सहजीविता का इतिहास और इतिहास की ऐतिहासिकता: नदी पुत्र की एक सुदीर्घ समीक्षा

अच्छी किताब की एक विशेषता यह है कि वह आप के मस्तिष्क में विचारों की नयी तरंग पैदा कर देती है, आपको नया कुछ सोचने-विचारने को प्रेरित करती है। इस शोध-प्रक्रिया में लेखक ख़ुद निषादों के जीवन में झांकते-झांकते ‘एन्थ्रोपोसीन’ की वैचारिकी में जा पहुँचे, और इस तरह उन्हें अपने आगामी शोध का आधार मिल गया।

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पंचतत्व: ये बनारस में गंगा पर जमी काई है या नदियों के प्रति हमारी सामाजिक चेतना का अक्स?

आपको याद होगा जब पिछले साल इन दिनों देशव्यापी लॉकडाउन चल रहा था तब महामारी की पहली लहर के दौरान गंगा का पानी साफ हो गया था। कम प्रदूषण को वजह बताते हुए लोगों ने तब बालिश्त भर लंबे पोस्ट लिखे थे। हरी गंगा पर लोग कम लिख रहे हैं।

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पंचतत्व: एक संकल्प उन मरते नदी-पोखरों के लिए भी, जिसमें खड़े होकर हमने सूर्य को अर्घ्य दिया!

अगस्त में आपने बिहार, असम और केरल जैसे राज्यों में भयानक बाढ़ की खबरें पढ़ी होंगी, ऐसे में अगर मैं यह लिखूं कि देश की बारहमासी नदियां अब मौसमी नदियों में बदल रही हैं और उनमें पानी कम हो रहा है तो क्या यह भाषायी विरोधाभास होगा? पर समस्या की जड़ कहीं और है।

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पंचतत्वः पुरुष नद, स्त्री नदियां और इनकी गोद में छुपा हमारा लोक-इतिहास

नदियों के नाम के साथ जुड़े किस्से बहुत दिलचस्प हैं. हर नाम के पीछे एक कहानी है और एक ही नाम की नदियां देश के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद हैं.

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