बहुजन राजनीति के बेगमपुरा मॉडल की तलाश

बाबा साहेब द्वारा 1942 में स्थापित आल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन के उद्देश्य और एजंडा को देखा जाय तो पाया जाता है कि डॉ. आंबेडकर ने इसे सत्ताधारी कांग्रेस और सोशलिस्ट पार्टियों के बीच संतुलन बनाने के लिए तीसरी पार्टी के रूप में स्थापित करने की बात कही थी। इसकी सदस्यता केवल दलित वर्गों तक सीमित थी क्योंकि उस समय दलित वर्ग के हितों को प्रोजेक्ट करने के लिए ऐसा करना जरूरी था।

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छान घोंट के: बहुजन नायक कांशीराम का दलित आंदोलन अभी जिंदा है!

जब कांशीराम को समझ आया कि दलित आंदोलन बिना राजनीतिक जमीन के नहीं पनप सकता, तो उन्होंने 14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की। कांशीराम ने पाली भाषा के शब्द ‘बहुजन’ का इस्तेमाल कर सभी अल्पसंख्यकों को अपने साथ एक बैनर तले लाने की कोशिश की।

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हर्फ़-ओ-हिकायत: दलित चिंतकों का सवर्णवादी आदर्श बनाम कांशीराम की राजनीतिक विरासत

कांशीराम ने 1978 में ये भांप लिया था कि पहले से ही दमित समाज को संघर्ष की नहीं सत्ता की जरूरत है और सत्ता से ही सामाजिक परिवर्तन होगा। यही भाव कांशीराम से मायावती में अक्षरश: स्थानांतरित हुआ। इतिहास इसका गवाह है।

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