पेरिस समझौते के बाद IMF ने एक-तिहाई देशों को ऊर्जा पर सब्सिडी खत्म करने को कहा था: रिपोर्ट


अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने पेरिस समझौते के बाद से अपने आधे से अधिक सदस्य देशों को जीवाश्म ईंधन के बुनियादी ढांचे का विस्तार करने के लिए प्रेरित किया है। इसके अलावा सभी देशों में से एक-तिहाई को ऊर्जा सब्सिडी समाप्त करने की सलाह दी गई थी। आइएमएफ की ऐसी सलाह से वैश्विक जलवायु लक्ष्यों की प्राप्ति का रास्ता काफी कमज़ोर भी हुआ है।

एक्शनऐड और ब्रेटन वुड्स प्रोजेक्ट द्वारा किये एक नये शोध से पता चलता है कि आइएमएफ ने अपनी नीतिगत सलाह  से जीवाश्म ईंधन के विस्तार को बढ़ावा देकर ग्लोबल क्लाइमेट कार्रवाई को कमज़ोर कर दिया है और विकासशील देशों को कोयले और गैस पर निर्भरता में बांध दिया है। लम्बे समय में ऐसा करना न सिर्फ इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं को बल्कि पृथ्वी को भी नुकसान पहुंचा रहा है।

आइएमएफ सर्विलांस एंड क्लाइमेट चेंज ट्रांज़िशन रिस्क्स शीर्षक की यह रिपोर्ट दिसंबर 2015 में पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर और इस साल मार्च के बीच आइएमएफ के 190 सदस्य देशों में आयोजित सभी 595 अनुच्छेद IV रिपोर्टों के विश्लेषण पर आधारित है। अनुच्छेद IV रिपोर्टों में उन देशों के लिए नीतिगत सलाह शामिल है जो आने वाले वर्षों के लिए अपनी अर्थव्यवस्थाओं को आकार देती हैं।

रिपोर्ट की मुख्य बातें

एक्शनऐड USA और ब्रेटन वुड्स प्रोजेक्ट द्वारा प्रकाशित विश्लेषण में पाया गया है कि 2015 में पेरिस समझौता होने के बाद से आइएमएफ ने:

  • आधे से अधिक सदस्य देशों (105) में आइएमएफ की नीतिगत सलाह- चूंकि विश्व के नेता उत्सर्जन को कम करने के लिए राष्ट्रीय कार्रवाई के माध्यम से ग्लोबल वार्मिंग को 1.5C तक सीमित करने पर सहमत हुए हैं- ने जीवाश्म ईंधन के बुनियादी ढांचे के विस्तार का समर्थन किया है। इससे देशों को ‘स्ट्रैन्डेड अस्सेट्स’ (फंसी हुई संपत्ति) के साथ फंसे रह जाने का ख़तरा होता है, जैसे कोयला संयंत्र जो स्वच्छ ऊर्जा से प्रतिस्पर्धा के कारण अपना मूल्य खो देते हैं और साथ ही वैश्विक जलवायु लक्ष्यों और रिन्यूएबल ऊर्जा के लिए एक उचित ट्रांजिशन की विपरीत दिशा बनाते हैं।
  • एक तिहाई देशों (69) में आइएमएफ ने सार्वजनिक खर्च को कम करने के लिए राज्य के स्वामित्व वाली ऊर्जा या बिजली उपयोगिताओं के निजीकरण की पैरवी की है। निजीकरण सरकारों को विदेशी निवेशकों के साथ दीर्घकालिक समझौतों में बाँध सकता है और उनके लिए जीवाश्म-आधारित ऊर्जा को समाप्त करना मुश्किल बना सकता है।
  • सभी देशों में से एक तिहाई को ऊर्जा सब्सिडी समाप्त करने की सलाह दी गई थी- एक ऐसा क्षेत्र जिसे आइएमएफ अर्थव्यवस्थाओं को डीकार्बनाइज़ करने के लिए पहले कदम के रूप में तेज़ी से स्थापित कर रहा है लेकिन शोध में पाया गया कि सलाह मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन उत्पादन के लाभों को समाप्त करने के बजाय उपभोक्ता सब्सिडी पर केंद्रित है। अधिकांश विकासशील देशों में जीवाश्म-आधारित ऊर्जा और परिवहन के थोड़े ही विकल्पों के साथ- जीवाश्म ईंधन कंपनियों को दी जाने वाली उदार सब्सिडी से निपटने के बजाय- इससे आम नागरिकों के कंधों पर लागत को बढ़ाते हुए, बड़े पैमाने पर उत्सर्जन को कम करने की संभावना नहीं है।
  • इसके विपरीत आइएमएफ जीवाश्म ईंधन आपूर्ति कंपनियों को दी जाने वाली उदार सब्सिडी में कटौती करने की सलाह नहीं देता है।
  • रिपोर्ट कहती है कि “कुछ मामलों में जीवाश्म ईंधन राजस्व धाराओं और संभावित विकास के अवसरों के आसपास अत्यधिक आशावाद था। जीवाश्म ईंधन उद्योगों का उल्लेख अक्सर निवेश या विकास के अवसरों के रूप में किया जाता था। यह घाना, तंजानिया, युगांडा और मोजाम्बिक सहित कई अफ्रीकी देशों में बढ़ते एक्सट्रैक्टिव (निष्कर्षण) उद्योगों में सबसे उल्लेखनीय था। उदाहरण के लिए, एक ट्रिलियन डॉलर मूल्य के कोयले के भंडार का हवाला देते हुए मंगोलिया के लिए 2017 की अनुच्छेद IV रिपोर्ट चीनी बिजली संयंत्रों को निर्यात करने के अवसर के रूप में कोयला एक्सट्रैक्शन (निष्कर्षण) को प्रोत्साहित करती है, अगर ‘चीन पर्यावरणीय कारणों से अपने स्वयं के कोयला उद्योग को कम करता है’।”

मोज़ाम्बिक को प्रदान की गई सलाह के विश्लेषण में पाया गया कि आइएमएफ ने कोयले की खोजों से भविष्य के विकास को ज़्यादा करके आंका- एक “कोल बूम” की भविष्यवाणी करते हुए, जो दक्षिणी अफ्रीकी देश को दुनिया के प्रमुख कोयला निर्यातकों में से एक बनाती और बहुत बड़े नए राजस्व की ओर ले जाती।

इसी तरह, फ्रांसीसी जीवाश्म ईंधन की दिग्गज कंपनी टोटल ने जब इस साल की शुरुआत में अपनी LNG परियोजना को रद्द कर दिया तब मोज़ाम्बिक को गैस निर्यात से राजस्व के बारे में आइएमएफ की सलाह ने और अधिक परेशानी में डाल दिया।

इस बीच, आइएमएफ नीतिगत सलाह ने इंडोनेशिया में जीवाश्म ईंधन के भारी इस्तेमाल के बावजूद देश में कोयले से संबंधित संभावित मैक्रो-स्थिरता मुद्दों को काफ़ी हद तक नजरअंदाज कर दिया है। इंडोनेशिया में निर्माण पूर्व चरण में 52 कोयला संयंत्र हैं, जो विश्व स्तर पर चीन के बाद दूसरे स्थान पर है।

कोयले पर यह अत्यधिक निर्भरता, कोयला खदानों के एक स्ट्रैन्डेड अस्सेट (फंसी हुई संपत्ति) बनने का एक स्पष्ट और तत्काल जोखिम प्रस्तुत करती है। विश्व स्तर पर 2,500 कोयला संयंत्रों के एक विश्लेषण में पाया गया कि 2025 तक 73% कोयला खदान अपना मूल्य खो देंगे।

इस बीच, फंड ने ऊर्जा क्षेत्र के निजीकरण को आगे बढ़ाया है।

रिपोर्ट ऐसे वक़्त पर आयी है जब आइएमएफ अपने देश के सर्विलांस मैंडेट (निगरानी जनादेश) में जलवायु मुद्दों को एकीकृत करना शुरू कर रहा है जो देशों की वित्तीय नीतियों, समग्र आर्थिक स्थितियों को मॉनिटर करता है और प्रमुख जोखिमों की पहचान करता है।

दोनों जलवायु परिवर्तन ‘ट्रांज़िशन रिस्क्स’ का आकलन करने के लिए प्रतिबद्धता देते हैं- यानी, सभी देशों में- कम कार्बन ट्रांज़िशन के कारण जीवाश्म ईंधन और संबंधित बुनियादी ढांचे या संपत्ति के मूल्य में कमी, हालांकि इस बारे में विवरण अभी विकसित नहीं किया गया है कि आइएमएफ ऐसा कैसे करेगा।

जलवायु मुद्दों की ओर आइएमएफ का परिवर्तन का उन सदस्य देशों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा जो इसकी नीतिगत सलाह प्राप्त करते हैं। लेकिन यह आइएमएफ की नीति रूढ़िवाद, जो अक्सर कार्बन-गहन स्रोतों के माध्यम से सार्वजनिक खर्च को कम करने और निर्यात राजस्व में वृद्धि सुनिश्चित करने पर केंद्रित होता है, के लिए एक सीधी चुनौती प्रस्तुत करता है।

ब्रेटन वुड्स प्रोजेक्ट के पर्यावरण परियोजना प्रबंधक जॉन स्वार्ड कहते हैं:

इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड हाल के महीनों में कम कार्बन ट्रांज़िशन की आवश्यकता का मुखर समर्थक रहा है, लेकिन यह रिपोर्ट दिखाती है कि पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद से आइएमएफ के अनुच्छेद IV सर्विलांस ने बिज़नेस ऐज़ यूजुअल (हमेशा की तरह के व्यापार) का समर्थन किया गया है, जिससे कई देशों की जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता और बढ़ गई है।

एक्शनऐड और ब्रेटन वुड्स प्रोजेक्ट का तर्क है कि आइएमएफ को कम से कम यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी नीतिगत सलाहें असमानताओं को न बढ़ाएं और जलवायु पर कार्रवाई करने वाले देशों के प्रयासों को कमज़ोर न करें।

एक्शनऐड USA की कार्यकारी निदेशक और जलवायु वित्त विशेषज्ञ निरंजलि अमरसिंघे कहती हैं:

दुनिया पारिस्थितिक पतन की कगार पर है। आइएमएफ को अब यह सुनिश्चित करने के लिए कार्य करना चाहिए कि देशों के पास अपनी जलवायु योजनाओं को लागू करने और सस्टेनेबल विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वित्तीय गुंजाइश हो। आइएमएफ को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी नीतिगत सलाह देशों के लिए रिन्यूएबल ऊर्जा में ट्रांजिशन को कठिन नहीं बल्कि आसान बनाये।

एक्शनऐड और ब्रेटन वुड्स प्रोजेक्ट की अन्य सलाहों में जीवाश्म ईंधन उत्पादकों के लिए सब्सिडी को समाप्त करने और रिन्यूएबल ऊर्जा में निवेश बढ़ाने की दिशा में काम करना शामिल है।


Climateकहानी के सौजन्य से


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