लखनऊ से आतंकवादी बताकर यूपी एटीएस द्वारा 11 जुलाई को गिरफ्तार किए गए मिनहाज और मसीरुद्दीन कौन हैं? मीडिया ने इन्हें अल कायदा से सम्बद्ध एक आतंकी संगठन का आतंकवादी लिखा है। पुलिस का भी यही दावा है।
इन दावों पर सवाल उठाते हुए गुरुवार को रिहाई मंच ने लखनऊ के अपने कार्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी जिसमें आतंकवाद के नाम पर शहर से पकड़े गए व्यक्तियों के परिजन मौजूद रहे। दो दिन पहले ही मंच के सदस्य इनसे मिलकर आए थे और कुछ जानकारियां साझा की थीं जिन्हें नीचे दिया जा रहा है।
मिनहाज 11 जुलाई को पकड़ा गया था। उसका एक-डेढ़ साल का एक बेटा माज़ है और उनकी पत्नी शिक्षिका हैं। मिनहाज अपने माता-पिता का इकलौता बेटा है और उसकी एक बहन है जिसकी शादी हो गयी है। मिनहाज इलेक्ट्रिक ट्रेड से डिप्लोमा है। सात-आठ महीने पहले ही उसने बैटरी की दुकान खोली थी।
मिनहाज के पिता शेराज अहमद ने बताया कि लगभग 10 बजे एटीएस के जवान घर में घुस आए, जिनको देख वे हक्का-बक्का रह गए। उसी वक्त वो नहाकर निकले थे और भारी भीड़ को देखकर इतना डर गए कि बात करने की स्थिति में नहीं थे। मिनहाज के कमरे से कुछ बरामदगी कहते हुए एटीएस वाले तेजी से कुछ सामान लेकर निकल गए।
शाम 7 बजे तक उनके घर तथा बाहर एटीएस व ब्लैक कमांडो उनके और उनके भाई के घर को घेरकर खड़े रहे। शाम को 7 बजे एटीएस शेराज और उनकी पत्नी को उठाकर एटीएस हेडक्वार्टर ले गई और धमकी देकर कहा कि किसी को सच्चाई न बताएं बल्कि हमेशा हर एक के सामने यही कहें जो एटीएस ने किया उससे संतुष्ट हैं। वे बार-बार यही कहते रहे कि मीडिया से कभी मुखातिब न हों। उन्होंने कहा कि जितना वो बोलें वही बोलें नहीं तो बुढ़ापा खराब कर देंगे।
मुझे और मेरी पत्नी को डांट कर एक कमरे में बैठा दिया. जहां हम भूखे प्यासे रहे जबकि मिनहाज की मां को ऐसी बीमारी है जिसमें देर तक वो बैठने से परेशान हो जाती हैं।
मिनहाज के पिता शेराज़
एटीएस मुख्यालय पर उनसे एक सादे फार्म पर जबरदस्ती हस्ताक्षर करवाया गया। एटीएस ने इतना सब करने के बाद उनको और उनकी पत्नी को रात में 9 बजे के लगभग दुबग्गा पुलिस चौकी पर लाकर छोड़ा, वहां से वो साढ़े 9 बजे अपने घर पहुंच सके।
उसी दिन उठाए गए दूसरे व्यक्ति मसीरुद्दीन की 12 साल की एक बेटी है जो दो साल से शुगर की मरीज़ है। उसकी हालत बीमारी और पिता के उठाए जाने के सदमे से और खराब हो गयी थी। मसीरुद्दीन की तीन बेटियां और एक बेटा है। मसीरुद्दीन बैटरी रिक्शा चलाते हैं। करीब सात महीने पहले इनके पिता का देहांत हो गया था।
मसीरुद्दीन की पत्नी सईदा बताती हैं कि उस दिन सुबह 11 बजे के करीब पुलिस ने उनको पूछा और उनको लेकर चले गए। उसके बाद वे लोग मड़ियांव थाने गए। सईदा रोते हुए बताती हैं कि वो देर से उठे थे तो चाय-वाय पीकर बैठे थे, घर ही में। दो-तीन लोग आये और दरवाजा खड़खड़ाया, तो उन्होंने पूछा कौन है। वे निकलकर बाहर गये तो उनसे पूछा- मसीरुद्दीन कौन है। वे बोले हम हैं।
वो कपड़े भी नहीं पहने थे। सिर्फ बनियान और तहमद पहने थे। उनको कपड़े भी नहीं पहनने दिया और लेकर चले गए। फिर हमने पैंट-शर्ट दिया तब जाकर पहने। उसके बाद हम उन्हीं के साथ थाने चले गए, एक बेटी भी साथ गयी। उसके बाद कमांडो लोग आकर घर की तलाशी लिए। सब कुछ निकालकर फेंक दिया। एक कुकर था उसे भी अपने साथ लेकर चले गए। हमारा कुछ कागज रखा था, आईडी-वाईडी सब एक डिब्बे में, सब कुछ निकालकर लेकर चले गए। दोनों बेटियों को भगा दिया। मेरी सास बैठी रहीं। हम जब तक थाने पर रहे उनको गाड़ी में बैठाकर रखा गया, उसके बाद कहा कि उनके पांच भाई हैं वो बता रहे, उनको बुलाकर लाइए और लेकर चले जाइए।
मसीरुद्दीन की पत्नी सईदा
एटीएस वाले मसीरुद्दीन के बच्चों की किताबें भी उठा ले गए थे। वे बताती हैं कि अपनी बीमार सास को रिक्शे से बैठाकर वे वापस ले गयीं। तब तक उनको वहां से हटा दिया गया था। उन्होंने पूछा कि कहां गए, पर कुछ सही पता नहीं दिया गया और कहा गया कि ठाकुरगंज थाने, काकोरी थाने देख लीजिए।
हम आठ बजे तक ठाकुरगंज, काकोरी थाने गए पर हमको कुछ नहीं पता चला। कहने लगे एटीएस वाले वहीं ले गए होंगे।
मसीरुद्दीन की बड़ी बहन कहती हैं, ‘’मीडिया वाले पूछते हैं कि घर कहां से बना है। आप देख लीजिए टीनें ही पड़ी हैं, घर कहां बना है? घर में क्या है देखिए, दीवार तक नहीं उठी। सब खुला पड़ा है। जो सच है सामने है। क्या इसमें झूठ बोलेंगे? ये जमीन हमारे पिता ने तीस साल पहले खरीदी जो तीन भाइयों की है। पूरा परिवार भूखे-प्यासे मर रहा है और हमसे पूछा जा रहा है कि पैसा कहां से आ रहा है।‘’
घर की हालत दिखाते हुए सईदा कहती हैं कि ‘’इतना बड़ा आतंकवादी कहा जा रहा है इन्हें और घर के नाम पर टीन शेड में रहने को मजबूर हैं हम। वो तो बिटिया की बीमारी में ही परेशान थे कि कैसे उसकी दवा हो सके और हम सबको दो जून की रोटी मिल सके।‘’
मिन्हाज़ को मसीरुद्दीन कैसे जानता था? इसके बारे में सईदा बताती हैं कि एक बैटरी 14 हजार की आती है और उनकी इतनी हैसियत नहीं थी कि एक साथ पैसा देकर बैटरी खरीद लें। ऐसे में वे क़िस्त पर बैटरी लेते थे। ऐसे में जब कभी क़िस्त नहीं पहुंचा पाते थे तो मिन्हाज उसके यहां क़िस्त लेने आते थे।
इन गिरफ्तारियों के तीन दिन बाद 14 जुलाई को लखनऊ की जनता नगरी से शकील को भी गिरफ्तार किया गया था। उसके परिजनों से मिलने पर पता चला कि वह बरसों से रिक्शा चलाकर अपने परिवार का किसी तरह भरण-पोषण कर रहा था। शकील के बड़े भाई इलियास ने बताया:
रोज की तरह आज भी वह सुबह रिक्शा लेकर चला गया। सुबह 9 बजे के करीब किसी साथी रिक्शावाले ने शकील की पत्नी के मोबाइल पर फ़ोन करके बताया कि शकील को पुलिस ने पकड़ लिया है। शकील की पत्नी ने मुझे फोने करके बताया। जब मैं घर आकर देखा तो पूरी गली को पुलिस ने घेर रखा था।
शकील के बड़े भाई इलियास
इलियास ने बताया कि ‘’जब पुलिसवालों से हमने पूछा तो उन्होंने हमें डांट दिया, फिर भी हमने कहा कि साहब ऐसा कुछ नहीं है, आप हमारे घर की तलाशी ले लो। उसके बाद हम घर में ले जाकर खुद एक-एक समान चेक कराए, जिसके बाद एक पुलिस वाले ने खुद कहा कि हमें मालूम है कुछ नहीं है।‘’
बाद में इलियास पता करने के लिए वज़ीरगंज थाने गए कि उनके भाई को कहां ले जाया गया है तो एक पुलिसवाले ने उसे मास्क हटाने को कहा, फिर मास्क हटाने पर कहा- ‘’भाग यहां से, तुम ही जैसे लोग आतंकवादी होते हो।‘’
मंच के मुताबिक मिन्हाज़, मसीरुद्दीन और शकील के अलावा न्यू हैदरगंज कैम्पल रोड, लखनऊ से मोहम्मद मोईद और मुज़फ्फरनगर से मुहम्मद मुस्तकीम की गिरफ्तारी का दावा एटीएस ने किया है। कानपुर और सम्भल से भी लोगों के उठाए जाने और पूछताछ सम्बन्धित खबरें आयी हैं जिसकी पुष्टि अभी नहीं हो सकी है।
इन गिरफ्तारियों के बारे में मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने तफ़सील से पूरी जानकारी दी है और अल-कायदा की थ्योरी पर ही संदेह जताया है।
मिन्हाज़, मसीरुद्दीन और शकील के परिजनों से मुलाकात करने गए प्रतिनिधिमंडल में मंच के अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब, रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव, हाफिज मोहम्मद वसी, अजय तोरिया, टीनू बिंद्रा, मुराद शामिल रहे।
(पूरी कहानी रिहाई मंच द्वारा पिछले चार दिन में जारी विज्ञप्तियों, तस्वीरों और वीडियो पर आधारित है)