प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रेषित एक अपील में देश के नामचीन और आम नागरिकों ने केंद्र सरकार से अपने संवैधानिक कर्तव्यों को पूरा करते हुए लाखों प्रवासी श्रमिकों को केंद्रीय बलों, सुविधाओं और संसाधनों का प्रयोग कर उन्हें उनके घर तक सुरक्षित और गरिमापूर्ण तरीक़े से पहुँचाने की माँग की है। इस अपील पर लगभग 4000 लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं जिनमें चिंतित आम नागरिकों के अलावा न्यायपालिका से जुड़े लोग, महत्त्वपूर्ण लोग, श्रमिक कार्यकर्ता, सिविल सोसायटी संगठनों से जुड़े लोग शामिल हैं। इस प्रेस नोट के साथ प्रधानमंत्री को भेजी गयी अपील की प्रति भी संलगन है जिसमें उन लोगों के नाम भी शामिल हैं जिन्होंने इस अपील पर हस्ताक्षर किए हैं। यह अपील 27 मई 2020 को दोपहर बाद 3.30 बजे तक ऑनलाइन लाइव था।
मार्च में लॉकडाउन की घोषणा के तत्काल बाद से ही देश में एक ऐसी अप्रत्याशित मानवीय त्रासदी की स्थिति पैदा हो गई है जो भारत के आधुनिक इतिहास में इससे पहले कभी पैदा नहीं हुई थी और जिसकी वजह से प्रवासी श्रमिकों का जीवन छिन्न-भिन्न हो गया है। लाखों प्रवासी श्रमिक अपने गाँव पहुँचने के प्रयास में देश के विभिन्न हिस्सों में बिना किसी भोजन, नक़द और आश्रय के अटके पड़े हैं। संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। राज्यों की सीमाओं पर उन्हें पुलिस के बर्बर अत्याचार का निशाना बनाया गया। लॉकडाउन के कारण सड़कों पर चलते चलते थक जाने, भूख, आत्महत्या, पुलिस की बर्बरता, बीमारी और रेल एवं सड़कों पर हुई दुर्घटनाओं के कारण कई प्रवासी श्रमिकों के मारे जाने की भी खबर है। विश्वस्त सूत्रों की मानें, तो देश भर में इन वजहों से 667 लोगों की मौत हुई है और इनमें से किसी की भी मौत कोविड-19 के कारण नहीं हुई है। इनमें से 205 प्रवासी श्रमिकों की मौत पैदल चलने से और 114 की मौत वित्तीय मुश्किलों और भुखमरी के कारण हुई है। इस बीच, सरकार ने श्रमिक ट्रेन चलाने का जो निर्णय लिया वह पर्याप्त नहीं है। कहा गया है कि 2000 से अधिक श्रमिक ट्रेनों से पिछले सप्ताह 30 लाख से अधिक प्रवासी श्रमिकों को उनके गंतव्य तक पहुँचाया गया। यह संख्या देश की कुल जनसंख्या का 30 % के आसपास होता है। फिर, इनमें वे लोग शामिल नहीं हीं जो सड़कों पर अभी भी चल रहे हैं और रास्ते में हैं या फिर राज्यों की सीमाओं पर अटके पड़े हैं या आश्रय स्थलों में हैं। हाल ही में एक आरटीआई से पता चला है कि अभी तक भारत सरकार यह अनुमान नहीं लगा पायी है कि प्रवासी श्रमिकों की संख्या क्या है।
अपील में प्रधानमंत्री से आग्रह किया गया है कि वे श्रमिकों के अंतर्राज्यीय प्रवासन और अंतर्राज्यीय क्वारंटाइन के बारे में अपने संवैधानिक ज़िम्मेदारियों का पालन करें क्योंकि यह विषय 81 के रूप में केंद्रीय सूची में आता है। अपील में केंद्रीय नेतृत्व से इस नाज़ुक मौक़े पर राज्यों से तालमेल कर प्रवासी श्रमिकों को उनके घर तक सुरक्षित और गरिमा के साथ पहुँचाने का आग्रह किया गया है और उनके लिए यात्रा से पूर्व और यात्रा के बाद के इंतज़ाम में भी मदद करने को कहा गया है। इतने बड़े पैमाने पर लोगों को सुरक्षित उनके गंतव्य तक पहुँचाना तभी संभव है जब केंद्र सरकार के पास उपलब्ध केंद्रीय बलों और संसाधनों को इस कार्य में तत्काल लागाया जाए। इस समय जो प्रयास किए जा रहे हैं वे नाकाफ़ी हैं और राजयों के भरोसे इन्हें छोड़ दिया गया है जिनके पास संसाधनों और सुविधाओं की भारी कमी है और वे इधर-उधर भटक रहे प्रवासी श्रमिकों को सुरक्षा, भोजन और पानी उपलब्ध नहीं करा सकते।
ये ऐसे ही कुछ कारण हैं जिनके आधार पर यह अपील की गई है :
प्रथम, यह ज़रूरी है कि सरकार इसके लिए उसी स्तर के संसाधनों का इस्तेमाल करे जो वह प्राकृतिक आपदाओं के समय करती है। कोविड-19 के संक्रमण के इस समय में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम को लागू किया गया है ताकि लॉकडाउन जैसे आपातकालीन क़दम उठाए जा सकें। इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि जिस तरह लोगों की जान और उनकी आजीविका, भुखमरी, बीमारी और नौकरी के छिन जाने का जिस तरह का ख़तरा पैदा हो गया है, यह एक राष्ट्रीय आपदा ही है। वर्ष 2018 में, गणेश कुमार और आईएमए के ब्रिगेडीयर रवि डिमरी ने एक महत्त्वपूर्ण आलेख प्रकाशित किए थे जिसमें उन्होंने कहा था कि क्यों इस तरह की स्थिति में केंद्रीय बलों को लगाने की ज़रूरत होती है और किस तरह विगत में ऐसा करने से कई बड़ी चुनौतियों से निपटने में मदद मिली।
इस मानवीय त्रासदी से निपटने में राष्ट्रीय आपदा राहत बाल के साथ-साथ भले ही सीमित समय कि लिए, अन्य केंद्रीय बलों की भी मदद ली जानी चाहिए ताकि राज्यों और केंद्रीय मशीनरी को सहयोग दिया जा सके।
दूसरा, इस समय प्रवासी श्रमिकों को वापस भेजने के लिए केंद्र और राज्यों के बीच और विभिन्न राज्यों के बीच समन्वय भ्रमों और कुप्रबंधों का भयंकर रूप से शिकार है। श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को लेकर कई आदेश और संशोधित दिशानिर्देश जारी हुए लेकिन कुल ट्रेनों की संख्या अभी भी अपर्याप्त है। पिछले तीन सप्ताह से विशेष श्रमिक ट्रेनों का परिचालन हो रहा है और अभी तक सिर्फ़ 30% प्रवासी श्रमिकों को ही उनके गंतव्य तक पहुँचाया जा सका है और वह भी बहुत ही बुरी हालत में। ट्रेनों की कमी और फिर उनसे जुड़ी जटिल प्रक्रियाओं ने प्रवासी श्रमिकों में हताशा का वातावरण पैदा कर दिया है जिसकी वजह से अनेक शहरों में स्टेशनों पर भारी भीड़ जमा हो रही है, अफ़वाहों का बाज़ार गर्म है और कालाबाज़ारी और हर तरह के घोटाले हो रहे हैं। ये प्रवासी मज़दूर जिनकी कमाई पर इनका परिवार चलता है, उन्हें अपने घर से टिकट के पैसे मंगाने पड़े हैं। इस तरह की रिपोर्ट भी है कि ट्रेन रद्द कर दिए गए, कई ट्रेनों का रूट बदल दिया गया और ट्रेनों को गंतव्यों तक पहुँचने में ज़रूरत से ज़्यादा समय लगा है और कई दिनों की इन यात्राओं में ट्रेनों में रेलवे के स्टाफ़ नहीं होते और इनमें यात्रियों के लिए न तो पानी होता है और न भोजन की कोई व्यवस्था। हाल में आए अम्फ़न तूफ़ान की वजह से स्थिति और बिगड़ी गई है जिसकी वजह से बंगाल और ओडिशा के लिए कई ट्रेनों को रद्द करना पड़ा और देश के विभिन्न हिस्सों में अटके इन राज्यों में जाने वाले प्रवासी श्रमिकों की अपने गंतव्य पर वापसी और अनिश्चित हो गई। अनुमान के अनुसार, सरकारों के प्रयासों के बावजूद लाखों प्रवासी श्रमिक अपने घरों के लिए पैदल ही चल पड़े हैं और इनमें से कम से कम 20% अभी भी विभिन्न स्थानों पर अटके पड़े हैं। क़रीब 40 से 60 लाख श्रमिकों को उत्तर प्रदेश जबकि 10 से 30 लाख श्रमिकों को बिहार वापस जाना है। कुप्रबंध के शिकार सिर्फ़ ट्रेन से ही इन लोगों को भेजने की बात सोचना पर्याप्त नहीं है।
तीसरा, सभी राज्यों के पास इतना संसाधन नहीं है कि वे इतने बड़े पैमाने पर प्रवासी श्रमिकों को उनके घर तक पहुँचा दे। उदाहरण के लिए, 119 ट्रेनों से एक दिन में 1,96,350 प्रवासी श्रमिक बिहार पहुँचे। बिहार कई बार यह कह चुका है कि उसके पास सभी लोगों को वापस बुलाने का संसाधन नहीं है। इस अपील के माध्यम से केंद्र सरकार से ऐसे राज्यों को वित्तीय मदद देने के लिए अपने सभी तरह के संसाधनों का प्रयोग करने की अपील की जा रही है ताकि वे इन श्रमिकों को उनके घर पहुँचा सकें और उसके बाद उनका पुनर्वास कर सकें। केंद्र सरकार के संसाधन और केंद्रीय बल इस स्थिति में राज्यों के लिए महत्त्वपूर्ण अतिरिक्त संसाधन साबित होंगे।
अपने घरों को लौटते प्रवासी श्रमिकों को भोजन, पानी और चिकित्सा सुविधा की ज़रूरत होती है पर यह सब उनको इस समय नहीं मिल रहा है। ऐसे समय में अगर केंद्रीय बलों की मदद ली जाती है तो इन सब मुश्किलों को दूर किया जा सकता है और प्रवासी श्रमिकों को हर तरह की मदद के साथ उनके घर तक सुरक्षित पहुँचाया जा सकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो उनकी मुश्किलें यथावत रहेंगी।
यह अपील इस बात को नज़रंदाज़ नहीं कर सकता कि केंद्र सरकार ने विदेशों में अटके पड़े भारतीय नागरिकों को वापस लाने में जिस तरह के समन्वय और जिस तरह की प्रक्रिया अपनाई है वैसा देशी प्रवासी श्रमिकों को लाने में नहीं दिखा पाई है। उनके मामले में प्रक्रिया एकदम अचूक थी। फिर, विदेशों में अटके भारतीय नागरिकों को देश में वापस लाने के लिए केंद्रीय बलों के संसाधनों का सक्षमता से प्रयोग किया गया और उनको चिकित्सा सुविधा और क्वारंटाइन की सुविधा सब कुछ बेहतर थी।
अंततः, श्रमिकों को घर पहुँचाने के लिए सिर्फ़ परिवहन की व्यवस्था से आगे और बहुत कुछ करने की ज़रूरत है जिसमें प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा सर्वोपरि है जो बिना किसी नौकरी या बचत जैसे संसाधन के अपने घर पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें तत्काल कुछ महीनों तक पैसे देने की ज़रूरत है और उनके लिए रोज़गार और पुनर्वास की तत्काल व्यवस्था अत्यधिक ज़रूरी है।
यह ध्यान रखने की ज़रूरत है कि पूर्व नौसेना अध्यक्ष एडमिरल रामदास, एडमिरल अरुण प्रकाश और ईएएस सरमा, पूर्व वित्त सचिव ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर और मीडिया में अपने आलेखों में इसी तरह सुझाव दिए हैं।
इस अपील के साथ देश भर में श्रमिकों को ले जाने में होनेवाली देरी, उनकी मौत, दंगे, घोटाले और उनको होनेवाली अन्य कठिनाइयों पर देश भर में छपी खबरें और रिपोर्ट भी इस अपील के साथ संलगन हैं।
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा पर स्वतः संज्ञान लिया है और केंद्र और राज्य सरकारों को इन्हें दी जाने वाली मदद का ब्योरा देने को कहा है। यह एक ऐसा मौक़ा है जब तुरंत कार्रवाई की ज़रूरत है और केंद्रीय बलों की सेवाएँ तत्काल लेने की ज़रूरत है ताकि बर्बादी की कगार पर खड़े लाखों प्रवासी श्रमिकों की जान बचाई जा सके।
आजीविका ब्यूरो वर्किंग पीपल्ज़ चार्टर
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