सुदामा प्रसाद: एक ऐसा उम्मीदवार जिसे जनस्वास्थ्य, पर्यावरण व पुस्तकालयों की भी चिंता है


बिहार में आरा लोकसभा क्षेत्र से ‘इंडिया’ के प्रत्याशी सुदामा प्रसाद भाकपा (माले) की तरफ से उम्मीदवार हैं। उनका सामना केंद्रीय मंत्री और पूर्व नौकरशाह राज कुमार सिंह से है। सुदामा प्रसाद से मेरी मुलाकात पर्यावरण से जुड़े जनसंघर्षों में होती रही है।

भोजपुर के गिद्धा और बिहिया में स्थित कैंसरकारक एस्बेस्टस कारखानों से होने वाली ज़हरीले गैस, धूल और कचरे से ग्रामीणों और मजदूरों की तकलीफ को अन्य किसी दल के नेता ने कोई तवज्जो नहीं दी, लेकिन मुद्दे की गंभीरता को समझते हुए सुदामा प्रसाद और उनकी पार्टी ने तत्परता से अपने सभी साथियों को मेरा साथ देने के लिए कहा और कारखाने का दौरा कर के लोगों का कष्ट समझा।

फिर उनकी पार्टी ने बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पत्र लिखकर कहा कि वैशाली और मुजफ्फरपुर के लोगों के शरीर का जीव विज्ञान भोजपुर के लोगों के जीव विज्ञान से अलग नहीं है। उनकी पार्टी ने लिखा था कि अब जबकि बोर्ड ने यह तय कर दिया है कि एस्बेस्टस कारखाने को स्थापित कर के लोगों की जान को जोखिम में नहीं डाला जा सकता, तो बिहिया, आरा के लोगों को खतरे में डालना उचित नहीं है।


जल संकट: खेत सूख रहे हैं और लोग आर्सेनिक का पानी पी रहे हैं!


राज्य सरकार के इस दोहरे मापदंड को सुदामा प्रसाद ने समझा। तमिलनाडु की निजी कंपनी के गिद्धा स्थित कारखाने को बंद करवाने के संघर्ष के साझा प्रयासों में वे हमेशा शरीक रहे हैं। सुदामा  प्रसाद और उनकी पार्टी ने इससे होने वाले लाइलाज रोगों को रोकने के लिए जनसंघर्ष का साथ दिया था। उन्हें पता था कि एस्बेस्टस नामक खनिज के प्रयोग पर 70 देशों में पाबंदी है। उन्होंने संघर्ष का साथ जनसरोकार को सर्वोपरि मानकर दिया, किसी संकीर्ण सियासी नफा-नुकसान के नजरिये से नहीं।

बिहिया स्थित कारखाने के एक मजदूर की मौत हो गई तो उनकी पार्टी शाहपुर क्षेत्र में स्थित उनके परिवार से मिलने पहुंच गई। मजदूर की बेटी ने राज्य मानवाधिकार आयोग में इस संबंध में एक याचिका दी थी। कंपनी ने मजदूर के परिवार को मात्र 5000 रुपये का मुआवजा दिया था।

इस कंपनी को एक कारखाने चलाने की अनुमति है, मगर आरोप है कि यहां दो कारखाने नियम-कानून को ताक पर रखकर चलाए जा रहे हैं।

भोजपुर के ही कोइलवर-बबुरा-छपरा रोड क्षेत्र में सोन महानद के पास एक ऐसे कारखाने का प्रस्ताव आया जिसके तहत बिहार के 18 जिलों का औद्योगिक कचरा और 150 अस्पतालों का कचरा जलाया और दफनाया जाना था। बड़हरा संसदीय क्षेत्र अंतर्गत बिहार के सभी अस्पतालों और 99 कारखानों के कचरे को सोन महानद के पेट में दफ़नाने और जलाकर बिजली बनाने के प्रस्तावित कारखाने का असर 10 किलोमीटर क्षेत्र के वर्तमान और भविष्य की पीढ़ी के सेहत पर दिखाई पड़ता। पूरा इलाका रोगग्रस्त हो जाता।

इस संबंध में जब पर्यावरण बचाओ, जीवन बचाओ जनसंघर्ष समिति ने आंदोलन किया तो माले पार्टी ने साथ दिया। कारखाने को लेकर अम्बिकाशरण सिंह विद्यालय में जो सरकारी जनसुनवाई हुई उसमें पार्टी शरीक हुई और जनस्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाली सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। सरकार ने लिखित तौर पर अपना प्रस्ताव वापस ले लिया।

दिलचस्प बात यह भी है कि कुछ साल पहले एक रात जब किसी ने आरा-पटना रोड पर गिद्धा के विश्वकर्मा मंदिर को ध्वस्त कर दिया तो पार्टी ने तत्कालीन स्थानीय सरपंच और मजदूर यूनियन के लोगों के साथ मिलकर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। आडंबररहित इस मंदिर का प्रांगण सराय का काम करता था। पाकड़ के पेड़ के नीचे स्थित इस मंदिर के चबूतरे पर मजदूर और मुसाफिर फुरसत के लम्हों में बैठते हैं।


जन आंदोलन के कारण परियोजना रद्द होने की नजीर इस देश में बहुत लंबी है


सुदामा प्रसाद को इंडिया गठबंधन के सभी वाम दलों और राष्ट्रीय जनता दल सहित महागठबंधन का भरपूर समर्थन प्राप्त है। आरा-भोजपुर में उनका सामना पूर्व नौकरशाह और केंद्रीय मंत्री आरके सिंह से है। आरके सिंह ने अपने केंद्रीय गृह सचिव के कार्यकाल में देश के आधे से अधिक मतदाताओं के मतदाता पहचान पत्र संख्या को आधार संख्या नामक काली परियोजना से जोड़ दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने भी आधार कानून को आंशिक तौर पर असंवैधानिक पाया है। ऐसे में सुदामा प्रसाद की पार्टी ही एकमात्र पार्टी है जिसने अपने घोषणापत्र में आधार परियोजना को पूरी तरह से निरस्त करने की बात लिखी है।

विधायक सुदामा प्रसाद ने वर्तमान सांसद राजकुमार सिंह की गलतियों की फेहरिस्‍त सामने रख दी है। सांसद राजकुमार सिंह ने अपने गृह क्षेत्र सुपौल में पनबिजली परियोजना और सौर ऊर्जा परियोजना स्थापित करने की पहल की, मगर अपने संसदीय क्षेत्र आरा में उन्‍होंने जहरीले कचरे आधारित ऊर्जा परियोजना के नाम पर बड़हरा क्षेत्र को बिहार के कचरे की राजधानी बनाने की पहल की। इस जनस्वास्थ्य विरोधी व पर्यावरण विरोधी परियोजना का साथ देकर उन्होंने आरा संसदीय क्षेत्र की जनता के हितों की अनदेखी की है।   



उनके अधूरे वादे, जो पिछले 10 साल में पूरे नहीं हुए, जनता के बीच सुदामा प्रसाद लेकर गए। प्रसाद ने पूछा है कि क्या केंद्रीय मंत्री सह सांसद राजकुमार सिंह बताएंगे कि ये काम क्यों नहीं हुए:

1. आरा शहर के धरहरा से चंदवा तक बांध का पक्कीकरण कर रिंग रोड का निर्माण।

2. भोजपुर के किसानों के लिए आरा रजवाहा बड़ी नहर का पक्कीकरण।

3. आरा शहर में बिजली के पोल हटा शहर के लोगों को अंडरग्राउंड केबल से बिजली की आपूर्ति।

4. आरा स्टेशन से बड़ी मठिया, गोपाली चौक होते गांगी पुल तक बड़ा नाला का पुनर्निर्माण।

5. सांसद के गोद लिए भोजपुर के गुंडी गांव के विकास का वादा।

6. 25 हजार करोड़ का पनबिजली और सोलर प्लांट भोजपुर के बजाय सुपौल को क्यों।

7. आरा रेलवे स्टेशन से गोपाली चौक होते धरहरा तक सड़क के बीच डिवाइडर बनाने का क्या हुआ वादा।

8. आरा शहर को जाम से नहीं मिली मुक्ति, जाम से कराह रहे लोग।

9. धोबीघाट और जीरोमाइल के पास रोजाना लगने वाले जाम से लोगों को राहत नहीं।

10. भोजपुर के गांवों में नाली-गली निर्माण का वादा पूरा नहीं।

11. शहर की सड़कों के बीच बिजली के पोल होने से हो रही दुर्घटना से राहत नहीं।

12. सोन नहर के आधुनिकीकरण का कार्य क्यों नहीं हुआ शुरू।

13. भोजपुरवासियों को बिजली कटौती की समस्या से राहत नहीं।

14. भोजपुर के किसानों के खेतों की पटवन के लिए खेतों तक नहीं पहुंचा बिजली।

15. आरा के धनुपरा में स्टेडियम और स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स निर्माण का वादा क्यों नहीं हुआ पूरा।

16. क्या आरा सांसद बताएंगे कि वे लसाढी के शहीदों के सम्मान में आयोजित राजकीय समारोह में क्यों नहीं हुए शामिल।

17. आरा शहर व जिले के विकास के लिए होने वाले नगर निगम और जिला परिषद की बैठक में आमंत्रण और सूचना के बाद भी क्यों नहीं हुए शामिल।

18. भोजपुर दिवस, बिहार दिवस में कभी शामिल क्यों नहीं हुए।

19. कोरोना काल में गायब रहे।

20. दुकानदारों को मदद नहीं की।

पचास के दशक में बिहार राज्य में 540 सार्वजनिक पुस्तकालय थे, लेकिन आज केवल 51 पुस्तकालय ही बचे हैं। इसी तरह, 1970 तक राज्य में 4000 से अधिक ग्राम स्तरीय पुस्तकालय थे, लेकिन अब उनकी संख्या घटकर 1004 रह गई है। 2012 में राज्य सरकार ने पुस्तकालयों को पुस्तकें खरीदने के लिए 1 करोड़ रुपए दिए थे, जिसके बाद से पुस्तकालयों को कोई अनुदान नहीं मिला है। इस बीच, ग्रामीण पुस्तकालयों की स्थिति काफी दयनीय है। उनमें बुनियादी पठन-पाठन सामग्री, आवश्यक बुनियादी ढांचे और पेशेवर तथा योग्य पुस्तकालयाध्यक्षों की कमी है। वास्तव में, उनके पास समाचार-पत्र खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं। योजना आयोग के निर्देशों के अनुसार, प्रति 1000 व्यक्तियों पर एक पुस्तकालय होना चाहिए। केरल राज्य (साक्षरता दर 95%) अपने बजट का 3% पुस्तकालयों पर खर्च करता है, जबकि हमारे राज्य में यह व्यय 0.01% है। इसलिए, हम इस प्रस्ताव के माध्यम से सरकार का ध्यान बिहार के शिक्षा बजट का 3% पुस्तकालयों के लिए आवंटित करने, 51 मौजूदा पुस्तकालयों के पुनरोद्धार, जिला और ब्लॉक स्तर पर नए पुस्तकालय खोलने और पुस्तकालयाध्यक्षों, सूचीकारों और पुस्तकालय प्रचारकों की नियुक्ति करने की ओर आकर्षित करते हैं।

जनता के मुद्दों को लेकर किसानों, मज़दूरों, विद्यार्थियों और शिक्षकों के साथ बिहार के आरा से लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर तक लड़ने वाली पार्टी के नुमाइंदे को अपना नुमाइंदा बनाना आरा के प्रबुद्ध मतदाताओं के हाथ में है। तीन तारों वाले चुनाव चिह्न में संघर्षों की लालिमा है, सतरंगी इंडिया गठबंधन से जुड़ा यह रंग जनता जनार्दन को पसंद है या नहीं ये 4 जून को ही पता चलेगा।


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