माइनॉरिटी कोआर्डिनेशन कमेटी ने आज गुजरात मे मुख्यमंत्री को राज्य में प्रवासी श्रमिक आयोग की स्थापना व श्रम क़ानून में संशोधन वापस लेने के लिए पत्र लिखा है, जो निम्न है।
मुख्यमंत्री जी,
गुजरात
विषय- राज्य में प्रवासी श्रमिक आयोग का गठन करने व श्रम क़ानूनों में किए गए बदलावों को तत्काल वापस लेने के संबंध में
महोदय,
हम जानते हैं कि मज़दूर देश की अर्थव्यवस्था की धुरी हैं, वहीं देश के सम्मानित नागरिक भी हैं। भारत देश का संविधान राज्य के सभी नागरिकों को सम्मानपूर्वक, गौरवशाली जीवन जीने का गौरव प्रदान करता है। संविधान ने नागरिकों के फर्ज़ और शासन के कर्तव्य दोनों को बहुत अच्छे ढंग से परिभाषित किया है। संविधान ने देश की परिकल्पना कल्याणकारी राज्य के रूप में की है, इसलिए देश व राज्यों की सरकारों के ऊपर नागरिकों के कल्याण की ज़िम्मेदारी अधिक होती है। इसी के चलते देश में अधिकारलक्षी क़ानूनों को बनाया गया। देश में श्रम क़ानून इसमे प्रमुखता से मज़दूरों के न्यूनतम हकों का संरक्षण करते है।
देश में जब तालाबंदी हुई तो तमाम उद्योग, रोज़गार धंधे बंद हुए, इससे मालिकों, मज़दूरों की आय/वेतन बंद हो गयी, जिसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा।
गुजरात उद्योग प्रधान राज्य है। यहां पर बहुप्रकार के उद्योग स्थापित है। राज्य सरकार ने उद्योग मालिकों के हितों को ध्यान में रखते हुए 1200 दिन (3 साल से अधिक) के लिए श्रम क़ानूनों में ढील दे दी है जैसे काम के घंटे का निर्धारण, सामाजिक सुरक्षा, मज़दूरों की संख्या आदि। महोदय देश में पहले से श्रम का शोषण आम बात है। लोग अपनी क्षमता से कम वेतन पर हाल में नौकरी कर रहे हैं व महंगाई रोज़ आसमान छू रही है। ऐसे में श्रम क़ानूनों में छूट आग में घी डालने का काम करेगी।
अभी जब कोरोना महामारी के चलते देश में तालाबंदी हुई तब गुजरात में अन्य राज्य से आने वाले मज़दूरों की हालत सामने आयी। गुजरात में 40 लाख से अधिक प्रवासी मज़दूर तालाबंदी के दौरान खाने-पीने की समस्या, दिहाड़ी वालों का रोज़गार-धंधा बंद, काम नहीं तो वेतन नहीं, कुछ की वेतन कटौती, रहने के लिए बहुत छोटे कमरे या चाली व तालाबंदी की अनिश्चितता ने प्रवासी मज़दूरों को वापस घर जाने के लिए प्रेरित किया। बड़ी संख्या में लोग काफ़ी लोग पैदल, साइकिल, बाइक, सामान ढ़ोने वाले मालवाहक साधनों से कई गुना ज़्यादा पैसा खर्च करके वापस घर गए व सरकार द्वारा चलाई गयी श्रमिक ट्रेन व बसों से वापस गए। मज़दूरों को बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ा, सरकार के पास भी इनकी संख्या का कोई ठोस आंकड़ा नहीं था, सरकार को खाद्यान्न वितरण के लिए सर्वे में शिक्षक, राजस्व के कर्मचारियों को शामिल करना पड़ा। श्रमिक ट्रेन से वापस जाने के लिए कई कई ऑफिस भटकते रहे जिससे उनमें निराशा, अवसाद भी विकसित होने लगा।
महोदय, उपरोक्त परिस्थिति के मद्देनज़र राज्य में अर्थव्यवस्था की धुरी मज़दूरों के लिए बने श्रम क़ानूनों में किए गए बदलाव तत्काल वापस लिए जाएं, तत्काल प्रवासी श्रमिक आयोग का गठन किया जाए, इसके संबंध में विधानसभा के आगामी सत्र में क़ानून का प्रस्ताव लाकर उसे संवैधानिक मजबूती दी जाए। ये आयोग राज्य में आने वाले मज़दूरों का उद्योग वार आंकड़ा रखे, उनके पहचान पत्र, न्यूनतम वेतन, सामाजिक सुरक्षा व आपदा के समय उनको मुआवज़ा (छतिपूर्ति) व पुनर्वास जैसे सभी बिन्दुओं पर राज्य की सरकार व अन्य राज्यों के साथ समन्वय कर उनके लिए व्यवस्था की ज़िम्मेदारी ले।
मुझे विश्वास है कि आप देश के सभी नागरिकों को एक समान दृष्टि से देखते हुए उनके हित में क़दम उठाएंगे।
दिनांक- 4-6-2020
भवदीय,
मुजाहिद नफ़ीस
कंविनर
माइनॉरिटी कोआर्डिनेशन कमेटी
ईमेल- mccgujarat@gmail.com