छत्तीसगढ़ : युद्धविराम और संवाद के लिए एक अपील



हम, अधोहस्ताक्षरी संगठन और व्यक्ति, शांति वार्ता के लिए भाकपा (माओवादी) के प्रस्ताव और छत्तीसगढ़ सरकार की प्रतिक्रिया—जिसमें वार्ता के लिए दरवाज़ा खुला रखने की बात कही गई है—का स्वागत करते हैं। हालांकि, सरकार को ज़मीन पर चल रहे युद्ध को तुरंत रोककर अपनी मंशा को स्पष्ट रूप से दर्शाना होगा। हम दोनों पक्षों से अपील करते हैं कि वे आदिवासियों और अन्य ग्रामीणों के सर्वोत्तम हितों को ध्यान में रखते हुए, भारत के संविधान की रूपरेखा के अंतर्गत नागरिकों के संवैधानिक, लोकतांत्रिक और मानवाधिकारों को ध्यान में रखकर शांति वार्ता में भाग लें। 

छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग, झारखंड के पश्चिम सिंहभूम और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जैसे आदिवासी बहुल ज़िले वर्तमान में इस टकराव के केंद्र में हैं, और किसी भी वार्ता में वहां के निवासियों के जीवन और कल्याण को पहली प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

हम दोनों पक्षों से अपील करते हैं कि वे हर प्रकार की हिंसा को तत्काल प्रभाव से रोकने के लिए युद्धविराम को स्वीकार करें और इसकी औपचारिक घोषणा करें। अब किसी भी पक्ष की ओर से कोई शत्रुतापूर्ण कार्रवाई नहीं होनी चाहिएचाहे वह सैन्य अभियान, गैरन्यायिक हत्याएं और मुठभेड़ हों, आईईडी विस्फोट और नागरिकों की हत्या हो या किसी भी प्रकार की हिंसा।

भारत के संविधान के तहत गठित सरकार पर यह बाध्यता है कि वह सबसे पहले संवैधानिक सिद्धांतों और मूल्यों का पालन करे, उनका सम्मान करे और उन्हीं के आधार पर कार्य करे। संविधान की दृष्टि और भावना के अनुरूप, सरकार की यह प्रमुख जिम्मेदारी बनती है कि वह इस स्थिति को किसी बाहरी शत्रु के साथ ‘युद्ध’ के रूप में न देखे, बल्कि इसे अपने ही नागरिकों के साथ उत्पन्न एक आंतरिक टकराव के रूप में माने, जिसे शीघ्र ही सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाया जाना आवश्यक है। इस प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि सरकार अपने संवैधानिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता और उदार भावना का प्रदर्शन करते हुए शांति वार्ता का नेतृत्व करे। इसके लिए जरूरी है कि सरकार बिना किसी पूर्व शर्त के माओवादियों से शांति वार्ता की पहल करे। 

बस्तर में राज्य प्रायोजित और प्रतिबंधित सलवा जुडूम की शुरुआत को ठीक 20 साल हो चुके हैं, जिसने लोगों की हत्या, गांवों को जलाना, बलात्कार, भूखमरी, बड़े पैमाने पर विस्थापन और अन्य प्रकार की हिंसा के रूप में अपार पीड़ा पहुंचाई। तब से बस्तर के ग्रामीणों को शांति नहीं मिली है। वे जैसे-तैसे अपने गांवों में लौटे ही थे कि ऑपरेशन ग्रीन हंट और उसके बाद के कई अभियानों का सामना करना पड़ा। 2024 से ऑपरेशन कगार के नाम से 400 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं (2024 में 287, 2025 में 113).[i] हालांकि मारे गए नागरिकों की सही संख्या अज्ञात है, लेकिन यह देखते हुए कि जिन लोगों को माओवादी बताया गया है, उनमें से कई की पहचान ग्रामीणों द्वारा नागरिकों के रूप में की गई है, यह स्पष्ट है कि नागरिक असमान रूप से प्रभावित हो रहे हैं।[ii] आर्टिकल 14 की रिपोर्ट के अनुसार 2018 से 2022 के बीच सुरक्षाकर्मियों (168) और माओवादियों (327) की तुलना में अधिक नागरिक (335) मारे गए हैं।[iii] 2024 में बच्चों के मारे जाने की कई घटनाएं हुईं। एसएटीपी ने 2025 के लिए 15 नागरिकों, 14 सुरक्षा बलों और 150 माओवादियों के मारे जाने का ब्यौरा दिया है।[iv] इन हत्याओं के लिए सुरक्षा बलों को 8.24 करोड़ रुपये का इनाम मिला है।[v]

एक आधिकारिक अनुमान के अनुसार, पिछले 25 वर्षों में 16,733 लोगों को गिरफ्तार किया गया तथा 10,884 लोगों ने आत्मसमर्पण किया।[vi] सरकार का दावा है कि मार्च 2026 तक माओवादियों का खात्मा हो जाएगा और अब केवल 400 सशस्त्र कैडर बचे हैं| [vii] बरामद हथियारों में से अधिकांश (मात्र 263 हथियार) देशी पिस्तौल, कच्ची 12 बोर बंदूकें या मज़ल लोडर हैं।[viii] अब ‘गंभीर रूप से प्रभावित’ जिलों की संख्या घटकर केवल छह रह गई है। ऐसे हालात में, माओवादी अब कोई ऐसा सुरक्षा खतरा नहीं हैं, जो मौजूदा सैन्यीकरण और आक्रामक अभियान को उचित ठहरा सके।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा SPOs को भंग करने और आत्मसमर्पण/गिरफ्तार किए गए माओवादियों को किसी भी रूप में काउंटर-इंसर्जेंसी अभियानों में शामिल न करने के निर्देशों का पालन करने के बजाय, सरकार ने जिला रिजर्व गार्ड (District Reserve Guards) और बस्तर फाइटर्स (Bastar Fighters) का उपयोग और बढ़ा दिया है, जिनमें अधिकांश पूर्व सलवा जुडूम के सदस्य शामिल हैं। यही लोग मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं, और स्वयं उनके अपने मानवाधिकारों का भी इस प्रक्रिया में उल्लंघन होता है। सलवा जुडूम के समय से अब तक शायद ही किसी आम नागरिक को उनके नुकसान के लिए मुआवज़ा मिला हो, और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद अब तक किसी के खिलाफ अभियोजन की कार्रवाई नहीं हुई है।

बस्तर में 160 से अधिक सुरक्षा बलों के कैंप स्थापित किए गए हैं|[ix] इनमें से अधिकांश सार्वजनिक भूमि पर हैं और कुछ मामलों में ग्रामीणों की निजी भूमि पर हैं, और आदिवासी निवासियों के लिए गंभीर संकट पैदा कर रहे हैं।[x] प्रति 9 नागरिकों पर लगभग एक सुरक्षाकर्मी है।[xi] स्कूलों, स्वास्थ्य सेवाओं, सार्वजनिक परिवहन और अन्य कल्याणकारी योजनाओं की गति सड़क निर्माण की गति के अनुरूप नहीं रही है। इसके बजाय, सरकार ने कई खनन कंपनियों के साथ समझौता ज्ञापन (MOU) पर हस्ताक्षर किए हैं, जिन्हें लेकर ग्रामीणों को आशंका है कि इससे बड़े पैमाने पर विस्थापन और पर्यावरणीय क्षरण होगा।खनन और अन्य प्रकार के विस्थापन के खिलाफ उनका संवैधानिक संघर्ष लगातार दबाया गया है – सामान्य स्थिति में भी और माओवाद से लड़ने के बहाने से भी।

जो ग्रामीण अपनी संवैधानिक अधिकार – जैसे कि पेसा और अन्य प्रावधानों के तहत परामर्श का अधिकार – की मांग को लेकर विभिन्न स्थानों पर शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे थे, उन्हें कड़े दमन का सामना करना पड़ा है। उनके धरना स्थलों को तोड़ दिया गया है और ग्रामीणों को पीटा गया है।  ग्रामीणों के बीच भय फैलाने के लिए मोर्टार शेल और बमों का अंधाधुंध उपयोग किया गया है, जिससे वे सामान्य जीवन जीने में असमर्थ हो गए हैं।  मूलवासी बचाओ मंच पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और इसके युवा नेताओं को गंभीर आरोपों जैसे यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया है। यह गिरफ्तारी इसलिए की गई क्योंकि उन्होंने सुरक्षा शिविरों और फर्जी मुठभेड़ों के खिलाफ विरोध किया, जबकि संविधान सभा और शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार प्रदान करता है।  सरकार ने शांतिपूर्ण संवाद के सभी रास्ते बंद कर दिए हैं।

माओवादियों को राज्य बलों के खिलाफ हिंसा और आईईडी के प्रयोग को तुरंत बंद करना चाहिए, क्योंकि ये आम ग्रामीणों, बच्चों और मवेशियों के लिए भी खतरा बनते हैं। जन अदालतों में सुनाई जा रही ‘मृत्युदंड’ की सजाएं भी समाप्त की जानी चाहिए।   

सशस्त्र संघर्ष और राज्य दमन की स्थिति में लोगों से जुड़े असली मुद्दे – जैसे कि खाद्य सुरक्षा, भूमि और वन अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य, सांस्कृतिक अधिकार और उनका बहुआयामी शोषण – गौण हो जाते हैं। जिन ज़मीनों पर खनन प्रस्तावित है, वहाँ के लोगों की सहमति आवश्यक है। इन सभी मुद्दों का समाधान तुरंत किया जाना चाहिए, जो केवल शांति और न्याय की स्थिति में ही संभव है।

हम शान्ति स्थापित करने के लिए हर पहल का स्वागत करते हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से जुड़े हम सभी चिंतित नागरिक एक बार फिर भारतीय संविधान के दायरे में शांति वार्ता की मांग करते हैं।

हम कुछ सरल लेकिन अत्यंत आवश्यक मांगें प्रस्तुत करते हैं, जिनके लिए सरकार को तुरंत प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए:

  1. सरकार को आदिवासी क्षेत्रों में जारी हमले को रोकना चाहिए ताकि युद्धविराम की स्थिति बन सके।
  2. भाकपा (माओवादी) को राज्य बलों के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा तुरंत बंद करनी चाहिए ताकि युद्धविराम संभव हो सके।
  3. सरकार और भाकपा (माओवादी) के बीच संवाद शुरू होना चाहिए।
  4. प्रभावित क्षेत्रों तक स्वतंत्र नागरिक संगठनों और मीडिया को निर्बाध पहुंच दी जानी चाहिए।
  5. लोगों की आजीविका की आवश्यकताओं और संवैधानिक अधिकारों को तुरंत संबोधित किया जाना चाहिए।
  6. राज्य को उन सभी आदिवासियों और कार्यकर्ताओं को तुरंत रिहा करना चाहिए जिन्हें अपने लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर आवाज उठाने और आदिवासियों के विरोधी राज्य नीतियों से असहमति जताने के कारण जेल में डाला गया है, ताकि वे वार्ता प्रक्रिया में बराबर के भागीदार के रूप में भाग ले सकें। (उदाहरणस्वरूप मूलवासी बचाओ मंच के कार्यकर्ता)।

हम दृढ़ता से मानते हैं कि शांति वार्ता और युद्धविराम बस्तर में लोकतांत्रिक अधिकारों की पुनःस्थापना की दिशा में केवल पहला कदम हैं। इसके बाद क्षेत्र का स्थायी रूप से अर्धसैनिक बलों से मुक्त किया जाना (जिसमें सभी सुरक्षा बल कैंप को हटाना शामिल है), सभी संबंधित बंदियों की रिहाई, मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए क्षतिपूर्ति, पेसा और वनाधिकार जैसे सुरक्षात्मक कानूनों का क्रियान्वयन, नई खदानों पर रोक, विरोध के अधिकार का सम्मान और स्वतंत्र एवं लोकतांत्रिक जीवन की अन्य शर्तों की दिशा में निरंतर प्रयास किया जाना चाहिए।

हम सभी लोकतांत्रिक और राजनीतिक ताकतों, जिनमें राजनीतिक दल भी शामिल हैं, से अपील करते हैं कि वे इस प्रक्रिया का समर्थन करें और राज्य को उसके संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने के लिए बाध्य करें।

Organisations

  1. All India Feminist Alliance (ALIFA) (Sagari, Nikita, Deepthi, Varsha, Priyanka, Pranjali)
  2. All India Inquilabi Youth and Students Alliance (ALIYSA) (Rahee, Heman, Raju, Shubham, Ritika, Laasya, Karthik)
  3. All India Krantikari Kisan Sabha (A.I.K.K.S) (Sankar Inquilab, State Secretary Odisha)
  4. All India Lawyers Association for Justice (Clifton D’ Rozario and Maitreyi Krishnan)
  5. Association for Protection of Civil Rights  (Nadeem Khan)
  6. Association for Protection of Democratic Rights (Ranjit Sur)
  7. Bhagat Singh Chhatra Ekta Manch (Gurkirat)
  8. Campaign Against Fabricated Cases (CAFC), Odisha (Narendra Mohanty)
  9. Campaign for Peace and Justice in Chhattisgarh (CPJC) (Isha Khandelwal, Sharanya Nayak, Nandini Sundar)
  10. Coordination of Democratic Rights organisations) (CDRO)
  11. Civil Liberties Committee, Andhra Pradesh (V.Chitti Babu, Ch.Chandra Shekhar)
  12. Civil Liberties Committee, Telangana (Prof. Laxman Gaddam, N.Narayana Rao )
  13. Committee for the Release of Political Prisoners (CRPP) (Ravi Balla)
  14. Coordination Committee of Working Women, Rajasthan
  15. Democratic Front against Operation Green Hunt, Punjab (Parminder Singh, A. K. Maleri, Buta Singh Mehmoodpur and Yash Pal)
  16. Dr. Richhariya Foundation (Karthik)
  17. Ek Potlee Ret Ki (Kaani Nilam) (Radhika Ganesh)
  18. FAOW (Mukta Srivastava)
  19. Fatima Shaikh Study Circle (Osama)
  20. Forum Against Oppression of Women (Sandhya Gokhale)
  21. Forum Against Repression, Telangana (Prof.G. Haragopal, K.Ravi Chander)
  22. Ganatantrik Adhikar Surakhya Sangathan, (GASS), Odisha (Deba Ranjan and Dr. Golak Bihari Nath)
  23. Hasrat-e-Zindagi Mamuli (Chayanika Shah)
  24. Human Rights Forum (S Jeevan Kumar, VS Krishna)
  25. Indian Nationalists Movement
  26. INSAF (Vidya Dinker)
  27. Insani Biradari (Aadiyog, Imran Ahmad)
  28. Jaldhara Abhiyan (Upendra Shankar)
  29. Jharkhand Janadhikar Mahasabha (B B Choudhary, Elina Horo, Siraj Dutta, Tom Kavla)
  30. Justice News (Arun Khote)
  31. MAKAAM
  32. Manomitram (Renny Antony)
  33. Nagrik Adhikar Samiti, Jharkhand (Ashok Verma)
  34. Narmada Bachao Andolan (Medha Patkar, Kamla Yadav, Mahendra)
  35. National Alliance for Justice, Accountability and Rights (NAJAR) (Sr. Adv Gayatri Singh, Adv Indira Unninayar, Adv Purbayan, Adv Deeptangshu Car, Katyayani Chandola, Carina)
  36. National Alliance of People’s Movement (Arundhati Dhuru, Ashish Ranjan, Meera Sanghamitra)
  37. National Federation of Indian Women NFIW
  38. New Trade Union Initiative (Milind Ranade, Gautam Mody, Manas Das)
  39. Odisha Manarega Shramik Union (P Parvati)
  40. Pahal Sansthan
  41. People’s Watch (Henri Tiphagne)
  42. People’s Union for Civil Liberties (Kavita Srivastava,V Suresh)
  43. People’s Union for Democratic Rights (PUDR) (Harish Dhawan and Paramjeet Singh)
  44. Queer Collective India (Priyank Sukanand)
  45. Queer Poets Collective (Rumi Harish, Dadapeer Jyman, Sunil Mohan)
  46. Rajsamand Mahila Manch (Lalita Sharma)
  47. Revolutionary Youth Association (RYA) (Niraj Kumar)
  48. Saajhi Duniya (Roop Rekha Verma)
  49. Sajha Kadam (Praveer Peter)
  50. Samta
  51. Save Dwarka Forest People’s Movement  (Tannuja Chauhan)
  52. Telangana Democratic Forum
  53. Trade Union Center of India (TUC) (Bichitra Patra)
  54. Young People For Politics (Nivedita Ravi)

Concerned citizens

  1. A. Banerjee
  2. A.Suneetha
  3. Aakar Patel
  4. Addanki Veeranjaneyulu
  5. Adv. Bhoomika Pandhare
  6. Ajay T G
  7. Akhileshwari Ramagoud, Hyderabad
  8. Alok Agnihotri Advocate
  9. Anand malviya
  10. Anju K Disability Activist
  11. Ankita Aggarwal
  12. Anto Joseph
  13. Anupriya S
  14. Anuradha Banerji, Activist-Researcher.
  15. Anuradha Talwar
  16. Apurba Roy
  17. Aratrika
  18. Arindam Roy
  19. Arun Vyas
  20. Aruna Nellutla
  21. Arvind Narraiin
  22. Ashalatha
  23. Ashima Roy Chowdhury
  24. Avani Chokshi
  25. B Muralidhar
  26. Balreddy jitta
  27. Bappadittya Sarkar
  28. Barnali Mukherjee
  29. Beena Choksi
  30. Bela Bhatia
  31. Bhanumathi Kalluri
  32. Bharat Majhi
  33. Biraj Mehta
  34. Biswapriya Kanungo, Advocate, Bhubaneswar
  35. Bittu Kondaiah
  36. C B choudhary
  37. C Mitra
  38. Carol Geeta
  39. Cedric Prakash
  40. Chanda Asani
  41. Chandu
  42. Chitra Joshi
  43. Deepa
  44. Dinesh Yadav
  45. Diviya
  46. Dr. Rosemary Dzuvichu
  47. Dr. Sudhir Vombatkere
  48. Dr. Walter Fernandes
  49. Dr.Sebastian Joseph Professor
  50. Fawaz Shaheen
  51. Frazer Mascarenhs
  52. George Monipalli
  53. Goutam Kumar Bose, Jharkhand Agitetore and Trade Union Activist.
  54. Gova Rathod
  55. Gurbir Singh
  56. Harsh Mander
  57. Hem Mishra
  58. Himanshu Kumar
  59. Isha Khandelwal
  60. Jean Drèze
  61. Joseph Xavier, Madurai
  62. Judah
  63. Judah Sharon
  64. K Sukumaran Advocate Gudalur The Nilgiris
  65. K. Manoharan, Writer & Human Rights activist, Tamil Nadu
  66. K. Praveen kumar
  67. K.Sajaya, Independent Journalist and Social Activist
  68. Kailash Mina
  69. Kamal Gopinath, President, PUCL Mysore
  70. Kamini Tankha
  71. Kanduri praveen Kumar
  72. Kavva Laxma Reddy
  73. Khalil ur Rehaman
  74. Krishnakant Chauhan
  75. Lalita Ramdas
  76. Latha K Biddappa
  77. Madhubanti
  78. Madhumitha Shankar
  79. Madhuri
  80. Manav Sivaram
  81. Manisha Banerjee
  82. Millind Champanekar
  83. Mohamed Miandad
  84. MV Ramana
  85. N Venugopal, Journalist
  86. Nancy Gaikwad
  87. Narla Ravi
  88. Natarajan D V
  89. Navsharan Singh
  90. Neetisha Khalkho
  91. Nikita Jain
  92. Nikita Naidu
  93. Nisha Biswas
  94. P M Tony
  95. P. Rohini Rajasekaran
  96. P.vishnuvardhanarao
  97. Padmini Baruah
  98. Paran Amitava
  99. Paromita Dutta
  100. Ponnala vijayanandareddy
  101. Prakash Louis
  102. Prakriti
  103. Pranjali Tripathi
  104. Prashant Rahi
  105. Prof Latha K Biddappa
  106. Prqgnya Joshi
  107. Radha Kumar
  108. Radhika, Assistant Professor (Law)
  109. Raghavender Reddy
  110. Rajani Rao Bangalore
  111. Rajaraman
  112. Rajesh Ramakrishnan
  113. Ramneek Singh, Playwright
  114. Ranjana Padhi
  115. Rati Rao E.
  116. Ravi Joshi
  117. Renny Antony (Kerala)
  118. Rohit Prajapati, Environment Activist
  119. Roohdar X
  120. Rukmini Rao
  121. Rupa Pannalal
  122. Salam Rajesh, Imphal, Manipur.
  123. Salim Saboowala
  124. Sanober Keshwar
  125. Sarfaraz
  126. Satyanarayana.s
  127. Shalini Gera
  128. Shalu Nigam
  129. Shreya Subramanian
  130. Shridevi PN
  131. Shubham Kothari
  132. Shubham Waydande
  133. Shujayathulla
  134. Solomon
  135. Srimant Mohanty, Odisha
  136. Sudhir kumar
  137. Sukanya Kanarally
  138. Syed Akmal Razvi
  139. T Nishaant
  140. Tariq Durrani
  141. Ulka Mahajan
  142. Ushasi Roy
  143. Vaishnavi
  144. Vani Subramanian
  145. Varsha
  146. Vijaya Vanamala
  147. Wandana Sonalkar
  148. Y Rajashekhar
  149. Y.J. Rajendra

[i] https://timesofindia.indiatimes.com/india/in-80-days-113-maoists-killed-by-forces-in-chhattisgarh/articleshow/119277633.cms

[ii] https://pucl.org/wp-content/uploads/2024/08/Pidiya-and-Bodga_final-eng.docx.pdf

[iii] https://www.article-14.com/post/in-bastar-war-lines-between-civilians-maoists-blur-as-amit-shah-sets-march-2026-deadline-to-end-insurgency-67abb2b8cf943

[iv] https://www.satp.org/datasheet-terrorist-attack/fatalities/india-maoistinsurgency

[v] https://www.indiatoday.in/india-today-insight/story/ground-zero-bastar-the-fight-to-finish-off-maoists-2648870-2024-12-12

[vi] https://indianexpress.com/article/long-reads/maoists-arrest-chhattisgarh-naxal-cpim-9837130/

[vii] https://timesofindia.indiatimes.com/city/raipur/only-400-armed-cadres-left-in-bastar-clock-ticks-on-maoist-elimination-police/articleshow/118658159.cms

[viii] https://www.indiatoday.in/india-today-insight/story/ground-zero-bastar-the-fight-to-finish-off-maoists-2648870-2024-12-12

[ix] https://www.indiatoday.in/india-today-insight/story/ground-zero-bastar-the-fight-to-finish-off-maoists-2648870-2024-12-12

[x] https://aippnet.org/wp-content/uploads/2024/08/Citizens-report-on-security-and-insecurity-bastar-chhattisgarh.pdf

[xi] Ibid.


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

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