आजकल इंतज़ार है। कोई पूछे क्या चल रहा है तो लोग कह रहे हैं- इंतज़ार। किसी को किसी का इंतज़ार बना रहता है, इसमें कोई नयी बात नहीं है। सभी को एक साथ कुछ एक-सा हो जाने का इंतज़ार कभी-कभी ही होता है। जहां घनघोर बारिश हो रही है, वहां लोग बारिश थम जाने का इंतज़ार कर रहे हैं। जहां बिलकुल भी बारिश नहीं हुई है अब तक वहां लोग बारिश का इंतज़ार कर रहे हैं। एक हो चुकी घोषणा और उसमें किसी वजह से पैदा हो गयी खलल के बावजूद सरकारी कर्मचारी वेतन-भत्ते बढ़ने का इंतज़ार कर रहे हैं। कुछ लोग केवल इस वजह से अपनी गाड़ियों की तेल की टंकी नहीं भरवा रहे हैं क्योंकि तेल के दाम अभी बहुत ज़्यादा हैं। वे तेल के दाम कम होने का इंतज़ार कर रहे हैं।
सरकार फिलहाल कोरोना की तीसरी लहर का इंतज़ार कर रही है। लहरों से निपटने के इंतज़ाम करने से ज़्यादा मुफीद काम है लहरों के आने का इंतज़ार करना। इसमें कुछ करना नहीं होता है। इंतज़ाम करने में राजकाज चलाने की काबिलियत की ज़रूरत होती है। इंतज़ार करने के लिए किसी खास काबिलियत की ज़रूरत नहीं होती। जब लहरें आ जाएंगी, तो लहरों के चले जाने का इंतज़ार किया जा सकता है। और यही लोग करना सीख गये हैं।
अगर सदी में एक बार महामारी आती है तो हर सदी एक बार इस इंतज़ार शब्द को अपनी पूरी प्रभावशीलता, गहनता और गतिशीलता में आज़मा भी लेती है। चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोग भी बढ़-चढ़कर इस इंतज़ार अभियान में हिस्सा ले रहे हैं और पूरे देशवासियों को भी प्रेरित कर रहे हैं। इंतज़ार की इन गहन घड़ियों में वो तीसरी लहर के निकट आने की संभावनाओं पर भी बीच-बीच में चर्चा किये जा रहे हैं ताकि अपने सालाना ऑडिट में यह बता सकेंगे कि जब कुछ खास करने को नहीं था तब हमने इंतज़ार किया। अगर ऑडिट में सवाल आया कि जब लहर मौजूद थी तब क्या किया, तो भी इस शब्द से काम चल सकता है कि जनाब, उस वक़्त हमने लहर के चले जाने या थम जाने का इंतज़ार किया।
मीडिया इस दोष से मुक्त है। वह इंतज़ार नहीं करता। वह कतई मुंहफट है। कुछ हुआ नहीं कि उस होने से बड़ी कहानी हाजिर कर दी जाएगी। बाद में जब पता चलेगा कि ऐसा तो कुछ हुआ ही नहीं था तब उनके पास फुर्ती की एक उम्दा नज़ीर होगी। उन्हें इंतज़ार नहीं है। अगर होगा भी तो केवल इस बात का (शायद) कि कल बोले गये झूठ को भूलने में देश की जनता को कितना वक़्त लगेगा।
इंतज़ार को इस सदी का शब्द होना चाहिए। जो स्वस्थ रह पाये इस दौर में भी, उन्हें आगे भी स्वस्थ रहने का एक मज़बूत भ्रम देने में कामयाब रही वैक्सीन का इंतज़ार है। जिनका अपना कोई चला गया उन्हें कई बातों का इंतज़ार है। गये हुए का मृत्यु प्रमाण-पत्र एक लंबे इंतज़ार की मांग कर रहा है। मृत्यु प्रमाण-पत्र में मृत्यु के कारण लिखे जाने का इंतज़ार भी कोई कम पेंचोखम की बात नहीं है। प्रमाण-पत्र मिल जाना केवल हासिल नहीं है बल्कि जिस वजह से उस प्रमाण-पत्र का इंतज़ार था उस मुआवज़े का भी लंबा इंतज़ार है।
मुआवज़ा देना सरकार का दायित्व है। सरकार इससे भाग रही है। कोर्ट उसके पीछे भाग रहा है। इस भागमभाग में जिन्हें वाकई एक-एक पैसे की ज़रूरत है वे इंतज़ार कर रहे हैं- कब इनकी भागमभाग खत्म हो और एक उचित मुआवजा मिले। आज कोर्ट ने कह दिया, लेकिन छह हफ्तों के इंतज़ार की पूर्वपीठिका भी रच दी है। अब छह हफ्तों का इंतज़ार केवल इसलिए क्योंकि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण एक गाइडलाइन कोर्ट में जमा करेगा कि वो कोविड-19 की वजह से जान गंवा चुके लोगों के परिजनों को कितना और कैसे मुआवजा देगा। गाइडलाइन पेश हो जाने के बाद भी इंतज़ार खत्म नहीं होगा। यह बना रहेगा, जैसे किसी आयी हुई लहर के आने का अंदेशा या इंतज़ार बना रहेगा।
जिनके रोजगार ठप पड़ गये, नौकरियां चली गयीं, काम-धंधे बंद हो गये, उन्हें सबसे पहले काम-धंधे शुरू हो जाने लायक माहौल का इंतज़ार है। माहौल बन भी गया तो उनका इंतज़ार है जिनके दम पर ये काम-धंधे चल रहे थे। जिनके सहारे ये काम-धंधे चल रहे थे वो तो किसी और ही परिस्थिति के इंतज़ार में मुब्तिला हैं। सब एक-दूसरे का किस-किस तरह से इंतज़ार करते हैं यह बात शायद सामूहिक स्मृति से भुलायी जा चुकी थी। इसे इस महामारी ने फिर से साकार कर दिया है। यहां पूरा देश और समाज एक दूसरे के इंतज़ार में है। अगर ठीक से इस इंतज़ार की ध्वनियाँ सुनी जाएं तो असल में सारे लोग एक-दूसरे की बेहतरी के इंतज़ार में हैं। कोई केवल अपने लिए प्रार्थना नहीं कर रहा है, बल्कि उसकी प्रार्थना में सबके लिए कुछ न कुछ मांगा जा रहा है। इतनी साफ-शफ़्फ़ाक सच्चाई फिर भी मौजूदा नफ़रतों के सामने खेत क्यों हो रही है? लोग क्या नफ़रतें मिट जाने का इंतज़ार नहीं कर रहे हैं?
दिल्ली की सीमाओं पर बीते सात महीने से बैठे किसान सरकार से मुकम्मल बातचीत का इंतज़ार कर रहे हैं। सरकार किसी भी तरह से किसानों की रुखसती का इंतज़ार कर रही है। किसान सरकार से बातचीत के लिए हरसंभव और हर तरह से लोकतान्त्रिक व्यवहार व वाजिब कोशिशें कर रहे हैं जिसके आधार पर वो इंतज़ार कर रहे हैं कि सरकार उनकी मांगें मान ले। सरकार बिना किसी कोशिश के ही उनकी रुखसती का इंतज़ार कर रही है। क्या दो तरह के इन इंतज़ारों के स्वर एक हैं?
सरकार इस आंदोलन के बदनाम हो जाने का इंतज़ार कर रही है। बदनाम करने के सारे इंतजाम भी कर रही है। आज ही सरकार के अपने दल के लंपटों को किसानों के सामने ला खड़ा कर दिया गया ताकि दोनों में भिड़ंत हो। जब भिड़ंत होगी तो सरकार को अपनी एजेंसियों को भेजने का मौका मिलेगा। एजेंसियां, जो सात महीनों से वहां जाकर अपनी करतूतें सिद्ध करने का इंतज़ार कर रही थीं, यहां पहुँचें और लंबे समय से स्टैंड बाय मोड पर पड़ी कानून की धाराओं का इंतज़ार खत्म कराएं। उन्हें अमल में लाएं। यह कोई कोशिश नहीं है और आखिरी भी नहीं। इन कोशिशों के बीच माहौल बनाने के इंतज़ार में हलकान पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं से अब इंतज़ार नहीं हो रहा। इन्हें बड़ी ज़ोर से लंपटपने का दौरा पड़ा हुआ है। सामने यूपी का चुनाव जो खड़ा है!
बरहवीं की परीक्षा का इंतज़ार करते हुए बच्चे अब बारहवीं के प्रतिशत के फार्मूले का इंतज़ार करके हलकान हुए जा रहे हैं। उससे भी ज़्यादा उस फार्मूले के इर्द-गिर्द चल रही चर्चाओं से। खबर है कि ग्यारहवीं भी जुड़ेगा, प्री-बोर्ड भी जुड़ेगा और पता नहीं क्या-क्या जुड़ेगा। अब जो पढ़ाई के लिए गंभीर होने के नियत समय का इंतज़ार कर रहे हैं वो अफसोस मना रहे हैं कि काश! ग्यारहवीं के काल से ही कोताही न बरती होती और बारहवीं का इंतज़ार न किया होता तो इस फार्मूले में कुछ अच्छा हासिल हो जाता।
इंतज़ार करने वालों की फेहरिस्त बहुत लंबी हो सकती है। ऊपर बात उन इंतज़ारों की हुई जो आज की परिस्थितियों में इंतज़ार करने को अभिशप्त बना दिये गये हैं। मुफ्त राशन की घोषणाओं के इंतज़ार के बाद अब लोग राशन वितरण की जगहों पर इंतज़ार कर रहे हैं। लोग पूरी तरह ‘सरकार’ और सरकारों के ऊपर निर्भर होते जा रहे हैं। उधर सरकार खुद आत्मनिर्भर भारत बन जाने का इंतज़ार कर रही है। यह समय की सबसे बड़ी चिकोटी है जो सबको एक साथ काटी जा रही है।
इंतज़ार करते-करते लोग एक-दूसरे के इंतज़ार में शामिल होते जा रहे हैं। सबके इंतज़ार अब एकमेक होते जा रहे हैं। दुख की परिस्थितियों में केवल दुख ही एक से नहीं होते बल्कि उन दुखों से मुक्ति के इंतज़ार भी एक से हो जाते हैं। खैर, सबके अपने-अपने इंतज़ार हैं, लेकिन इन इंतज़ारों में सबसे बड़ा इंतज़ार कहीं उस ख़्वाहिश का है कि ये परिस्थितियां बदलें। इन परिस्थितियों का निर्माण करने वाली सत्ता बदले और सत्ता बदलने के लिए ज़रूरी देश की बहुसंख्यक आबादी जो खुद के असुरक्षित हो जाने के तसव्वुर में जिये जा रही है उसकी असुरक्षा का इंतज़ार खत्म हो।
कुल मिलाकर दो ही सूरतें हैं जिसका इंतज़ार यह महादेश कर रहा है। देखते हैं पहले कौन सा इंतज़ार खत्म होता है।