सीमाएँ खोलना, कुछ रेलगाड़ियाँ शुरू करना भी अपर्याप्त और अर्धसफल!


आज, उपवास के तीसरे दिन, मध्यप्रदेश – महाराष्ट्र से गुजरने वाले राष्ट्रीय महामार्ग पर बैठे हुए हम देख और जान रहे है कि देश के करोड़ो श्रमिकों के साथ शासनकर्ताओं का बर्ताव “लॉकडाउन” में कुछ बदल रहा है तो कैसा और कहाँ तक?

अब राज्यों के बीच की सीमाएँ खुलने के बावजूद कई श्रमिक, हर दिन सैकड़ों की तादाद में पैदल ही सीमा पार कर रहे हैं। जिनके पास आर्थिक संसाधन बचे नहीं हैं, जिन्हें मालिकों से, आदेश के बावजूद वेतन नहीं मिल रहा, उन्हें अपने खर्चे से साधन करना असंभव है। लेकिन बड़े प्रयास के साथ किसी वाहन से आते है तो उन्हें कई वाहन चालकों / मालिकों ने फंसाते हुए वे हमारे उपवास स्थल पर पहुंचते हैं।

यहां आने वाले सब महाराष्ट्र से आते हुए भुगती समस्याएं बयां कर रहे हैं। प्रदीप वर्मा, उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले का, वहां रहे अपने माता पिता, अपनी पत्नी और बच्चों की चिंता से मानसिक संतुलन खो बैठा है। उसे पुलिस ने लाठियों से भांजकर जख्मी कर दिया और वह जिस गाड़ी से आ रहा था, उसमें उसके फोन्स और ATM कार्ड भी चुराया गया। नासिक से बैटरी फॅक्टरी में काम करने वाले चार युवा आये हैं। उन्हें ठेकेदार और मालिक ने खाना खिलाया लेकिन लॉकडाउन के काल में कोई वेतन नही दिया तो वे भी पैदल निकलकर मध्य प्रदेश पहुंच गये।

महाराष्ट्र शासन ने अभी, देर से ही, हजारों एस.टी. बसें उपलब्ध करना तय किया है लेकिन एक भी बस इस मार्ग से गुजरी नहीं है, जिससे मध्य प्रदेश के विविध जिले, उत्तर प्रदेश के सभी जिले एवं बिहार तक के श्रमिक गुजर रहे हैं। ये एस.टी. बसें किसी श्रमिक को पैदल चलने नहीं देंगी, इस प्रकार के शासकीय आदेश लेकर अगर रास्ते में मिले पदयात्रियों को भी उठा लेते हैं, तो ठीक! मुम्बई ने रेलगाड़ियाँ निकलना तय किया है या शुरू किया है तो उसकी जानकारी श्रमिकों तक पहले ही क्यों नहीं पहुंचाई है यह सवाल आता है, वहींं से 500/600 किमी पैदल चलकर पहुंचे श्रमिकों को देखकर!

ये श्रमिक कभी माफ न करें उन शासनकर्ताओं को जो कि 15 हवाई जहाज सफर तय करके 15000 विदेश में फंसे लोगों को अगले दिनों में भारत लौटाएंगे, तो क्या मजदूरों को नहीं लौटा सकते?

हमारा मानना है कि हम जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं को जगह जगह पुलिस चौकी, टोल नाका खड़े करने वाली शासन मुफ्त पास देकर सभी महत्व के मार्गों पर निगरानी रखने दे, हमारा सहयोग शासन मंजूर करे। हम तैयार हैं। वह भी हमारा सत्याग्रही कार्य का दूसरा दौर हो सकता है, लेकिन आज तक शासन संवेदना जबकि श्रमिकों के प्रति नहीं दिखाई दे रही है, तब ऐसे नया governance क्या शुरू करेंगे?

आज भी अवैध या गोपनीय तरीके से, बिना मेडिकल टेस्ट, हर गाड़ी में भरसक संख्या में श्रमिकों को कहीं केवल अपनी जिम्मेदारी और भीड़ ठूंस ठूंस कर भरना, हटाने के लिए सीमा खुली करना पर्याप्त नहीं है। हर राज्य में, हर जिले में प्रशासकीय अधिकारी जनता के साथ, धरातल पर सक्रिय कार्यकर्ताओं को जोड़ दे तो ही गरीबों, श्रमिकों को प्राथमिकता मिल पाएगी।

 एम.डी. चौबे(केंद्रीय मानव अधिकार संरक्षक) 
मेधा पाटकर (नर्मदा बचाओ आंदोलन, जन आंदोलनो का राष्ट्रीय समन्वय, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति)


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