दक्षिणावर्त: भाजपा वो हाथी है जिसे अपनी पूंछ नहीं दिख रही… और मोदी ये बात जानते हैं!


साहित्य और उसमें भी क्लासिक (कालजयी) रचनाओं की इतनी प्रशंसा इसीलिए की गयी है, क्योंकि उसकी बातें समय की शिला पर घिसकर भी उतनी ही नवीन, उतनी ही मौजूं रहती हैं। बहुत वर्षों पहले प्रेमचंद ने अपनी कहानी पंच-परमेश्वर में लिखा था, “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है। जब हम राह भूलकर भटकने लगते हैं, तब यही ज्ञान हमारा विश्वसनीय पथ-प्रदर्शक होता है। पत्र-संपादक अपनी शांत कुटी में बैठा किस धृष्टता और स्वतंत्रता के साथ अपनी प्रबल लेखनी से मंत्रिमंडल पर आक्रमण करता है, परंतु ऐसे अवसर आते हैं, जब वह स्वयं मंत्रिमंडल में शामिल होता है। मंडल के भवन में कदम रखते ही उसकी लेखनी कितनी मर्मज्ञ, विचारशील और न्याय-पारायण हो जाती है। इसका कारण उत्तरदायित्व का ज्ञान है।”

स्थायी तौर पर ‘कु-नियंत्रित प्रक्षेपास्त्र’ (मिसगाइडेड मिसाइल) सुब्रमण्यम स्वामी ने जब ट्वीट के जरिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को कोविड महामारी से निपटने वाली टीम का मुखिया बनाया तो बरबस ही प्रेमचंद और उनकी कालजयी कहानी का यह अंश याद आ गया। मोदी को बिन मांगे सलाह कोई पहली बार नहीं मिली है, लेकिन हां, बंगाल चुनाव के बाद उनकी बाढ़ आ गयी है। यहां तक कि अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले की आंच में झुलसे नामचीन पत्रकार शेखर गुप्ता ने भी प्रधानसेवक को ‘अपनी टीम’ बदलने की सलाह हाल में ही दी है। सभी जानते हैं कि गुप्ता जी में इतनी हिम्मत नहीं कि वह खुद मोदीजी को नाकारा बताते हुए इस्तीफा मांग लें, इसलिए वह टट्टी-ओट शिकार कर रहे हैं, लेकिन कई बार फेक-न्यूज शेयर कर चुके ‘द प्रिंट’ के नामी संपादक मई 2020 में विपक्षी दलों को अमेरिकी थिंक-टैंक रैंड कॉरपोरेशन के एक लेख का हवाला देकर फेक-न्यूज छापने की भी सलाह दे चुके हैं। शेखर गुप्ता की हालिया सलाह को, उनके व्यक्तित्व और इतिहास के हवाले से ही देखना चाहिए।

बात हालांकि गडकरी और उन्हें मोदी के बाद या मोदी का ‘उत्तराधिकारी’ बनाने की हो रही थी। यह बात कोई नयी भी नहीं है और पाठकों को थोड़ा याद दिलाना उचित होगा कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान, पहले और उसके बाद भी गडकरी को ‘प्रधानसेवक’ के प्रतिद्वंद्वी के तौर पर खड़ा किया गया। वह एक मंत्री के तौर पर काम अच्छा कर रहे हैं, इसमें संदेह नहीं, लेकिन उनके साथ मिली कुछ सौगातों को भी हमें नहीं भूलना चाहिए। पहली बात तो यह है कि मोदी ने उन्हें काम करने की पूरी छूट दी हुई है (प्रचलित धारणा के विपरीत)। यही कारण है कि मुख्यमंत्रियों की बैठक में जब हेमंत सोरेन ने उन्हें ट्रोल करने की कोशिश की, तो आत्मविश्वास से दीप्त गडकरी ने उनको चुनौती दी कि वे 5 हजार करोड़ रुपए की योजना प्रस्तावित करें और झारखंड में उसे अमली जामा गडकरी का मंत्रालय पहनाएगा। इसके विपरीत मोदी की सीएम के साथ मीटिंग याद करें, जिसमें केजरीवाल किसी छठी क्लास के ऊबे बच्चे की तरह देहभाषा और भाषा के साथ मौजूद थे, लेकिन लोगों को याद दिलाया गया कि मोदी की वजह से पूरे देश में ऑक्सीजन की किल्लत है।

दूसरी बात, गडकरी का काम टैंजिबल है, दिखता है, लोग महसूस कर सकते हैं, हालांकि गडकरी की सफलता के पीछे उन राज्यों की हिकमत भी है जो जमीन अधिग्रहण से लेकर मुआवजे के कामों को पूरा करने में पूरी रुचि रख रहे हैं। बिहार के हाजीपुर से मुजफ्फरपुर की लगभग पांच-छह किलोमीटर की सड़क करीबन एक दशक तक नहीं बनी। गडकरी के राज में भी वह अधूरी रही। वजह, राज्य सरकार की वही अकर्मण्यता और लापरवाही रही, लोगों का मुआवजे के लिए आंदोलन रहा।

गडकरी 2009 से 2013 तक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे। उस दौरान भाजपा का क्या प्रदर्शन रहा, यह भी देखने लायक है। भाजपा के अंदर उनकी कितनी पहुंच और स्वीकार्यता है, यह भी एक कसौटी होगी वरना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मराठी लॉबी की पहुंच मात्र होने से कोई भाजपा या देश का नेता नहीं हो जाता। यह ठीक बात है कि संघ के चितपावन ब्राह्मणों की पसंद गडकरी हैं, वे गो-गेटर भी हैं और उनका अपना अहं भी संघ के शीर्ष नेतृत्व से नहीं टकराता। हिंदूवादी लॉबी भी ऐसे नेता को पसंद करेगी और इसीलिए स्वामी ने उनका नाम उछाल दिया है। मोदी के बारे में जिनको याद नहीं है, उन्हें एक बार विहिप के प्रवीण तोगड़िया का हश्र याद करना चाहिए। उ.प्र. में योगी आदित्यनाथ को भी सत्ता इसी समझौते से मिली थी कि वे हिंदू-वाहिनी को तुरंत भंग या डिफंक्ट कर देंगे, यह भी याद रखना चाहिए। गडकरी पर पूर्ति घोटाले से लेकर बेनामी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के घोटाले के भी छींटे हैं, यह भी याद रखना चाहिए।

अस्तु, मोदी के पास रास्ता क्या है? उनके पास बाहरी चुनौतियां जितनी हैं, उससे कहीं अधिक उनके दल के भीतर से हैं। बस, एक उदाहरण और देकर अपनी बात समझाऊंगा। बिहार में मंगल पांडेय जैसे स्वास्थ्य मंत्री मानो काफी नहीं थे, तो छपरा के सांसद राजीव प्रताप रूड़ी जी ने कई एंबुलेंस अपने घर में खड़े कर लिए थे। मोदी के ऊपर अक्सर अति-केंद्रीयता और मंत्रियों को फ्री-हैंड न देने के जो आरोप लगते हैं, मुझे लगता है कि उन्हें भी अपने मंत्रियों की ‘औकात’ पता है, इसीलिए वे गडकरी को अगर खुली छूट देते हैं, तो जावड़ेकर को छूट देने के दुष्परिणाम भी जानते हैं।

मोदी को अपना रास्ता पता है और समय से वह बखूबी वैसा करेंगे भी, हालांकि हमारे यहां न तो मुफ्त और गजब की सलाह देनेवाले ‘स्वामियों’ की कमी है, न ही ‘कौआ कान ले गया’ सुनकर कौए के पीछे भागनेवाले ‘गुप्ताओं’ की। हाल ही में बंगाल चुनाव के बाद चार दशक से राजनीति कर रहे अमित शाह को भी एक ईवेंट मैनेजर के साथ तुलित कर किस तरह रगेदा गया, यह भी हमने देखा है जबकि यू.पी. में उसी मैनेजर का क्या हाल हुआ था, यह भी सब भूल गए।

मोदी हालांकि अधिकतम तीसरी पारी खेल सकते हैं, यानी 2024 में वह भाजपा के उम्मीदवार रहेंगे। फिलहाल, जो हालात हैं उसमें वह जीत कर भी आएंगे, क्योंकि विपक्ष पूरी तरह बिखरा है और उसके पास इतने अधिक नेता और पार्टी हैं कि वह एक हो भी नहीं पाएगा। अगर शीर्ष पर रहते हुए मोदी मैदान छोड़ना चाहते हैं, तो उन्हें दो-तीन काम करने चाहिए, यदि यह बिन मांगी सलाह सुनी जाए।

पहला तो उन्हें तत्काल प्रभाव से आइटी सेल को भंग कर देना चाहिए। यह बहुत मजे की बात है कि मोदी के लिए बिना किसी आर्थिक परिणाम की अपेक्षा किए जो लोग लगातार बैटिंग कर रहे हैं, वे इस देश के साधारण जन हैं, किसी आइटी सेल के कर्ताधर्ता नहीं। आइटी सेल से कभी जुड़ा होने के कारण यह लेखक इस बात को बारहां दोहरा चुका है कि आइटी सेल को हरेक जगह घुसेड़ देने की रवीशीय औऱ स्वरा भास्करीय प्रवृत्ति से हमें बचना चाहिए। उन लोगों को जो गाली दे रहे हैं, ट्रोल कर रहे हैं, उनमें अधिकांश इस देश के आम जन हैं।

आधिकारिक आइटी सेल पर इतने तरह के पहरे और परदे हैं कि उनसे इस तरह की चीजें संभव नहीं हैं। हां, अमित मालवीय जैसे अहमन्य और कुपढ़ का फेक-न्यूज शेयर कर देना उसकी व्यक्तिगत मूर्खता है, वह भाजपा की आधिकारिक नीति नहीं है। मालवीय जैसों को बंगाल चुनाव का सह-प्रभारी बनाना कहीं से भी व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि जो व्यक्ति बिहार चुनाव में होटल में रहने के पहले उसके फोर-स्टार होने, अपने सहकर्मियों को उसे ढंग से देख लेने और मीडिया से भागने में व्यस्त हो, उसने बंगाल चुनाव में क्या किया होगा, यह सोचने की ही बात है। मोदी और शाह को आधिकारिक तौर पर सभी आइटी सेल को तत्काल भंग कर बेहद कम संख्या में समर्पित लोगों को रखने की जरूरत है, बाकी तो जनता खुद का डेटा भराकर तैयार ही है। इससे आइटी सेल के बहाने मोदी पर होने वाले हमले भी डायवर्ट हो जाएंगे।

मोदी 2024 में राजनाथ सिंह को पीएम पद का चेहरा बनाकर उनका अहसान भी चुका सकते हैं और भाजपा को संक्रमण-काल के लिए तैयार भी कर सकते हैं। राजनाथ सिंह उम्रदराज हैं, भाजपा में अधिकांशतः को स्वीकार्य हैं औऱ संक्रमण काल में अच्छा प्रदर्शन भी करते हैं, जैसा कि गडकरी से शाह युग के बीच का एक साल उन्होंने अध्यक्ष बन कर भाजपा को संभाला भी था। उन पर दाग-धब्बे भी नहीं हैं औऱ वह बोलते भी अच्छा हैं, गंभीर छवि भी है।

इस बीच प्रधानसेवक चाहें तो योगी के कस-बल ढीले या बंद कर सकते हैं, उनको प्रशिक्षित कर केंद्र के लिए तैयार कर सकते हैं, क्योंकि भाजपा का मूल तो हिंदुत्व ही रहेगा। अमित शाह मोदी के सहज-सरल उत्तराधिकारी भी हैं। पीआर एक्सरसाइज हो या कुछ और कठोर फैसले, शाह अपनी छवि फिर से बुलंद कर सकते हैं। दक्षिण में तेजस्वी सूर्य जैसे युवाओं को तैयार कर वह आगे की पीढ़ी बना सकते हैं।

मोदी यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि भाजपा एक ऐसा हाथी हो गयी है, जिसे अपनी पूंछ ही नहीं दिख रही है। मोदी जैसे महावत यह भी जानते हैं कि समय रहते हाथी को नियंत्रित नहीं किया, तो वह महावत का घर ही तोड़ डालेगा।

फिलहाल, तो तेल औऱ तेल की धार देखने का वक्त है…



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