प्रधानमंत्री मोदी के बारे में कुछ वाक्य कहना अब ‘क्लीशे’ लगता है। जैसे, वह बहुत कमाल के कम्युनिकेटर हैं, वह प्रतीकों के माध्यम से बेहद तीखे और सीधे संदेश देते हैं, वह अपनी कांस्टीच्युएंसी को एड्रेस करना बखूबी जानते हैं या वह किसी भी सामान्य घटना को एक इवेंट के तौर पर बदल देते हैं। पिछले सात वर्षों से पूरा देश इन बातों से बाबस्ता है। उससे पहले भी जो लोग राजनीति या पत्रकारिता की बंद-ओ-स्याह गलियों से गुजरते थे तो उन्हें पता था कि मोदी नाम का ‘एनिग्मा’ गुजरात से निकलकर पूरे देश पर छाने की तैयारी कर रहा है।
विषयांतर से पहले चलिए जरा बिहार चलते हैं। वहां मोदी के ‘बेतनॉय’ (bête noire) नीतीश कुमार पीएम के जन्मदिन पर बिहार का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान (कोविड) चलाने जा रहे हैं। वहीं, बिहार भाजपा ने तो अपने कार्यालय में 71 फीट का सैंडआर्ट ही बनवा दिया है, प्रधानसेवक के नाम पर। पिछले साल तक भाजपाई केवल ‘सेवा सप्ताह’ चला कर बेचारे बिहारियों को बख्श देते थे, लेकिन अब से ‘समर्पण के साथ सेवा’ पूरे 15 दिनों तक उपलब्ध होगा। जो बिहारी सेवा लेने से इंकार करेगा तो उसे पटककर, चहलकर, उसकी छाती पर चढ़कर उसकी सेवा की जाएगी। यही बिहारी भाजपाइयों का संकल्प है।
हमारे विरोध की घृणा या तीव्रता अक्सर हमें उस रकीब, उस दुश्मन, उस प्रतिद्वंद्वी में बदल देती है। यह किसी महान दार्शनिक ने कहा या नहीं, मुझे नहीं पता, लेकिन एक औचक निगाह आप डालेंगे, तो पाएंगे कि यह घिसी-पिटी कहावत भी कितनी समीचीन है। स्टीफन स्वाइग या एडगर एलन पो की कहानियों के मशहूर पात्र हों या फिर मोदी-समर्थक और मोदी-विरोधी, यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री भी इस बात को साबित कर चुके हैं कि किसी लक्ष्य को लेकर बढ़ने की होड़ में उन्होंने यह देखा ही नहीं कि वह अपने पीछे कितनी गंदगी छोड़ कर जा रहे हैं।
कांग्रेसमुक्त भारत बनाते-बनाते प्रचारक नरेंद्रभाई दामोदरदास आज खुद का वह हास्यास्पद कैरिकेचर हो गए हैं, जो शरद जोशी के शब्दों में ‘सनातन भारतीय’ हैं क्योंकि हरेक भारतीय तो मूल रूप से ‘कांग्रेसी’ है- भ्रष्ट, बेमुरव्वत और स्वार्थी। जो व्यक्ति जवानों के बलिदान की वजह से अपनी दीवाली स्थगित कर देता है, वही अपने जन्मदिन का यह भोंडा प्रदर्शन कैसे सहता है, कांग्रेसी चापलूसी और चाटुकारिता के धुर्रे उड़ानेवाला यह आदमी अपने नाम पर क्रिकेट स्टेडियम कैसे बनने देता है और देश का प्रधानमंत्री होने के बावजूद किसी प्राइवेट कंपनी (जियो) को उनके प्रोडक्ट के प्रचार में अपना ‘प्रोडक्ट’ बेचने कैसे देता है?
आप किसी भी तथाकथित समाजवादी प्राइवेट लिमिटेड का हाल देख लीजिए। उसके पितृ-पुरुष या मातृ-स्त्री को माइनस कीजिए, वह पार्टी अर्राकर ढह जाएगी। लालू प्रसाद की राजद हो या नीतीश कुमार की जेडीयू, बहनजी की बसपा हो या ममता दी की तृणमूल, जयललिता के बाद अन्नाद्रमुक का हाल दिख ही रहा है और द्रमुक के स्टालिन चूंकि समय रहते अपनी जड़ जमा चुके थे, तो एक पीढ़ी शायद और द्रमुक अपनी दुकान चला ले। शिवसेना का हाल उतना ही बुरा है और बीजद का बीजू पटनायक के बाद क्या हाल होगा, यह हम अनुमान लगा ही सकते हैं।
कम्युनिस्ट और भाजपा, ये दो ही दल ऐसे थे जो काडर-बेस्ड होने के अलावा व्यक्ति-पूजा की बीमारी से थोड़े-बहुत बचे हुए थे। कम्युनिस्टों ने अपने इतने टुकड़े कर लिए कि अब उनको गिनने वाले भी नहीं बचे, लेकिन ज्योति बसु जैसे कद्दावर नेता को भी नाथ दिया। जनसंघ में मधोक को तो भाजपा ने आडवाणी जैसे कद के नेता को झुका दिया। उसकी व्याख्याएं आप जो भी करें, लेकिन वामपंथ और दक्षिणपंथ की नुमाइंदगी करने वाले दलों ने ही लीडरशिप को एक परिवार या एक व्यक्तित्त्व तक महदूद नहीं रखा। दल से बड़ा कोई भी व्यक्ति नहीं, यह सीखना हो तो भाजपा और वामपंथी दलों को ही देखना होगा। हाल ही में सीपीआइ ने जिस तरह वर्तमान प्रगतिशीलों, लिबरलों के दुलरुआ कन्हैया को हाशिये पर डाला है, उसे बिहारी भाषा में टकुआ के जैसा सीधा करना कहते हैं।
इन सभी बातों के बरक्स प्रधानसेवक के जन्मदिन के नाम पर हो रही अश्लीलता को देखिए। गरीबों को दिए जा रहे अनाज के झोले पर उनकी तस्वीर हो या फिर लद्दाख की वादी में बिल्कुल अकेले खड़े फोटो सेशन करवाती फोटो हो, डरावनी बात तो यह है कि आज भाजपा से बड़ा कद नरेन्द्र मोदी का हो गया है। यह ठीक है कि आप तर्क दे दें कि आपके समर्थक जबरन ऐसा कर रहे हैं, लेकिन यही तर्क तो नेहरू-गांधी परिवार के लोग भी देते हैं। कांग्रेस के लोग चाहते हैं कि वे प्रधान बने रहें, वरना सोनिया-राहुल की तो इच्छा ही नहीं है, जी।
और प्रधानमंत्री महोदय, आज आपकी पार्टी में कोई भी नेता ऐसा है, जिसे आप कुछ कहें और वह न सुने। सीरियसली? आप चाहते हैं कि हम इस चुटकुले पर यकीन करें। आपका अकेलापन डरावना नहीं है, महाशय। शीर्ष पर तो बहुत कम जगह होती है, वहां तो व्यक्ति अकेला ही होता है। चुभनेवाली बात यह है कि पिछले सात वर्षों से राजनीति से लेकर हमारे जीवन के हरेक आयाम तक आपका समर्थन या विरोध ही एकमात्र विषय है, मुद्दा है और परीक्षा है। यह कौन सा देश बना लिया आपने? डरानेवाली बात यह है कि आपके सारे मंत्री ‘इनसिग्निफिकैन्ट’ यानी अ-महत्वपूर्ण हो गए हैं। रविशंकर प्रसाद की जगह वैष्णव क्यों आए, यह न कोई जानता है, न जानने की इच्छा रखता है। आपने चाहा तो ठीक ही चाहा होगा, यह जो आरामतलबी तर्क प्रसारित हो गया है न, भाजपा में, वह डराता है।
गडकरी की बात डराती है, सीएम और मिनिस्टर्स का डर डराता है, किसी को आपके अगले मूव, अगली चाल का पता न होना डराता है। सूचनाओं का एकतरफा प्रवाह डराता है, शासन का बिल्कुल केंद्रशासित हो जाना डराता है। आज ट्विटर पर हो रहे ख़तरनाक ट्रेंड डरा रहे हैं, एक गुट भक्तएंथम ट्रेंड कर रहा है, तो दूसरा अखंड पनौती दिवस ट्रेंड करवा रहा है, समाज का इतना तीखा बंटवारा डरा रहा है। आपमें और इंदिरा गांधी में फिर फर्क कहां रह जाएगा, मुख्यमंत्रियों का उठना-बैठना अगर आपके इशारे पर है, तो उस इशारे और आपके इशारे में अंतर क्या है, आपकी मेगैलोमैनियक केंद्रीयता और इंदिरा की तानाशाही में अंतर क्या है?
याद रखिए, इंदिरा को भी इस देश ने धूल चटा दी थी और आपको पैदा कर दिया। इंदिरा के बाद कांग्रेस का हश्र भी आप अपनी करनी से बना-बिगाड़ ही रहे हैं।
इतिहास बहुत क्रूर होता है, प्रधानसेवक महोदय।
जन्मदिन की शुभकामनाएं।
– वह दक्षिणपंथी, जो इस देश में दक्षिणपंथ के उदय का इंतजार कर रहा है।