लखनऊ 20 अप्रैल 2020। उत्तर प्रदेश के जनपद अम्बेडकर नगर अन्तर्गत कस्बा टांडा में रिजवान नाम के युवक की मृत्यु के मामले में परिजनों का आरोप है कि रिजवान की पुलिसकर्मियों ने उस वक़्त निर्ममता पूर्वक पिटाई कि जब वह खाने-पीने का सामान लेने बाज़ार गया था। इस मामले में रिहाई मंच ने कहा है कि पुलिस द्वारा किया जा रहा मीडिया ट्रायल न सिर्फ पुलिस पर सवाल उठाता है बल्कि साफ करता है कि पूरा का पूरा अमला मिलकर इस कांड की सच्चाई को छुपाना चाहता है। मंच ने कहा कि मृतक के पिता की तहरीर पर एफआइआर दर्ज न करके पुलिस द्वारा खुद पर लगे आरोपों पर पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अपनी सुविधानुसार किया गया विश्लेषण दोषियों को बरी करने की इंसाफ विरोधी कोशिश है।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि रिज़वान की मृत्यु के बाद अम्बेडकर नगर के कप्तान का बयान जहां राहत देने वाला था कि वो इस मामले के आरोपी, चाहे वे उनके पुलिसिया अमले के ही क्यों न हों वे सच्चाई के साथ खड़े होंगे। लेकिन दूसरे ही दिन यह कहना कि अब तक एकत्र किए गए सबूतों के अनुसार, यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं कि रिजवान पर पुलिस ने डंडों से हमला किया था न सिर्फ जल्दबाजी है बल्कि जांच की प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश है।
जिस तरह से पुलिस कह रही है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनके शरीर पर कहीं भी लाठी (डंडों) से कोई चोट नहीं दिखती है, ऐसा पोस्टमार्टम रिपोर्ट में नहीं है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में जिन चोटों का जिक्र है और सीएचसी के दस्तावेज में ब्लंट आब्जेक्ट द्वारा चोट लगने की बात कही गयी है वो पुलिस के इस कथन के विपरीत है कि पुलिस पर लगाया गया आरोप असत्य और निराधार है। वहीं पुलिस द्वारा एक डॉक्टर के बयान जारी करने के बाद यह कहना कि वो उसका फेमिली डाक्टर है और वे कह रहे हैं कि मोटरसाइकिल से गिरने की वजह से उसे चोटें आयीं कई सवाल खड़ा करती है।
क्या जरूरत पड़ी जो पुलिस ने ये बयान लिया और जारी किया। क्या सिर्फ इसलिए कि आरोपी पुलिस वाले हैं। बिना एफआइआर के विवेचना शुरू कर चुकी पुलिस को बताना चाहिए कि जब वो उन डॉक्टर साहब की बात मान सकती है तो आखिर रिज़वान के पिता की क्यों नहीं। दूसरे, जिस पृष्ठभूमि से रिज़वान आता है उसके पिता साइकिल का पंचर बनाते हैं। ऐसे लोगों का फेमिली डॉक्टर कहना कपोल कल्पना है।
सामाजिक कार्यकर्ता अधिवक्ता असद हयात कहते हैं कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट मात्र मेडिकल एक्सपर्ट की राय है और यह सम्पूर्ण साक्ष्य नहीं होती। हत्या के मामले में जब विवेचना की जाती है तो घटना के सीधे साक्ष्य और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को भी एकत्र किया जाता है। अनेक चश्मदीद गवाह भी सामने आते हैं। चूंकि पिटाई का आरोप पुलिस के विरुद्ध है इसलिए मुमकिन है कि चश्मदीद गवाह डरे और सहमे हों और जांच के दौरान अपनी पहचान छुपाने की शर्त पर अपने बयान दर्ज कराएं। अक्सर देखा जाता है कि अदालत में जिरह के दौरान मेडिकल विशेषज्ञ डॉक्टर ऐसे बयान दे जाते हैं जिनसे जुर्म साबित हो जाता है और यह विश्लेषण समस्त एकत्र किए गए साक्ष्यों के आधार पर अदालत करती है न कि पुलिस अफसर। इस मामले में अदालत का काम पुलिस अफसर कर रहे हैं और बिना रिपोर्ट दर्ज किए ही जांच का दरवाजा भी बंद कर रहे हैं।
रिज़वान की मृत्यु के बाद उनके पिता का वीडियो वायरल हुआ जिसके बाद पुलिस ने सोशल मीडिया पर वायरल खबर का खंडन जारी करते हुए कहा कि भ्रामक सूचना वीडियो को शेयर न करें। विदित हो कि ललिता कुमारी केस में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि किसी भी घटना की सूचना मिलने पर सर्वप्रथम रिपोर्ट दर्ज की जाए और जांच प्रारंभ की जाए। ऐसे में जहां पुलिस पर ही आरोप लगा हो तो वहां इस आदेश की प्रशांगिकता बढ़ जाती है। रिज़वान के पिता की रिपोर्ट दर्ज किए बिना जांच करना सुप्रीम कोर्ट के आदेश का खुला उल्लंघन है और सवाल खड़ा कर रहा है। यह आदेश उत्तर प्रदेश पुलिस पर बाध्यकारी है।
वहीं मोहम्मद इजरायल के पिता का वीडियो सामने आया है जिसमें वो यह कह रहे हैं कि उन पर स्थानीय नेता दबाव बना रहे हैं। पैसे का लालच औऱ धमकी दे रहे हैं। उन्होंने पुलिस के दावे को खारिज कर दिया कि रिजवान एक दुर्घटना में घायल हो गया था। उनका कहना है कि न तो हमारे पास गाड़ी और न ही वो चलाना जानता था। वह मज़दूर वर्ग का था और मज़दूरी के ज़रिए अपना जीवनयापन करता था और खुद रिज़वान के पिता साइकिल का पंचर बना परिवार को पालते हैं।
इसके पहले भी लखीमपुर खीरी में एक दलित युवक ने पुलिस पर उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए आत्महत्या कर ली थी। उस मामले में भी पुलिस ने एफआइआर दर्ज नहीं कि। राजीव यादव ने कहा कि रिजवान की मौत सिर्फ पुलिस पर ही नहीं बल्कि योगी सरकार के राशन वितरण प्रणाली पर भी सवाल उठाती है क्योंकि रिजवान का गुनाह यह था की उसको भूख लगी थी और वह खाने का सामान लेने के लिए निकला था।
पुलिसिया हिंसा का शिकार एक मजदूर दो दिन तक तड़प-तड़प कर मर गया और पुलिस उसके पिता से पूछ रही है कि उसने बताया क्यों नहीं। और जब उन्होंने बताया ही नहीं बल्कि पुलिस कर्मियों के खिलाफ तहरीर भी दी तो अब तक एफआइआर दर्ज नहीं हुआ जबकि होना यह चाहिए था कि रिजवान के पिता इजरायल ने जिन दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ तहरीर दी है उन्हे उसी वक्त बर्खास्त कर देना चाहिए था। रिजवान के पिता का जो वीडियो सामने आया है वह न सिर्फ दिल दहलाने वाला है बल्कि गरीब के प्रति पुलिस के रवैए को भी उजागर करता है।
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