दिल्ली यूनिवर्सिटी ने एक अधिसूचना जारी कर के ऑनलाइन परीक्षा लेने की बात कही थी। इस अधिसूचना के खिलाफ दिल्ली युनिवर्सिटी छात्र संघ ने विश्वविद्यालय प्रशासन को सोमवार को एक मेमोरेंडम जमा कराया है जिसमें छात्रों के पक्ष को रखा गया है। कुलपति और डीन (परीक्षा) को यह ज्ञापन छात्रसंघ अध्यक्ष की ओर से सौंपा गया है।
विश्वविद्यालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार परीक्षा 1 जुलाई से 15 जुलाई के बीच होने की बात कही गयी है, हालांकि अभी तक इसकी डेटशीट जारी नहीं की गई है। इस बीच बड़ी संख्या में छात्रों ने अधिसूचना का विरोध करते हुए 15 मई को #DUAgainstOnlineExam हैशटैग से ट्विटर अभियान चलाया जो भारत में उस दिन शीर्ष पर रहा। छात्रों का कहना है कि ऑनलाइन परीक्षा देने में वे असमर्थ हैं।
छात्रों का कहना है कि ऑनलाइन क्लास अटेंड करने और असाइनमेंट जमा करने में वे पहले ही असमर्थ थे, इसी बीच विश्वविद्यालय प्रशासन ने ऑनलाइन परीक्षा की सूचना जारी कर छात्रों को नयी परेशानी में डाल दिया है। दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक अंतिम वर्ष के छात्र शिवम शांडिल्य ने अपनी समस्या साझा करते हुए कहा, “पहली नज़र में ही ऑनलाइन परीक्षा की व्यवस्था असंवैधानिक है क्योंकि इसमें सभी छात्रों को यहाँ बराबर मौका नहीं मिलेगा। मेरे पास अभी लैपटॉप नहीं है जिसके कारण असाइनमेंट जमा करने में भी मुझे बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे समय में जब सिलेबस अधूरा है, किताबें पास में नहीं हैं, अगर ऑनलाइन परीक्षा होती है तो उसे दे पाने में मैं असमर्थ हूँ।”
मोतीलाल नेहरू कॉलेज में स्नातकोत्तर अंतिम वर्ष के छात्र हिमांशु शुक्ला ने कहा, “ऑनलाइन क्लास अक्सर सुस्त इंटरनेट सेवा के कारण बुरे तरीके से बाधित रहती है। गाँवों में रह रहे मेरे कई साथी इससे महरूम रहे। ऐसा समाज जो तकनीकी रूप से इतना विभक्त है उसे शिक्षा के लिए ऐसी पद्धति कभी नहीं अपनानी चाहिए क्योंकि शिक्षा का अर्थ समानता की ओर कदम बढ़ाना होता है, विभाजन को तोड़ना होता है न कि उसे और मजबूत करना।”
पर्याप्त तकनीकी सुविधा, जैसे टैब, लैपटॉप, कंप्यूटर आदि न होने के कारण ज्यादातर छात्रों को फ़ोन से ही सब कुछ करना पड़ता है। लॉकडाउन से पहले छुट्टी होने कारण अधिकतर छात्र अपने घर चले गए थे और उन्हें इस हालात का अंदाज़ा नहीं था इसलिए अपने साथ अपनी किताबें और लैपटॉप लेकर घर नहीं गए थे। अब, जब विश्वविद्यालय की तरफ़ से यह फ़रमान सुनाया गया है तो उनके लिए चीज़ें काफ़ी मुश्किल हो गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में और विशेषकर उत्तर पूर्व के राज्यों व कश्मीर में तो स्थिति इस लिहाज से और भी ज़्यादा खराब है।
बीते सप्ताह छात्र संगठन आइसा ने एक सर्वे कराया जिसमें 74 फीसद छात्रों ने ऑनलाइन परीक्षा के ख़िलाफ़ अपनी नाराजगी जताई।
मिरांडा हाउस में द्वितीय वर्ष की छात्रा मानसी डागर ने कहा, “मेरे पास इंटरनेट की वो व्यवस्था नहीं है जो हॉस्टल में हुआ करती थी। लैपटॉप साथ नहीं होने के कारण मुझे सारे असाइनमेंट फोन पर ही करने पड़े। स्टडी मटीरियल को फोन पर पढ़कर परीक्षा की तैयारी बहुत मुश्किल हो जाती है। फोन पर छोटे फॉन्ट में उसे पढ़ पाना काफ़ी कठिन है। सबसे बड़ी बात कि जिन चीज़ों का छात्रों को अब तक कोई अभ्यास नहीं है वे जबर्दस्ती थोपी जा रही हैं। परीक्षा के बीच अगर नेट कनेक्टिविटी या कोई और तकनीकी समस्या उत्पन्न हो जाती है तो फिर छात्र क्या करें? क्या यूनिवर्सिटी की वेबसाइट इतना हेवी ट्रैफ़िक झेल पाने में सक्षम है?”
भीमराव अंबेडकर कॉलेज में स्नातक तृतीय वर्ष की छात्रा अदिति बताती हैं, “जब नेट अच्छा नहीं चलता तो विद्यार्थी पेपर कैसे डाउनलोड करेंगे? फिर उत्तर पुस्तिका को स्कैन करके कैसे सबमिट करेंगे? जनवरी में नॉन टीचिंग स्टाफ की हड़ताल रही, फरवरी में दिल्ली दंगा और फिर मार्च से कोरोना वायरस और लॉकडाउन। जब नोट्स ही सही से नहीं हैं तो कैसे लिखेंगे? जब कोई सुविधा ही नहीं है तो परीक्षा में कैसे बैठेंगे?”
प्रशासन को ज्ञापन देने के बाद डूसू के अध्यक्ष अक्षित दहिया ने कहा, “बहुत सारे छात्र अपनी पढ़ाई के लिए विश्वविद्यालय के संसाधनों पर पूरी तरह निर्भर होते हैं, लेकिन अभी जब वे अपने गाँव-घर में होंगे तो उनके लिए ऑनलाइन परीक्षा में बैठ पाना आसान नहीं होगा। इस बारे में डीयू प्रशासन ने 11 मई को सुझाव मांगे थे और फिर 14 मई को ही ऑनलाइन परीक्षा आयोजित करने का नोटिस जारी कर दिया गया जो न्यायसंगत नहीं है। हम सभी विकल्पों पर अभी बात करने की कोशिश कर रहे हैं।”