देश भर के दो सौ से ज़्यादा जन संगठनों, कार्यकर्ताओं, वकीलों, शिक्षाविदों, पत्रकारों और नागरिकों ने संलग्न सार्वजनिक अपील जारी की है जिसमें भाकपा (माओवादी) और सरकार के बीच तत्काल युद्धविराम और शांति वार्ता का आह्वान किया गया है। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग, झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के आदिवासी बहुल ज़िले इस समय इस संघर्ष के केंद्र में हैं और किसी भी बातचीत में निवासियों के जीवन और कल्याण को पहली प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हस्ताक्षरकर्ताओं ने शांति वार्ता के लिए भाकपा (माओवादी) के प्रस्ताव और छत्तीसगढ़ सरकार की प्रतिक्रिया—जिसमें वार्ता के लिए दरवाज़ा खुला रखने की बात कही गई है—का स्वागत किया है। हालांकि, सरकार को ज़मीन पर चल रहे युद्ध को तुरंत रोककर अपनी मंशा को स्पष्ट रूप से दर्शाना होगा। हस्ताक्षरकर्ताओं ने दोनों पक्षों से आदिवासियों और अन्य ग्रामीणों के सर्वोत्तम हितों को ध्यान में रखते हुए, भारत के संविधान की रूपरेखा के अंतर्गत नागरिकों के संवैधानिक, लोकतांत्रिक और मानवाधिकारों को ध्यान में रखकर शांति वार्ता में भाग लेने का आव्हान किया है।
हम, अधोहस्ताक्षरी संगठन और व्यक्ति, शांति वार्ता के लिए भाकपा (माओवादी) के प्रस्ताव और छत्तीसगढ़ सरकार की प्रतिक्रिया—जिसमें वार्ता के लिए दरवाज़ा खुला रखने की बात कही गई है—का स्वागत करते हैं। हालांकि, सरकार को ज़मीन पर चल रहे युद्ध को तुरंत रोककर अपनी मंशा को स्पष्ट रूप से दर्शाना होगा। हम दोनों पक्षों से अपील करते हैं कि वे आदिवासियों और अन्य ग्रामीणों के सर्वोत्तम हितों को ध्यान में रखते हुए, भारत के संविधान की रूपरेखा के अंतर्गत नागरिकों के संवैधानिक, लोकतांत्रिक और मानवाधिकारों को ध्यान में रखकर शांति वार्ता में भाग लें।
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग, झारखंड के पश्चिम सिंहभूम और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जैसे आदिवासी बहुल ज़िले वर्तमान में इस टकराव के केंद्र में हैं, और किसी भी वार्ता में वहां के निवासियों के जीवन और कल्याण को पहली प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
हम दोनों पक्षों से अपील करते हैं कि वे हर प्रकार की हिंसा को तत्काल प्रभाव से रोकने के लिए युद्धविराम को स्वीकार करें और इसकी औपचारिक घोषणा करें। अब किसी भी पक्ष की ओर से कोई शत्रुतापूर्ण कार्रवाई नहीं होनी चाहिए—चाहे वह सैन्य अभियान, गैर–न्यायिक हत्याएं और मुठभेड़ हों, आईईडी विस्फोट और नागरिकों की हत्या हो या किसी भी प्रकार की हिंसा।
भारत के संविधान के तहत गठित सरकार पर यह बाध्यता है कि वह सबसे पहले संवैधानिक सिद्धांतों और मूल्यों का पालन करे, उनका सम्मान करे और उन्हीं के आधार पर कार्य करे। संविधान की दृष्टि और भावना के अनुरूप, सरकार की यह प्रमुख जिम्मेदारी बनती है कि वह इस स्थिति को किसी बाहरी शत्रु के साथ ‘युद्ध’ के रूप में न देखे, बल्कि इसे अपने ही नागरिकों के साथ उत्पन्न एक आंतरिक टकराव के रूप में माने, जिसे शीघ्र ही सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाया जाना आवश्यक है। इस प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि सरकार अपने संवैधानिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता और उदार भावना का प्रदर्शन करते हुए शांति वार्ता का नेतृत्व करे। इसके लिए जरूरी है कि सरकार बिना किसी पूर्व शर्त के माओवादियों से शांति वार्ता की पहल करे।
बस्तर में राज्य प्रायोजित और प्रतिबंधित सलवा जुडूम की शुरुआत को ठीक 20 साल हो चुके हैं, जिसने लोगों की हत्या, गांवों को जलाना, बलात्कार, भूखमरी, बड़े पैमाने पर विस्थापन और अन्य प्रकार की हिंसा के रूप में अपार पीड़ा पहुंचाई। तब से बस्तर के ग्रामीणों को शांति नहीं मिली है। वे जैसे-तैसे अपने गांवों में लौटे ही थे कि ऑपरेशन ग्रीन हंट और उसके बाद के कई अभियानों का सामना करना पड़ा। 2024 से ऑपरेशन कगार के नाम से 400 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं (2024 में 287, 2025 में 113).[i] हालांकि मारे गए नागरिकों की सही संख्या अज्ञात है, लेकिन यह देखते हुए कि जिन लोगों को माओवादी बताया गया है, उनमें से कई की पहचान ग्रामीणों द्वारा नागरिकों के रूप में की गई है, यह स्पष्ट है कि नागरिक असमान रूप से प्रभावित हो रहे हैं।[ii] आर्टिकल 14 की रिपोर्ट के अनुसार 2018 से 2022 के बीच सुरक्षाकर्मियों (168) और माओवादियों (327) की तुलना में अधिक नागरिक (335) मारे गए हैं।[iii] 2024 में बच्चों के मारे जाने की कई घटनाएं हुईं। एसएटीपी ने 2025 के लिए 15 नागरिकों, 14 सुरक्षा बलों और 150 माओवादियों के मारे जाने का ब्यौरा दिया है।[iv] इन हत्याओं के लिए सुरक्षा बलों को 8.24 करोड़ रुपये का इनाम मिला है।[v]
एक आधिकारिक अनुमान के अनुसार, पिछले 25 वर्षों में 16,733 लोगों को गिरफ्तार किया गया तथा 10,884 लोगों ने आत्मसमर्पण किया।[vi] सरकार का दावा है कि मार्च 2026 तक माओवादियों का खात्मा हो जाएगा और अब केवल 400 सशस्त्र कैडर बचे हैं| [vii] बरामद हथियारों में से अधिकांश (मात्र 263 हथियार) देशी पिस्तौल, कच्ची 12 बोर बंदूकें या मज़ल लोडर हैं।[viii] अब ‘गंभीर रूप से प्रभावित’ जिलों की संख्या घटकर केवल छह रह गई है। ऐसे हालात में, माओवादी अब कोई ऐसा सुरक्षा खतरा नहीं हैं, जो मौजूदा सैन्यीकरण और आक्रामक अभियान को उचित ठहरा सके।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा SPOs को भंग करने और आत्मसमर्पण/गिरफ्तार किए गए माओवादियों को किसी भी रूप में काउंटर-इंसर्जेंसी अभियानों में शामिल न करने के निर्देशों का पालन करने के बजाय, सरकार ने जिला रिजर्व गार्ड (District Reserve Guards) और बस्तर फाइटर्स (Bastar Fighters) का उपयोग और बढ़ा दिया है, जिनमें अधिकांश पूर्व सलवा जुडूम के सदस्य शामिल हैं। यही लोग मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं, और स्वयं उनके अपने मानवाधिकारों का भी इस प्रक्रिया में उल्लंघन होता है। सलवा जुडूम के समय से अब तक शायद ही किसी आम नागरिक को उनके नुकसान के लिए मुआवज़ा मिला हो, और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद अब तक किसी के खिलाफ अभियोजन की कार्रवाई नहीं हुई है।
बस्तर में 160 से अधिक सुरक्षा बलों के कैंप स्थापित किए गए हैं|[ix] इनमें से अधिकांश सार्वजनिक भूमि पर हैं और कुछ मामलों में ग्रामीणों की निजी भूमि पर हैं, और आदिवासी निवासियों के लिए गंभीर संकट पैदा कर रहे हैं।[x] प्रति 9 नागरिकों पर लगभग एक सुरक्षाकर्मी है।[xi] स्कूलों, स्वास्थ्य सेवाओं, सार्वजनिक परिवहन और अन्य कल्याणकारी योजनाओं की गति सड़क निर्माण की गति के अनुरूप नहीं रही है। इसके बजाय, सरकार ने कई खनन कंपनियों के साथ समझौता ज्ञापन (MOU) पर हस्ताक्षर किए हैं, जिन्हें लेकर ग्रामीणों को आशंका है कि इससे बड़े पैमाने पर विस्थापन और पर्यावरणीय क्षरण होगा।खनन और अन्य प्रकार के विस्थापन के खिलाफ उनका संवैधानिक संघर्ष लगातार दबाया गया है – सामान्य स्थिति में भी और माओवाद से लड़ने के बहाने से भी।
जो ग्रामीण अपनी संवैधानिक अधिकार – जैसे कि पेसा और अन्य प्रावधानों के तहत परामर्श का अधिकार – की मांग को लेकर विभिन्न स्थानों पर शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे थे, उन्हें कड़े दमन का सामना करना पड़ा है। उनके धरना स्थलों को तोड़ दिया गया है और ग्रामीणों को पीटा गया है। ग्रामीणों के बीच भय फैलाने के लिए मोर्टार शेल और बमों का अंधाधुंध उपयोग किया गया है, जिससे वे सामान्य जीवन जीने में असमर्थ हो गए हैं। मूलवासी बचाओ मंच पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और इसके युवा नेताओं को गंभीर आरोपों जैसे यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया है। यह गिरफ्तारी इसलिए की गई क्योंकि उन्होंने सुरक्षा शिविरों और फर्जी मुठभेड़ों के खिलाफ विरोध किया, जबकि संविधान सभा और शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार प्रदान करता है। सरकार ने शांतिपूर्ण संवाद के सभी रास्ते बंद कर दिए हैं।
माओवादियों को राज्य बलों के खिलाफ हिंसा और आईईडी के प्रयोग को तुरंत बंद करना चाहिए, क्योंकि ये आम ग्रामीणों, बच्चों और मवेशियों के लिए भी खतरा बनते हैं। जन अदालतों में सुनाई जा रही ‘मृत्युदंड’ की सजाएं भी समाप्त की जानी चाहिए।
सशस्त्र संघर्ष और राज्य दमन की स्थिति में लोगों से जुड़े असली मुद्दे – जैसे कि खाद्य सुरक्षा, भूमि और वन अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य, सांस्कृतिक अधिकार और उनका बहुआयामी शोषण – गौण हो जाते हैं। जिन ज़मीनों पर खनन प्रस्तावित है, वहाँ के लोगों की सहमति आवश्यक है। इन सभी मुद्दों का समाधान तुरंत किया जाना चाहिए, जो केवल शांति और न्याय की स्थिति में ही संभव है।
हम शान्ति स्थापित करने के लिए हर पहल का स्वागत करते हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से जुड़े हम सभी चिंतित नागरिक एक बार फिर भारतीय संविधान के दायरे में शांति वार्ता की मांग करते हैं।
हम कुछ सरल लेकिन अत्यंत आवश्यक मांगें प्रस्तुत करते हैं, जिनके लिए सरकार को तुरंत प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए:
- सरकार को आदिवासी क्षेत्रों में जारी हमले को रोकना चाहिए ताकि युद्धविराम की स्थिति बन सके।
- भाकपा (माओवादी) को राज्य बलों के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा तुरंत बंद करनी चाहिए ताकि युद्धविराम संभव हो सके।
- सरकार और भाकपा (माओवादी) के बीच संवाद शुरू होना चाहिए।
- प्रभावित क्षेत्रों तक स्वतंत्र नागरिक संगठनों और मीडिया को निर्बाध पहुंच दी जानी चाहिए।
- लोगों की आजीविका की आवश्यकताओं और संवैधानिक अधिकारों को तुरंत संबोधित किया जाना चाहिए।
- राज्य को उन सभी आदिवासियों और कार्यकर्ताओं को तुरंत रिहा करना चाहिए जिन्हें अपने लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर आवाज उठाने और आदिवासियों के विरोधी राज्य नीतियों से असहमति जताने के कारण जेल में डाला गया है, ताकि वे वार्ता प्रक्रिया में बराबर के भागीदार के रूप में भाग ले सकें। (उदाहरणस्वरूप मूलवासी बचाओ मंच के कार्यकर्ता)।
हम दृढ़ता से मानते हैं कि शांति वार्ता और युद्धविराम बस्तर में लोकतांत्रिक अधिकारों की पुनःस्थापना की दिशा में केवल पहला कदम हैं। इसके बाद क्षेत्र का स्थायी रूप से अर्धसैनिक बलों से मुक्त किया जाना (जिसमें सभी सुरक्षा बल कैंप को हटाना शामिल है), सभी संबंधित बंदियों की रिहाई, मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए क्षतिपूर्ति, पेसा और वनाधिकार जैसे सुरक्षात्मक कानूनों का क्रियान्वयन, नई खदानों पर रोक, विरोध के अधिकार का सम्मान और स्वतंत्र एवं लोकतांत्रिक जीवन की अन्य शर्तों की दिशा में निरंतर प्रयास किया जाना चाहिए।
हम सभी लोकतांत्रिक और राजनीतिक ताकतों, जिनमें राजनीतिक दल भी शामिल हैं, से अपील करते हैं कि वे इस प्रक्रिया का समर्थन करें और राज्य को उसके संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने के लिए बाध्य करें।
Organisations
- All India Feminist Alliance (ALIFA) (Sagari, Nikita, Deepthi, Varsha, Priyanka, Pranjali)
- All India Inquilabi Youth and Students Alliance (ALIYSA) (Rahee, Heman, Raju, Shubham, Ritika, Laasya, Karthik)
- All India Krantikari Kisan Sabha (A.I.K.K.S) (Sankar Inquilab, State Secretary Odisha)
- All India Lawyers Association for Justice (Clifton D’ Rozario and Maitreyi Krishnan)
- Association for Protection of Civil Rights (Nadeem Khan)
- Association for Protection of Democratic Rights (Ranjit Sur)
- Bhagat Singh Chhatra Ekta Manch (Gurkirat)
- Campaign Against Fabricated Cases (CAFC), Odisha (Narendra Mohanty)
- Campaign for Peace and Justice in Chhattisgarh (CPJC) (Isha Khandelwal, Sharanya Nayak, Nandini Sundar)
- Coordination of Democratic Rights organisations) (CDRO)
- Civil Liberties Committee, Andhra Pradesh (V.Chitti Babu, Ch.Chandra Shekhar)
- Civil Liberties Committee, Telangana (Prof. Laxman Gaddam, N.Narayana Rao )
- Committee for the Release of Political Prisoners (CRPP) (Ravi Balla)
- Coordination Committee of Working Women, Rajasthan
- Democratic Front against Operation Green Hunt, Punjab (Parminder Singh, A. K. Maleri, Buta Singh Mehmoodpur and Yash Pal)
- Dr. Richhariya Foundation (Karthik)
- Ek Potlee Ret Ki (Kaani Nilam) (Radhika Ganesh)
- FAOW (Mukta Srivastava)
- Fatima Shaikh Study Circle (Osama)
- Forum Against Oppression of Women (Sandhya Gokhale)
- Forum Against Repression, Telangana (Prof.G. Haragopal, K.Ravi Chander)
- Ganatantrik Adhikar Surakhya Sangathan, (GASS), Odisha (Deba Ranjan and Dr. Golak Bihari Nath)
- Hasrat-e-Zindagi Mamuli (Chayanika Shah)
- Human Rights Forum (S Jeevan Kumar, VS Krishna)
- Indian Nationalists Movement
- INSAF (Vidya Dinker)
- Insani Biradari (Aadiyog, Imran Ahmad)
- Jaldhara Abhiyan (Upendra Shankar)
- Jharkhand Janadhikar Mahasabha (B B Choudhary, Elina Horo, Siraj Dutta, Tom Kavla)
- Justice News (Arun Khote)
- MAKAAM
- Manomitram (Renny Antony)
- Nagrik Adhikar Samiti, Jharkhand (Ashok Verma)
- Narmada Bachao Andolan (Medha Patkar, Kamla Yadav, Mahendra)
- National Alliance for Justice, Accountability and Rights (NAJAR) (Sr. Adv Gayatri Singh, Adv Indira Unninayar, Adv Purbayan, Adv Deeptangshu Car, Katyayani Chandola, Carina)
- National Alliance of People’s Movement (Arundhati Dhuru, Ashish Ranjan, Meera Sanghamitra)
- National Federation of Indian Women NFIW
- New Trade Union Initiative (Milind Ranade, Gautam Mody, Manas Das)
- Odisha Manarega Shramik Union (P Parvati)
- Pahal Sansthan
- People’s Watch (Henri Tiphagne)
- People’s Union for Civil Liberties (Kavita Srivastava,V Suresh)
- People’s Union for Democratic Rights (PUDR) (Harish Dhawan and Paramjeet Singh)
- Queer Collective India (Priyank Sukanand)
- Queer Poets Collective (Rumi Harish, Dadapeer Jyman, Sunil Mohan)
- Rajsamand Mahila Manch (Lalita Sharma)
- Revolutionary Youth Association (RYA) (Niraj Kumar)
- Saajhi Duniya (Roop Rekha Verma)
- Sajha Kadam (Praveer Peter)
- Samta
- Save Dwarka Forest People’s Movement (Tannuja Chauhan)
- Telangana Democratic Forum
- Trade Union Center of India (TUC) (Bichitra Patra)
- Young People For Politics (Nivedita Ravi)
Concerned citizens
- A. Banerjee
- A.Suneetha
- Aakar Patel
- Addanki Veeranjaneyulu
- Adv. Bhoomika Pandhare
- Ajay T G
- Akhileshwari Ramagoud, Hyderabad
- Alok Agnihotri Advocate
- Anand malviya
- Anju K Disability Activist
- Ankita Aggarwal
- Anto Joseph
- Anupriya S
- Anuradha Banerji, Activist-Researcher.
- Anuradha Talwar
- Apurba Roy
- Aratrika
- Arindam Roy
- Arun Vyas
- Aruna Nellutla
- Arvind Narraiin
- Ashalatha
- Ashima Roy Chowdhury
- Avani Chokshi
- B Muralidhar
- Balreddy jitta
- Bappadittya Sarkar
- Barnali Mukherjee
- Beena Choksi
- Bela Bhatia
- Bhanumathi Kalluri
- Bharat Majhi
- Biraj Mehta
- Biswapriya Kanungo, Advocate, Bhubaneswar
- Bittu Kondaiah
- C B choudhary
- C Mitra
- Carol Geeta
- Cedric Prakash
- Chanda Asani
- Chandu
- Chitra Joshi
- Deepa
- Dinesh Yadav
- Diviya
- Dr. Rosemary Dzuvichu
- Dr. Sudhir Vombatkere
- Dr. Walter Fernandes
- Dr.Sebastian Joseph Professor
- Fawaz Shaheen
- Frazer Mascarenhs
- George Monipalli
- Goutam Kumar Bose, Jharkhand Agitetore and Trade Union Activist.
- Gova Rathod
- Gurbir Singh
- Harsh Mander
- Hem Mishra
- Himanshu Kumar
- Isha Khandelwal
- Jean Drèze
- Joseph Xavier, Madurai
- Judah
- Judah Sharon
- K Sukumaran Advocate Gudalur The Nilgiris
- K. Manoharan, Writer & Human Rights activist, Tamil Nadu
- K. Praveen kumar
- K.Sajaya, Independent Journalist and Social Activist
- Kailash Mina
- Kamal Gopinath, President, PUCL Mysore
- Kamini Tankha
- Kanduri praveen Kumar
- Kavva Laxma Reddy
- Khalil ur Rehaman
- Krishnakant Chauhan
- Lalita Ramdas
- Latha K Biddappa
- Madhubanti
- Madhumitha Shankar
- Madhuri
- Manav Sivaram
- Manisha Banerjee
- Millind Champanekar
- Mohamed Miandad
- MV Ramana
- N Venugopal, Journalist
- Nancy Gaikwad
- Narla Ravi
- Natarajan D V
- Navsharan Singh
- Neetisha Khalkho
- Nikita Jain
- Nikita Naidu
- Nisha Biswas
- P M Tony
- P. Rohini Rajasekaran
- P.vishnuvardhanarao
- Padmini Baruah
- Paran Amitava
- Paromita Dutta
- Ponnala vijayanandareddy
- Prakash Louis
- Prakriti
- Pranjali Tripathi
- Prashant Rahi
- Prof Latha K Biddappa
- Prqgnya Joshi
- Radha Kumar
- Radhika, Assistant Professor (Law)
- Raghavender Reddy
- Rajani Rao Bangalore
- Rajaraman
- Rajesh Ramakrishnan
- Ramneek Singh, Playwright
- Ranjana Padhi
- Rati Rao E.
- Ravi Joshi
- Renny Antony (Kerala)
- Rohit Prajapati, Environment Activist
- Roohdar X
- Rukmini Rao
- Rupa Pannalal
- Salam Rajesh, Imphal, Manipur.
- Salim Saboowala
- Sanober Keshwar
- Sarfaraz
- Satyanarayana.s
- Shalini Gera
- Shalu Nigam
- Shreya Subramanian
- Shridevi PN
- Shubham Kothari
- Shubham Waydande
- Shujayathulla
- Solomon
- Srimant Mohanty, Odisha
- Sudhir kumar
- Sukanya Kanarally
- Syed Akmal Razvi
- T Nishaant
- Tariq Durrani
- Ulka Mahajan
- Ushasi Roy
- Vaishnavi
- Vani Subramanian
- Varsha
- Vijaya Vanamala
- Wandana Sonalkar
- Y Rajashekhar
- Y.J. Rajendra
[i] https://timesofindia.indiatimes.com/india/in-80-days-113-maoists-killed-by-forces-in-chhattisgarh/articleshow/119277633.cms
[ii] https://pucl.org/wp-content/uploads/2024/08/Pidiya-and-Bodga_final-eng.docx.pdf
[iii] https://www.article-14.com/post/in-bastar-war-lines-between-civilians-maoists-blur-as-amit-shah-sets-march-2026-deadline-to-end-insurgency-67abb2b8cf943
[iv] https://www.satp.org/datasheet-terrorist-attack/fatalities/india-maoistinsurgency
[v] https://www.indiatoday.in/india-today-insight/story/ground-zero-bastar-the-fight-to-finish-off-maoists-2648870-2024-12-12
[vi] https://indianexpress.com/article/long-reads/maoists-arrest-chhattisgarh-naxal-cpim-9837130/
[vii] https://timesofindia.indiatimes.com/city/raipur/only-400-armed-cadres-left-in-bastar-clock-ticks-on-maoist-elimination-police/articleshow/118658159.cms
[viii] https://www.indiatoday.in/india-today-insight/story/ground-zero-bastar-the-fight-to-finish-off-maoists-2648870-2024-12-12
[ix] https://www.indiatoday.in/india-today-insight/story/ground-zero-bastar-the-fight-to-finish-off-maoists-2648870-2024-12-12
[x] https://aippnet.org/wp-content/uploads/2024/08/Citizens-report-on-security-and-insecurity-bastar-chhattisgarh.pdf
[xi] Ibid.