पत्रकारों की छंटनी और वेतन कटौती पर सुप्रीम कोर्ट में PIL मंजूर, केंद्र सहित INS-NBA को नोटिस


कोरोना महामारी के चलते किये गये लॉकडाउन के बहाने मीडिया संस्थानों में काम कर रहे पत्रकारों की वेतन कटौती और नौकरी से निकाले जाने को चुनौती देते हुए दायर की गयी एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है। नोटिस आइएनएस और न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स असोसिएशन को भी भेजा गया है और दो हफ्ते के भीतर जवाब मांगा गया है।

माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमणा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने बीयूजे, डीयूजे और एनएजे की ओर से दायर याचिका पर कहा कि याचिका में “गंभीर मुद्दे” उठाये गये हैं। बीते 16 अप्रैल को पांच पत्रकार संगठनों ने मिलकर यह याचिका लगायी थी और मीडिया संस्थानों से निकाले गये पत्रकारों और वेतन कटौती सम्बंधी सभी निर्देश वापस लेने की गुहार लगायी थी।

अदालत ने 27 अप्रैल को इस याचिका को सुनते हुए नोटिस जारी करने को कहा। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तीन जजों की खंडपीठ से याचिका की प्रति मांगी ताकि वे अपना जवाब दाखिल कर सकें।

इस पर जस्टिस एसके कौल ने टिप्पणी कीः

“दूसरी यूनियनें भी यही बात कह रही हैं। सवाल है कि अगर कारोबार दोबारा शुरू नहीं हुए तो वे कितने दिन तक टिक पाएंगे। इस मसले पर तो सुनवार्इ बनती है।”

इस संयुक्त याचिका में कम से कम नौ मामलों का उदाहरण दिया गया है जिनमें वेतन कटौती, अनिश्चित काल तक कर्मचारियों को छुट्टी पर भेजे जाने और नौकरी से निकाले जाने के मामले शामिल हैं।

इसे भी पढ़ें

कोरोना के बहाने मीडिया में छंटनी और वेतन कटौती के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में PIL दाखिल


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

View all posts by जनपथ →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *