की मांग उठ रही है। यहां गरीब लोगों के लिए मॉडल मकान उपलब्ध कराने की भी एक मांग है। सरकार से मांग की जा रही है कि राज्य में हर जगह कोरोना वायरस के मुफ़्त परीक्षण के लिए लैब स्थापित किए जाएँ और कोविड-19 के मरीजों के लिए संगरोध केंद्रों में सुविधाओं को सुधारा जाये।
लोग पढ़े-लिखे युवाओं सहित सभी के लिए किसी न किसी तरह की रोजगार गारंटी योजना की मांग कर रहे हैं। योजना के सर्वभौमिकरण के साथ मनरेगा में दिहाड़ी बढ़ाने की भी मांग की गई है। निजी संस्थानों में स्वास्थ्य और शैक्षणिक सेवाओं की लागत कम करने की मांग की गई है। कई लोग दूरदराज के क्षेत्रों में गरीबों और जरूरतमंदों को मास्क और सैनिटाइजर सहित भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति करने का सुझाव दे रहे हैं। भ्रष्टाचार मुक्त सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत करने की पुरजोर मांग की जा रही है। यहां के किसानों ने इस कमजोर स्थिति से उबरने के लिए मुफ्त बीज और पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराने की तत्काल अपील की है। लॉकडाउन के दौरान वस्तुओं और लोगों के लिए परिवहन सुविधाओं का उपयुक्त प्रबंधन भी प्रमुख मांगों में से एक है। एक सुझाव यह है कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी नीतियों और योजनाओं को जमीन पर प्रभावी ढंग से लागू किया जाए। छोटे व्यवसायों को दोबारा अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए मजबूत समर्थन की जरूरत है। लोग सुझाव दे रहे हैं कि मौजूदा संकट के तहत स्वास्थ्य और आर्थिक लड़ाई दोनों को एक साथ लड़ने के लिए सरकार की उचित रणनीति होनी चाहिए और लोगों को स्पष्ट रूप से सरकार की योजना के बारे में बताया जाना चाहिए। आशा है, उनकी आवाज सुनने में देरी नहीं की जाएगी।
सुरजीत दास जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं और अब्दुल हान्नान सिक्किम विश्वविद्यालय, गंगटोक के भूगोल विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं। इस शोध में सहयोग देने के लिए लेखकद्वय सुश्री निर्जला राय, सुश्री केसांग चोडेन शेरपा और श्री चेतराज शर्मा के बेहद आभारी हैं।