आज 25 सितंबर को इस साल का पहला ग्लोबल क्लाइमेट एक्शन डे मनाया जा रहा है। इस दिन कोविड-19 के मद्देनज़र सभी सावधानियां बरतते हुए दुनिया भर में फ्राइडेज़ फॉर फ्यूचर के बैनर तले स्कूल हड़ताल आंदोलन हो रहा है और दुनिया भर में बेहतर जलवायु की मांग को रखते हुए प्रदर्शन हो रहे हैं।
पिछले कुछ महीनों के दौरान कोविड-19 महामारी ने कार्यकर्ताओं और आंदोलनकर्ताओं को विरोध प्रदर्शन के नये तरीके खोजने पर मजबूर कर दिया है। आखिर अब पैदल मार्च और भीड़ का हिस्सा बनना जनहित में सुरक्षित जो नहीं, और इसी क्रम में जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ इस आन्दोलन ने डिजिटल अवतार धारण कर लिया है।
फ्राइडेज़ फॉर फ्यूचर ने अपना बयान जारी करते हुए कहा कि हालात ऐसे बन रहे हैं कि पेरिस एग्रीमेंट के समझौते के तहत ग्लोबल औसत तापमान को 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड से कम रखना आगामी माह और सालों मे कठिन होगा। स्थिति मानव नियंत्रण से बाहर न हो इसके लिए अभी से क़दम उठाने होंगे। कोविड-19 के आगे जलवायु संकट छोटा नहीं हुआ है बल्कि यह वक़्त तो इसे प्राथमिकता देने का है। जब तक प्रकृति का दोहन होता रहेगा तब तक फ़्राइडे फ़ॉर फ्यूचर अपने आन्दोलन जारी रखेगा। चाहे सशरीर प्रदर्शन हों या डिजिटल, लेकिन विरोध प्रदर्शन होगा।
इस आन्दोलन पर फ्राइडे फ़ॉर फ्यूचर, केन्या के एरिक डेमिन कहते हैं, “महामारी ने स्पष्ट कर दिया है कि राजनेताओं के पास विज्ञान की मदद से शीघ्र और स्थायी क़दम उठाने की शक्ति है, लेकिन महामारी के दौरान भी जलवायु संकट पर लगाम नहीं लग पा रही है। स्थायी और न्यायपूर्ण तरीके से दुनिया भर में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए कोई उपाय नहीं किया गया है। अब महामारी से निपटने के लिए किए जाने वाले अरबों-डॉलर के निवेश पेरिस समझौते के अनुरूप होने चाहिए।”
एरिक की बात को आगे ले जाते हुए फ्राइडे फ़ॉर फ्यूचर, भारत से दिशा रवि कहती हैं, “समस्या की गंभीरता तब समझ आती है जब अपने पर गुज़रती है। लाखों लोग अपना घर और जीवनयापन की आवश्यक चीज़ें खो रहे हैं। इसे अनसुना नहीं किया जा सकता। हमें ऐसे वैश्विक राजनेताओं की जरूरत है जो लालच की जगह मानवता को प्राथमिकता दें। अच्छी बात यह है कि अब युवा वर्ग पहले से ज़्यादा योजनाबद्ध और संगठित तरीक़े से संगठित हो रहा है।”
गौरतलब है कि एक दिन पहले ही 24 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा के उच्चस्तरीय जलवायु शिखर सम्मेलन के 75वें समिट से पहले यूके क्लाइमेट चैंपियन नाइजिल टॉपिंग के साथ आर्कटिक वैज्ञानिकों के एक समूह ने आर्कटिक बर्फ के पिघलने से होने वाले नुकसान के मतलब समझाये। अध्ययन बताते हैं कि आर्कटिक को खोना हमें बड़ा महंगा पड़ेगा और ऐसा होना हमारे लिए दुखद खबर होगी।
जहां एक ही सप्ताह में एक तरफ कैलिफोर्निया की वाइल्डफायर विनाश का रास्ता बना रही हैं वहीं दूसरी तरफ ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर का हिस्सा अलग हो गया है। यह साइबेरिया में तपती गर्मी, गर्मियों की शुरुआत में कनाडा के आइस शेल्फ के नुकसान, आदि सब इसके प्रभावों का हिस्सा हैं। यह असंबंधित लगने वाली घटनाएं असल में जुड़ी हुई हैं और जितना संभव हो उतना आर्कटिक समुद्री बर्फ और बर्फ की चादरों को बचाना हमें भविष्य के लिए सबसे सर्वोत्तम मौका देता है।
Climateकहानी के सौजन्य से