देश में नवनियुक्त केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने 20 जुलाई को संसद में कहा था कि कोविड महामारी की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी से एक भी मौत राज्यों ने रिपोर्ट नहीं की। इस बयान के बाद उठा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संसदीय सीट बनारस से आयी एक खबर से पता चलता है कि ऑक्सीजन का संकट आज भी सरकारी चिकित्सा केंद्रों में कम नहीं हुआ है, बरकरार है। इस संकट से स्वयंसेवी संस्थाएं जिस तरह निपट रही हैं, वह अपने आप में एक मिसाल है और ऑक्सीजन से हुई मौतों पर सरकारी जवाब की पोल खोलने वाला है।
बनारस में कुछ महीनों से ‘ऑक्सीजन फॉर इंडिया” नाम का एक अभियान चल रहा है। यह सरकारी नहीं, स्वैच्छिक संस्थाओं का चलाया अभियान है जिसके तहत सरकारी और निजी स्वास्थ्य केंद्रों को ऑक्सीजन कन्संट्रेटर दान किए जा रहे हैं। इस मुहिम के तहत अब तक 60 ऑक्सीजन कन्संट्रेटर का वितरण किया जा चुका है।
दिलचस्प यह है कि चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) ने गिव इंडिया ऑर्गनाइजेशन के सहयोग से वाराणसी के मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय पर डॉ. बी. बी. सिंह को 41 ऑक्सीजन कन्संट्रेटर दिए हैं जिसे वाराणसी जिले के सभी ब्लाकों के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर कोविड संक्रमण के आगामी खतरे से बचाव के लिए उपयोग करने हेतु उन्होंने भेजा है। सवाल उठता है कि अगर वाकई ऑक्सीजन की कमी नहीं थी या है तो स्वैच्छिक संस्थाओं के अनुदान पर सरकारी स्वास्थ्य अमला क्यों निर्भर है?
बनारस में इस अभियान की शुरुआत होने के पीछे का कारण ऑक्सीजन की कमी थी जिससे शहर के चर्चित मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. लेनिन रघुवंशी को जूझना पड़ा था। डॉ. लेनिन इन्डो–जर्मन सोसाइटी के आजीवन मानद सदस्य हैं। कोरोना संक्रमण के कारण जब वे एक निजी अस्पताल में भर्ती हुए तो वहां उन्हें ऑक्सीजन का संकट पैदा हो गया। यह अप्रैल अंत से मई मध्य के बीच का वही दौर था जब देश भर में ऑक्सीजन की कमी से मौतें हो रही थीं, जिसे आज सरकार ने नकार दिया है।
कुछ स्वतंत्र शोधकर्ताओं ने मीडिया रिपोर्टों के आधार पर ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों का जो आंकड़ा संकलित किया है, उसे राज्यवार नीचे देखा जा सकता है।
इसी बीच एक रात ऐसी भी आयी जब अस्पताल में ऑक्सीजन खत्म हो गया और डॉ. लेनिन पर कहीं और जाने का दबाव बनाया जाने लगा। उस रात अस्पताल तकरीबन खाली करवा दिया गया था। वे बड़ी मुश्किल से मौत के मुंह से निकल कर बाहर आए। उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिलने की खबर सुनने के बाद इंडो–जर्मन सोसाइटी रेमसाइड, जर्मनी की अध्यक्षा हेलमा रिचा और उनके दोस्तों के सहयोग से “ऑक्सीजन फॉर इंडिया” मुहिम के तहत ऑक्सीजन कन्संट्रेटर के लिए फंड इकट्ठा किया गया।
डॉ. लेनिन जब कोरोना संक्रमण से उबर कर वापस आए, तब यह अभियान शुरू किया गया। इस मुहिम से जुड़ते हुए न्यूजीलैंड के दूतावास ने भी भारत की संस्था जनमित्र न्यास/मानवाधिकार जननिगरानी समिति के संयुक्त तत्वाधान में 60 ऑक्सीजन कन्संट्रेटर का वाराणसी जिले के विभिन्न ब्लाकों के सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों सहित अन्य चिकित्सकीय संस्थानों में वितरण किया।
जनमित्र न्यास/मानवाधिकार जननिगरानी समिति द्वारा जारी एक विज्ञप्ति के मुताबिक “ऑक्सीजन फॉर इंडिया” मुहिम के तहत बनारस के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नरपतपुर, चिरईगांव में दो ऑक्सीजन कन्संट्रेटर स्वास्थ्य अधीक्षक को मानवाधिकार जननिगरानी समिति/जनमित्र न्यास के गवर्निंग बोर्ड सदस्य डॉ. मोहम्मद आरिफ, निदेशक डॉ. लेनिन और मैनेजिंग ट्रस्टी श्रुति नागवंशी द्वारा दिया गया। इसके पहले इसी मुहिम के तहत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हरहुआ, चिरईगांव, काशी विद्यापीठ और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र चोलापुर, काशी विद्यापीठ, APHC नेवादा, बडगांव आदि के साथ वाराणसी सहित सोनभद्र और चंदौली के विभिन्न सरकारी चैरिटेबल अस्पतालों में कन्संट्रेटर वितरित किया जा चुका है।
इन ऑक्सीजन कन्संट्रेटर को कोरोना की तीसरी लहर के आने वाले खतरे को देखते हुए ऐसे सरकारी व अन्य स्वास्थ्य संस्थानों को दिया गया है जहां डाक्टरों द्वारा इसका प्रयोग कुशलता से आवश्यकता पड़ने पर किया जा सके और मरीज को बचाया जा सके।
इस संदर्भ में यह याद दिलाया जाना जरूरी है कि ऑक्सीजन संकट के हाहाकार के बीच इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और अजीत कुमार की पीठ ने राज्य में कोविड-19 की स्थिति को लेकर एक जनहित याचिका पर गंभीर टिप्पणी की थी, ”हमें अस्पतालों में ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी के कारण कोविड रोगियों की हो रही मृत्यु की खबर देखकर दु:ख हो रहा है। ऑक्सीजन की आपूर्ति न करना एक आपराधिक कृत्य है और इस तरह से लोगों की जान जाना नरसंहार से कम नहीं है।”
सरकार के मंत्री ने मौतों को झुठलाकर संसद में खुलेआम न सिर्फ न्यायालय की तौहीन कर दी बल्कि मृतात्माओं का भी अपमान किया है। इस मसले पर राष्ट्रीय जनता दल के सांसद प्रोफेसर मनोज कुमार झा का संसद में तीन दिन पहले दिया यह भाषण जरूर सुना जाना चाहिए: