पंचतत्व: फ्लावर नहीं, फायर है मैं!


आप अगर सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं, खासकर शॉर्ट वीडियो देखते रहते हैं तो पक्का आपने देखा होगा कि इन प्लेटफॉर्मों पर मौजूद आधे लोग लंगड़ाकर चलते हुए चप्पल खोल रहे हैं और फिर एक संवाद पर लिप सिंक कर रहे हैं, ‘पुष्पा… पुष्पाराज नाम सुनकर फ्लावर समझा क्या, फायर है मैं!

आपके जेहन में भले ही इस संवाद के साथ अल्लू अर्जुन का रस्टिक चेहरा उभर रहा है, मेरे सामने फूलगोभी ही उभरता रहा है। असल में, पर्यावरणीय मसलों पर बात करते समय हम हमेशा पानी, हवा, मिट्टी में प्रदूषण की बात करते हैं, पर हम लोग अपने आसपास की छोटी चीजों के बारे में जानना नहीं चाहते।

आखिर आप गोभी के बारे में क्या जानते हैं?

गूगल पर सर्च करेंगे तो आपको कुछ लिंक मिलेंगे, मसलन गोभी खाने के दस फायदे, गोभी से कैसे होती है गैस, पर आपके काम की ज्यादा चीज हासिल नहीं होगी क्योंकि हम लोग अपने आसपास की चीजों के बारे में अधिक उत्सुक नहीं होते।

पहली बात कि अल्लू अर्जुन की जगह अगर फूलगोभी यह कहे कि नाम सुनकर फ्लावर समझा क्या… तो यह गलत नहीं होगा। याद कीजिए, फिल्म चुपके-चुपके में अंग्रेजी के प्रोफेसर बने अमिताभ बच्चन, जो वसुधा (जया बच्चन) को बॉटनी पढ़ाने में फंस जाते हैं और फिर बताते हैं कि गेंदा का फूल, फूल होकर भी वैसे ही फूल नहीं है जैसे गोभी का फूल, फूल होकर भी फूल नहीं है।
तो पहली बात, गोभी पुष्प नहीं पुष्पक्रम (यानी फूलों का गुच्छा) है।

कुछ दिनों पहले विदेशी चीजों के विरोध को लेकर कई तरह के मेसेज आए थे। क्या आपने कभी सोचा था कि गोभी भी विदेशी है? तो दूसरी बात कि गोभी विदेशी है और हमारी सब्जियों की सूची में महज डेढ़ सौ साल पुराना है। इसको खेतों में उगाने की शुरुआत भूमध्यसागरीय इलाके में हुई थी। यह बात भी बहुत ज्यादा नहीं कोई डेढ़ हजार साल पुरानी है जब साइप्रस टापू पर गोभी को खेतों (और बाड़ियों) में उगाने की शुरुआत हुई थी। साइप्रस से यह सीरिया, तुर्की, मिस्र, इटली, स्पेन और पश्चिमोत्तर यूरोप में फैल गया।

सहारनपुर, उत्तर प्रदेश में कंपनी बाग के प्रभारी थे डॉ. जेम्सन

भारत में डेढ़ सौ साल से गोभी की खेती हो रही है पर भारत में आज से ठीक दो सौ साल पहले 1822 में डॉ. जेम्सन इंग्लैंड से गोभी के बीज पहली बार भारत लेकर आए थे। वह सहारनपुर, उत्तर प्रदेश में कंपनी बाग के प्रभारी थे। उन आयातित बीजों को देश के विभिन्न हिस्सों में उगाने का परीक्षण किया जाने लगा था। असल में, यहां एक गलती हो गई- इंग्लैंड में गोभी उगाने का समय था मई से जुलाई, तो भारत में भी उसी समय में गोभी उगाया जाने लगा। अब जिन महीनों में इंग्लैंड में प्यारी सी धूप खिला करती है उन्हीं महीनों भारत का मैदान तवे की तरह तपता है, ऐसे में क्या होना चाहिए था? फसल मर जाती! लेकिन कमाल यह है कि मरी नहीं।

फूलगोभी की कुछ किस्मों ने हिंदुस्तानी आबोहवा में खुद को वैसे ही ढाल लिया, जैसे शक, हूण, कुषाण और ऐसे अन्य बाहरी समुदायों ने ढाल लिया और इनमें से कुछ किस्में गोभी की अगैती फसलों में तब्दील हो गईं (यानी जो गर्म और आर्द्र जलवायु में भी उग जाती हैं)। समय के साथ किसानों ने इनमें से मुफीद किस्मों का चयन करना शुरू किया और उनके देसी बीज तैयार करने लगे। ऐसे में देसी बीजों से तैयार फसलें आयातित बीजों से तैयार फसलों के मुकाबले बेहतर नतीजे देने लगी थीं। इन किस्मों से गोभी की एक नई ही किस्म तैयार हो गई जिसको भारतीय गोभी कहा जाता है।

1929 में पहली भारतीय किस्मों का नामकरण किया गया और इनको पटना अगैती, पटना मेन क्रॉप, बनारस अगैती और बनारस मेन क्रॉप कहा गया। वैसे, भारत में आज गोभी हर सब्जी बाजार में है। मेरी राय मानें तो सब्जियों में फूलगोभी का वही स्थान है जो लोककथाओ में फूलवंती का है। देश में 2.5 लाख हेक्टेयर में इसकी खेती होती है।

ब्रोकली और बंदगोभी के साथ यह कोल परिवार का सदस्य माना जाता है, पर बड़े तौर पर सरसों, मूली वगैरह के साथ एक बड़े कुल का है। इसका जंगली बंदगोभी बिरादर अब भी पश्चिमी और दक्षिणी यूरोप और उत्तरी अफ्रीका में पाया जाता है। वैसे, बंदगोभी और गोभी में एकाध जीन भर का फर्क है, बाकी सब सेम टू सेम!

बंदगोभी और गोभी में एकाध जीन भर का फर्क है, बाकी सब सेम टू सेम!

हमारे शहर में गोभी अपने समूचे सौंदर्य के साथ नमूदार होती थी- जड़ों के साथ पूरा पौधा। मेट्रो शहरों में तो आपको सिर्फ फूल मिलता है। छोटे शहरों में गोभी जड़ समेत मिलती थी। गोभी को आप गौर से देखेंगे तो इसकी चार किस्मों को समझ जाएंगे। पहली किस्म जिसमें चारों पत्ते (चार ही पत्ते होते हैं एक क्रम में) बाहर की तरफ निकले होते हैं और बीच से गोभी का फूल ऊपर की ओर उभरा होता है। दूसरी किस्म में चारों पत्ते एकदम सीधे ऊपर की ओर उठे होते हैं और बीच में फूल थोड़ा छोटा होता है। दो और किस्में होती हैं जिनमें पहले और दूसरी किस्मों के गुण मिलते हैं।

जो भी हो, भारतीय रसोई में गोभी अब करीबन सालों भर मौजूद रहती है पर जाड़ों में इसकी बहार रहती है। जाड़ों में सीजन होने की वजह से इसकी कीमत आम आदमी की जद में आ जाती थी, पर कीमत के लिहाज से जाड़े में उफान के वक्त भी फूलगोभी सामान्य बाजार में 60 रुपए किलो और ऑनलाइन दुकानों पर 45 रुपए नग बिक रही है। तो अब कहिए, सही बैठा न डायलॉग- फूलगोभी फ्लावर नहीं, फायर है इन दिनों!



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