सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष जारी गौतम नवलखा की जमानत की कार्यवाही पर रोक लगा दी।
सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली हाईकोर्ट के 27 मई के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रहा था। दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में एजेंसी को एनआईए के विशेष न्यायाधीशों के समक्ष कार्यवाही का पूरा रिकॉर्ड प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था, जिसके आधार पर उन्हें मुंबई स्थानांतरित किया गया था।
जस्टिस अरुण मिश्रा, अब्दुल नजीर और इंदिरा बनर्जी की बेंच ने नवलखा को भी नोटिस जारी किया है और उनका जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई 15 जून को होगी। मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता एजेंसी की ओर से पेश हुए थे और कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट का आदेश पूर्णतया गैरकानूनी है और अधिकार क्षेत्र के बाहर है।
एनआईए ने अपनी अपील में कहा था,
“सिंगल जज ने, उक्त अंतरिम आदेश में, गलती से एक ऐसे अभियुक्त की अंतरिम जमानत याचिका पर सुनवाई जारी रखी, जिन्हें माननीय हाईकोर्ट के प्रादेशिक क्षेत्राधिकार के बाहर के एक प्राधिकारी द्वारा आरोपित किया गया था और जिन्हें वर्तमान में विशेष न्यायाधीश, एनआईए, मुंबई (माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के बाहर) द्वारा पारित वैध न्यायिक रिमांड आदेश के तहत न्यायिक हिरासत में रखा गया है।”
एनआईए की दलील थी कि नवलखा ने संयोग से 14 अप्रैल 2020 को दिल्ली में आत्मसमर्पण किया था और लॉकडाउन के कारण उन्हें मुंबई नहीं ले जाया जा सका था।
दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की सिंगल बेंच ने नवलखा के न्यायिक रिमांड की अवधि बढ़ाने के लिए एनआईए कोर्ट की दिल्ली पीठ के समक्ष स्थानांतरित किए गए आवेदन का पूरा रिकॉर्ड मांगा था।
इसके अलावा तिहाड़ जेल के संबंधित जेल अधीक्षक की ओर से नवलखा को मुंबई स्थानांतरित करने की अनुमति के लिए दायर अर्जी की सुनवाई के लिए अदालत ने 3 जून, 2020 की तारीख तय की है।
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने 16 मार्च को गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम के तहत दर्ज मामले में गौतम नवलखा और आनंद तेलतुम्बडे को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था। उन पर भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में माओवादियों से संबंध होने का आरोप लगाया गया था।
जिसके बाद, नवलखा ने 14 अप्रैल को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।
यह मामला एक जनवरी, 2018 को पुणे के पास भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा की घटनाओं से जुड़ा हुआ है। घटना के दिन कोरेगांव की लड़ाई की विजय की 200 वीं वर्षगांठ की स्मृति में दलित संगठनों ने कार्यक्रम आयोजित किया था। पुणे पुलिस ने आरोप लगाया कि कार्यक्रम के हुई एल्गार परिषद की बैठक में हिंसा भड़काई गई थी।आरोप लगाया गया कि बैठक का आयोजन प्रतिबंधित माओवादी संगठनों से जुड़े लोगों ने किया था।
पुलिस ने जून 2018 में जाति विरोधी कार्यकर्ता सुधीर धवले, मानवाधिकार वकील सुरेंद्र गडलिंग, वन अधिकार अधिनियम कार्यकर्ता महेश राउत, सेवानिवृत्त अंग्रेजी प्रोफेसर शोमा सेन और मानवाधिकार कार्यकर्ता रोना विल्सन को गिरफ्तार किया था।
बाद में, एक्टिविस्ट-वकील सुधा भारद्वाज, तेलुगु कवि वरवर राव, एक्टिविस्ट अरुण फरेरा और वर्नोन गोंसाल्विस को गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने जून 2018 में गिरफ्तार छह लोगों के खिलाफ पहली चार्जशीट नवंबर 2018 में, दाखिल की थी। फरवरी 2019 में सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, अरुण फरेरा और गोंसाल्विस के खिलाफ पूरक आरोप पत्र दायर किया गए थे। गौतम नवलखा और आनंद तेलतुम्बडे का नाम आरोप पत्र में शामिल नहीं है।
आदेश यहां से डाउनलोड करें
यह ख़बर लाइव लॉ से साभार प्रकाशित है
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