कथाकार मार्कंडेय की विरासत को धो रहे हैं उनके ”अनुज”!

अदृश्‍य घपलों-घोटालों से भरे हिंदी जगत में अमूमन सब कुछ हमेशा आरोप-प्रत्‍यारोप तक ही सीमित रह जाता है। इस बार हालांकि जो घपला हुआ है, वह हिंदी की परंपरा में …

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तुकबंदी अच्‍छी है, लेकिन लालसाओं का क्‍या किया जाए!

अंजनी कुमार  मार्क्‍स के निजी जीवन प्रसंगों पर एक टिप्‍पणी से शुरू हुई बहस के क्रम में अंजनी कुमार की एक अहम प्रतिक्रिया आई है जिसमें उन्‍होंने मार्क्‍स पर तानी …

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मार्क्‍स के बहाने: मेरी गेब्रियल की पुस्‍तक ”प्रेम और पूंजी”

कार्ल मार्क्‍स के निजी जीवन प्रसंगों पर विश्‍वदीपक की टिप्‍पणी और रामजी यादव व विष्‍णु शर्मा की प्रतिक्रियाओं के संदर्भ में एक पुस्‍तक का जि़क्र ज़रूरी जान पड़ता है जिसे …

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‘दाग अच्‍छे हैं’, बशर्ते मानवता के हित में हों!

मार्क्‍स पर लिखे विश्‍वदीपक के लेख और रामजी यादव द्वारा उस पर उठाए गए सवालों की कड़ी में पत्रकार विष्‍णु शर्मा ने मूल लेख की मंशा को ऐतिहासिक बदलावों के …

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पूंजीवाद विरोधी संघर्ष में निजी प्रसंगों की अहमियत कैसे है?

रामजी यादव  कार्ल मार्क्‍स पर लिखे विश्‍वदीपक के लेख पर अपेक्षित प्रतिक्रियाएं आई हैं। लेखिका अनिता भारती को छोड़कर शेष सभी प्रतिक्रियाएं इस लेख को ‘संदर्भहीन’ और ‘कीचड़-उछालू’ बता रही हैं। …

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मार्क्‍स के बहाने: एक थी हेलन और एक था फ्रेडी

पिछले कुछ वर्षों के दौरान, खासकर 2008 में आई वैश्विक मंदी के बाद से कार्ल मार्क्‍स को खूब याद किया गया है। जिसकी जैसी चिंताएं, उसके वैसे आवाहन। एक बात …

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