तन मन जन: कोरोना की दूसरी लहर का कहर और आगे का रास्ता


सबक सीखने के लिए एक वर्ष का समय कम नहीं होता। हम दिल से चाहते तो बीते 14 महीनों में कोरोनावायरस संक्रमण क्या अन्य महामारियों से भी बचाव का एक बेहतरीन मॉडल खड़ा कर अपने देशवासियों की जान बचा सकते थे। यदि नीयत साफ होती और हम जनकल्याण की दृष्टि से कुछ बेहतर करने की तमन्ना रखते तो चीन, न्यूजीलैंड, डेनमार्क, सिंगापुर आदि देशों की तरह बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था खड़ी कर लोगों की जान बचा लेते और अपनी डूबती अर्थव्यवस्था भी संभाल सकते थे। बहरहाल, अपने देश में कोरोना त्रासदी के अब तक की स्थिति का यदि मूल्यांकन कर लें तो आगे का रास्ता तलाशने में बहुत मदद मिलेगी।

कोरोनाकाल 2020 और हम

देश के एक जिम्मेवार नागरिक के नाते हमें यह जानना चाहिए कि वर्ष 2020 में हमारी सरकार ने कोरोनावायरस संक्रमण से बचाव के लिए क्या क्या कदम उठाए थे। 29 मई 2020 को एक प्रसिद्ध अंग्रेजी दैनिक में छपी खबर के अनुसार मार्च से मई 2020 तक पीएम केयर फंड में कुल 10,600 करोड़ रुपये जमा हुए थे जिसमें से सरकार ने 3200 करोड़ रुपये कोविड से बचाव के लिए जारी किये थे। इसमें खासकर 2000 करोड़ रुपये भारत में बने 50,000 वेंटिलेटर के लिए, 1000 करोड़ रुपये प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए, 100 करोड़ रुपये वैक्सीन निर्माण के लिए तय थे। अब इन रुपयों से हासिल क्या हुआ यह पूछना कथित ‘‘देशद्रोह’’ की श्रेणी में आ सकता है इसलिए स्वयं समझिए।

हाँ, इशारे से कह सकता हूं कि इसी फंड से देश में नोयडा की एगवा (AGVA) नाम की एक गैर-पेशेवर कम्पनी को 10,000 वेंटिलेटर बनाने का ठेका दिया गया था जिसे हाई एन्ड वेंटीलेटर बनाने का कोई अनुभव नहीं था। बाद में इस कम्पनी के बनाए वेंटिलेटर क्लिनिकल ट्रायल में फेल पाए गए। ऐसे ही गुजरात की कम्पनी सीएनसी के भी वेंटिलेटर का वही हाल था। मजदूरों की घर वापसी का हाल पूरे देश ने देखा था। अपने जेब से पैसा लगाकर भूखे प्यासे पैदल हजारों किलोमीटर की यात्रा कर मजदूर जैसे तैसे घर पहुंचे थे। अपने देश में बनी वैक्सीन (आनन-फाननन में बनी) का हाल देश देख ही रहा है। कुल मिलाकर आपदा में अवसर का पूरा लाभ राजनीति, सरकार और प्रशासन ने लिया मगर जनता तिल तिलकर मरती रही। इसके अलावा मोदी सरकार ने कोरोनाकाल 2020 में 20 लाख करोड़ रुपये का कोरोना पैकेज भी घोषित किया था। उसका क्या हुआ, मुझे नहीं मालूम।

कोरोना आर्थिक पैकेज की सीमाएं और कुछ कारगर तात्कालिक उपाय

कोरोनाकाल 2020 में महामारी की त्रासदी के दौरान तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प का भारत दौरा, कई राज्यों में चुनाव एवं सत्ता परिवर्तन, देश में प्रशासन व पुलिस की मदद से साम्प्रदायिक व जातिगत आधार पर हिंसा की घटनाएं आदि भारत में कोरोना विस्फोट के लिए जिम्मेदार हैं। विगत 16 महीने में सरकार की ऐसी कोई भी पहल नहीं दिखी जिससे एक नागरिक के तौर पर संकट में संकटमोचक के रूप में सरकार की तारीफ की जा सके। कोरे जुमलों और कोरे नारों की बदौलत सरकार आत्मप्रशंसा में इतनी मगन थी कि कब दबे पांव कोरोना की दूसरी घातक लहर ने दस्तक दे दी, पता ही नहीं चला। इस दौरान कई प्रभावशाली नेताओं के जुमलों पर गौर करें- ताली-थाली बजाओ, गो-कोरोना-गो का मंत्र पढ़ो, भाभी जी का पापड़ खाओ-कोरोना भगाओ, महामृत्युंजय का जाप करो-कोरोना भगाओ, कुंभ में नहाने से कोरोना नहीं होता, और भी न जाने क्या-क्या।

मौत के ‘तांडव’ के बीच शासकों का निर्मम चुनावी स्नान?

अन्ततः कोरोना वायरस के संक्रमण का यह दूसरा शक्तिशाली हमला पूरे देश पर है। चिंता की बात तो यह है कि कोरोना की बिगड़ती स्थिति के दौरान ही देश से कोरोना वैक्सीन को बड़ी मात्रा में निर्यात किया गया, चुनाव आयोग ने चुनाव को कई चरणों में कराने का फैसला क्यों लिया समझा जा सकता है। सरकार की उत्सवजीविता में कमी नहीं आई, जैसे वैक्सीन उत्सव आदि ऐसे कई उदाहरण हैं जिनसे कोरोनाकाल में सरकार की प्राथमिकताओं को समझने में मदद मिल सकती है। इस दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोरोना से बचाव के नाम पर वैक्सीन से जुड़ी खबरों से भी कारपोरेट घरानों की मंशा को समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए, अभी पिछले दिनों कोरोना वैक्सीन बनाने वाली अंतरराष्ट्रीय कम्पनी फाइजर ने कहा है कि कोरोना से बचने के लिए हर साल इसका टीका लगवाना होगा।

कोरोनाकाल का दर्द

A man is consoled by his relative as he sees the body of his father, who died from the coronavirus disease (COVID-19), before his burial at a graveyard in New Delhi, India, April 16, 2021. REUTERS/Danish Siddiqui

कोरोनाकाल में देश के नागरिकों के एक दर्द नहीं है। वर्ष 2020 में सरकार ने कोरोना से बचाव के नाम पर केवल जुमलेबाजी की। हजारों करोड़ रुपये गंवाकर भी सरकार देश के एक प्रतिशत नागरिकों के लिए भी अस्पतालों में जीवनरक्षक सुविधाएं उपलब्ध नहीं करा पाई। वेंटिलेटर, आक्सीजन एवं जीवनरक्षक दवाइयों का अकाल आज भी है। पिछले वर्ष जो वेंटिलेटर खरीदे गए वे खुद वेंटिलेटर पर हैं। ज्यादातर या तो खराब हैं या भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए। ‘’आपदा में अवसर’’ का पूरा लाभ सरकार, पदाधिकारी एवं ठेकेदार ले उड़े। जनता को मिला बाबा जी का ठुल्लू! विडम्बना देखिए, कोरोना के उपचार के नाम पर ब्लैक में बिक रही दवा रेमडेसिवि‍र पर भी सरकार 12 से 20 फीसद वैट वसूल रही है।

कोरोना वैक्सीन को लेकर अमरीका की वैक्सीन नियामक एजेन्सी फूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) की ताजा सूचना और चिन्ता पैदा कर रही है। एफडीए का कहना है कि कोरोनावायरस के नये स्ट्रेन अब तक की बनी वैक्सीन तथा इससे बनी इम्यूनिटी को बेअसर कर सकते हैं। एफडीए ने फाइजर-बायोएनटेक तथा मॉडर्ना की कोरोना से बचाव की वैक्सीन को दिसम्बर 2020 में मंजूरी दी थी। तब उक्त दोनों वैक्सीन कोविड-19 के लक्षणों से बचाव में क्रमशः 94 फीसद एवं 95 फीसद प्रभावी बतायी गयी थीं। अब एफडीए के वैज्ञानिक कह रहे हैं कि यह कोई नहीं जानता कि ये वैक्सीन कितने समय तक लोगों को कोरोनावायरस संक्रमण से बचाएंगी। दरअसल, इन वैक्सीनों का ट्रायल महज कुछ महीने तक ही चला है। इस बीच अमरीकी राष्ट्रपति के प्रमुख चिकित्सा सलाहकार डॉ. एंथोनी फॉउची का सुझाव है कि ‘’वर्तमान वैक्सीन की अतिरिक्त खुराक की जरूरत पड़ सकती है।‘’

इन्फ्लुएन्जा से लेकर एचआइवी जैसे अन्य वायरस की तरह ही सार्स सीओवी-2 वायरस भी बेहद खतरनाक हैं। ये चुप नहीं बैठते। ये लगातार अपना रूप बदलते रहते हैं। इनमें से कुछ खतरनाक स्ट्रेन अभी दुनिया भर में फैल रहे हैं। वायरस के ये नये स्ट्रेन वर्तमान वैक्सीन से बनी इम्यून कोशिकाओं और शरीर के इम्यून सिस्टम को चकमा दे सकते हैं। इस पहलू से सभी वैज्ञानिक चिन्तित हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि कोविड-19 वायरस के सभी स्वरूपों, खास तौर से दक्षिण अफ्रीका में सबसे पहले सामने आए बी-1.351 स्ट्रेन के खिलाफ वैक्सीन अच्छी सुरक्षा देती है लेकिन अभी उपलब्ध वैक्सीनों को जिस मूल वायरस से लड़ने के लिए डिजाइन किया गया है उसके मुकाबले बी-1.351 स्ट्रेन के खिलाफ बचाव थोड़ा कम होगा। हालांकि, फाइजर का दावा है कि वह कोरोनावायरस के नये स्ट्रेन के खिलाफ वैक्सीन के विकास पर काम शुरू कर चुका है। मॉडर्ना का भी दावा है कि वह कोरोनावायरस के नये स्ट्रेन के खिलाफ नई वैक्सीन का जानवरों पर परीक्षण करना शुरू कर दिया है।

वायरसों के नये स्ट्रेन का रहस्य

वैज्ञानिक अभी कोरोनावायरस के नये स्ट्रेन को समझने की कोशिश कर रहे हैं। खास तौर पर वे स्ट्रेन जिन्‍होंने ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका में तबाही मचायी है। समस्या यह है कि इस मामले में कान्ट्रैक्ट ट्रेसिंग लगभग असम्भव है। विशेषज्ञ साफ मान रहे हैं कि भारत में नागरिकों की लापरवाही और सरकार की गलत नीतियों के कारण संक्रमण की स्थिति विकट हुई है। खासकर सन् 2020 में बिहार चुनाव और अभी पांच राज्यों के चुनाव तथा कुंभ मेले के आयोजन में जुटी भीड़ कोरोना संक्रमण के भारत में बेकाबू होने की मुख्य वजह है। बहुत सम्भव है कि भारत कोरोनावायरस संक्रमण के मामले में अमरीका को पछ़ाड़कर नम्बर एक स्थान पर आ जाए। जन स्वास्थ्य एवं बुनियादी शिक्षा पर कार्य करने वाली संस्था हेल्थ एजुकेशन आर्ट लाइफ फाउन्डेशन (हील) के सैम्पल अध्ययन में यह पाया गया है कि वर्तमान पांच राज्यों के चुनाव खासकर पश्चिम बंगाल एवं असम में चुनावी रैलियों में जिस कदर भीड़ जुटाई गई है वहां कोरोना विस्फोट का कहर मई के पहले हफ्ते से बड़े पैमाने पर देखा जा सकता है।

सेन्टर फॉर डिजीज डायनेमिक्स इण्डोनोमिक्स एण्ड पॉलिसी के निदेशक डॉ. रामानन लक्ष्मीनारायण के अनुसार यदि वैक्सीन लगाने की रफ्तार नहीं बढ़ाई गई तो 70 फीसद आबादी को वैक्सीन लगाने में दो साल से भी ज्यादा का वक्त लग सकता है। एक अनुमान के अनुसार भारत में अब तक लगभग 30 करोड़ लोग कोरोनावायरस की चपेट में आ चुके हैं। इसका मतलब यह हुआ कि अभी 100 करोड़ लोग कोरोना से संक्रमित नहीं हुए हैं और उन्हें बचाना सबसे बड़ी चुनौती है। इस बीच भारतीय आर्युविज्ञान परिषद (आइसीएमआर) का एक अध्ययन सामने आया है। इसके अनुसार अब तक 4.5 फीसद से ज्यादा लोग इस संक्रमण से दोबारा संक्रमित हो चुके हैं। दुनिया में दोबारा संक्रमित होने की दर लगभग एक फीसद है। हमारे देश में संक्रमित होने के 60 दिनों बाद लोगों के शरीर में प्लाज्मा भी धीरे-धीरे बेअसर होने लगा है। केन्द्रीय औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) के एक अध्ययन (सीरो सर्वे) के अनुसार देश के कई हिस्से में वायरस का स्थानीय प्रसार हुआ है। अध्ययन में यह भी पाया गया है कि वायरस से प्रभावित लोगों में 30 फीसद ऐसे लोग मिले हैं जिनके शरीर में 150-180 दिन की एन्टीबाडी टिक नहीं पाई। ऐसे में दोबारा संक्रमण के मामलों में तेजी आना लाजिमी है।

संक्रमण की भयावहता

भारत में जब राजनेता और कथित धर्माचार्य अपने स्वार्थ के लिए भोले-भाले लोगों को भीड़ की तरह इस्तेमाल करते हैं और लापरवाही की जिम्मेवारी नहीं लेते, ऐसे में कोरोनावायरस संक्रमण का बेकाबू होना लाजिमी है। स्वयं प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री द्वारा चुनावी रैली में भीड़ जमा करना, रैलियां करना, जनता के लिए जानलेवा है। देश में कोरोनावायरस की दूसरी लहर खौफनाक और खतरनाक है। जुगाली करने वाले नेताओं को छोड़िए, जनता और जनता की सेवा में लगे चिकित्सकों की जिन्दगी दांव पर है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के सचिव राजेश भूषण ने 24 मार्च 2021 को एक पत्र जारी कर बताया है कि कोरोना मरीजों की सेवा में लगे डाक्टर, नर्स, पैरामेडिक्स सभी का ‘‘कोविड बीमा’’ 24 मार्च 2021 को समाप्त हो गया है। इसे अभी तक नवीनीकरण नहीं किया गया है। न तो देश के स्वास्थ्य मंत्री को इसकी कोई चिंता है और न प्रधानमंत्री को। स्थिति इतनी भयावह है कि अगले कुछ महीनों में लोगों की मौतों का आंकड़ा यदि एक करोड़ को भी पार कर जाए तो चौंकिएगा नहीं। यह स्थिति है और हमारी यही नियति है। इसलिए अपने और परिवार तथा समाज के लोगों को बचाइए। जुमलेबाजों से दूर रहिए।

कोरोना से आगे का रास्ता

अब इस बात की चर्चा कर लें कि कोरोनावायरस संक्रमण की बढ़ती विभीषिका के दौर में हम क्या करें कि मानवता व लोगों की जान को बचा सकें। देश के नागरिक निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान दें:

  • कोरोनावायरस संक्रमण का ताजा स्ट्रेन एक तीव्र फैलने वाला वायरस है इसलिए संक्रमण से बचाव के एहतियाती उपाय में ढील न बरतें अर्थात् मास्क, हाथ धोना, भीड़ में न जाना, नियमित विटामिन सी एवं जिंक का प्रयोग करना आदि।
  • खांसी या छींक आने पर मुंह को रुमाल या मास्क से ढंकें। एक व्यक्ति दूसरे से 5-6 फीट की दूरी पर रहे। यदि छींक के समय टिश्यू पेपर का उपयोग किया है तो उसे सुरक्षित रूप से डिस्पोज करें।
  • मास्क से मुंह और नाक को पूरी तरह ढंकें तथा बाहर जाने पर मेडिकल दस्तानों का प्रयोग करें।
  • अनजान लोगों से सावधानीपूर्वक मिलें। यदि बाहर से घर आने पर आपमें बुखार, छींक या खांसी के लक्षण हों तो स्वयं को आइसोलेट कर लें और उन्हें भी आइसोलेट होने को कहें जिनसे आप मिले हों।
  • कोरोना के आरम्भिक लक्षणों में बुखार, छींक, खांसी, सिरदर्द, दस्त, मुंह का स्वाद चला जाना, नाक में गन्ध का पता न लगना आदि या इसमें से कुछ लक्षण हो सकते हैं। ऐसा होने पर स्वयं को आइसोलेट कर लें एवं चिकित्सक को इसकी सूचना दे दें।
  • कोरोना जैसे लक्षणों का अन्देशा होने पर घबराएं नहीं और स्वयं को आइसोलेट कर नियमित हाथ धोएं, गुनगुने पानी में थोड़ा नमक डालकर गले में गरारे करें। ज्यादा से ज्यादा गर्म तरल पदार्थ लेते रहें एवं बाहर जाने से बचें।
  • होमियोपैथी के यदि कोई योग्य एवं अनुसन्धानधर्मी चिकित्सक के संपर्क में यदि आप हों तो उनसे मिलकर अपने शरीर की इम्युनिटी बढ़ाने का नुस्खा पूछ लें। मेरे अध्ययन एवं अनुसन्धान में होमियोपैथी की दवा कैमफोरा 1000 कोरोना से बचने में अच्छी मदद कर रही है। इस दवा का सेवन किया जा सकता है।

क्या करें?

कोरोना संक्रमण की यह लहर ज्यादा घातक एवं संक्रामक है। बचाव के एहतियात के साथ-साथ सामुदायिक एवं सरकारी स्तर पर सभी सार्वजनिक आयोजनों पर तत्काल रोक लगे। देश में सभी चिकित्सा संस्थानों को सरकारी दर पर इलाज के लिए अध्यादेश जारी कर दिए जाएं। दवा की कालाबाजारी को राष्ट्रविरोधी घोषित कर सरकारें यह सुनिश्चित करें कि ऐसा हरगिज न होने पाए। प्रत्येक जिले में एक केन्द्रीय श्रेणी भर्ती केन्द्र, पोर्टल एवं मोबाइल नम्बर जारी किए जाएं जहां कोई भी जरूरतमंद व्यक्ति महज एक फोन कॉल से आपात चिकित्सा सुविधा ले सके। जनता स्वयं भी समझदार बने। मूर्ख नेताओं के झांसे में न आएं। स्वयं विवेक का उपयोग करें। सरकार की सभी लग्‍जरी सुविधाएं खत्म कर दी जाएं और देश में उपलब्ध सभी चिकित्सकों को आपात चिकित्सा सेवा के तहत काम पर लगाया जाए। ध्यान रहे, कोरोना की यह लहर जानलेवा है लेकिन इससे आगे भी कोरोना की घातक लहर आ सकती है। सरकार चापलूसी, अन्धभक्ति, आत्ममुग्धता से बाहर निकल कर जनसेवा में सच्चे मन से लगे। लोग बचेंगे तो देश बचेगा और तभी नेतागिरी भी होगी।


लेखक जनस्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं।

कवर कवर फोटो नर्सिंग टाइम्स से साभार


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