मुख्यमंत्री की अनुमति के बावजूद बीजापुर जिला प्रशासन द्वारा खड़ी की गयी बाधाओं को लांघकर छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन का एक प्रतिनिधिमंडल 28 जून को सारकेगुड़ा पहुंचने में सफल रहा। प्रतिनिधिमंडल ने नौ साल पहले सारकेगुड़ा के शहीदों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की तथा यहां आयोजित विशाल श्रद्धांजलि और प्रतिरोध सभा को संबोधित किया। इस सभा में दस हजार से ज्यादा आदिवासी शामिल हुए।
विभिन्न जन संगठनों व आंदोलनों से जुड़े सीबीए के इस 15 सदस्यीय दल में सीबीए के संयोजक आलोक शुक्ल, छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के संयोजक सुदेश टीकम, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम, माकपा राज्य सचिव व किसान सभा राज्य अध्यक्ष संजय पराते, मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया व प्रियंका शुक्ला आदि शामिल थे, जिन्होंने इस जनसभा को संबोधित किया और आदिवासियों के संघर्षों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त की।
उल्लेखनीय है कि नौ वर्ष पहले वर्ष 2012 में नक्सलियों के नाम पर एक फर्जी मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने 7 नाबालिगों सहित 17 आदिवासियों की हत्या कर दी थी। इस जनसंहार के खिलाफ गठित एक जांच आयोग ने इन सभी आदिवासियों की हत्या के लिए सुरक्षा बलों को जिम्मेदार ठहराया है, इसके बावजूद न तो पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने और न ही वर्तमान कांग्रेस सरकार ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही की है। यह जनसभा इन्हीं शहीदों की याद में आयोजित की गयी थी।
इस जनसभा के केंद्र में सिलगेर में सैन्य कैम्प का विरोध कर रहे हजारों आदिवासियों के शांतिपूर्ण धरने पर 17 मई को चलायी गयी गोली भी थी, जिसमें एक गर्भवती महिला सहित चार आदिवासी मारे गये और पचासों घायल हुए थे। इस हत्याकांड को भी कांग्रेस सरकार रफा-दफा करने की कोशिश कर रही है और उच्चस्तरीय न्यायिक जांच कराने से इंकार कर रही है।
सारकेगुड़ा में हुई जनसभा के लिए संयुक्त किसान मोर्चा और किसान संघर्ष समिति की ओर से अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव कॉ. हन्नान मोल्ला ने भी एकजुटता संदेश भेजा था, जिसे अपने संबोधन के साथ किसान सभा नेता संजय पराते ने पढ़कर सुनाया। पूरा वक्तव्य इस प्रकार था:
सारकेगुड़ा के भाइयों और बहनों,
हन्नान मोल्ला
संयुक्त किसान मोर्चा, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और अखिल भारतीय किसान सभा की ओर से राज्य प्रायोजित पुलिसिया दमन के खिलाफ आपके द्वारा चलाये जा रहे संघर्षों का हम समर्थन करते हैं और आपके आंदोलन के साथ इस देश की समूची किसान जनता और शोषित-उत्पीड़ित तबकों की एकजुटता व्यक्त करते हैं। आपका संघर्ष इस देश में किसान-मजदूरों के अधिकारों के लिए चलाए जा रहे व्यापक संघर्ष का ही अभिन्न हिस्सा है। आप बस्तर क्षेत्र में धरना में बैठे हैं, हम यहां दिल्ली की सीमाओं पर डटे हैं। बस्तर पांचवीं अनुसूची का क्षेत्र है। यहां पेसा कानून लागू होना चाहिए और ग्राम सभा की सर्वोच्चता और आदिवासी समुदाय की राय का सम्मान होना चाहिए। यही हमारे देश का संविधान कहता है। हम इस देश में और बस्तर में संविधान और संवैधानिक प्रावधानों को उसकी भावना में लागू करने के लिए लड़ रहे हैं। जो भी सरकार और प्रशासन संविधान के खिलाफ जाकर काम करेगी, सत्ता में बने रहने का उसको कोई नैतिक अधिकार नहीं है। ऐसी सरकार की विदाई सुनिश्चित किया जाना चाहिए। प्रशासन के ऐसे आदेशों का कोई अर्थ नहीं है, जो आम जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचलते हैं, उसका दमन करते हैं। एक बार फिर हम आपके संघर्षों के साथ पूरे देश की जनता की एकजुटता का ऐलान करते है। बस्तर की आम जनता के अधिकारों के लिए चल रहा संघर्ष जिन्दाबाद!!