दिल्ली दंगे के अभियुक्तों के वकील महमूद प्राचा के दफ्तर पर दिल्ली पुलिस द्वारा छापेमारी के खिलाफ दिल्ली बार काउंसिल ने गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखा है. वहीं सुप्रीमकोर्ट बार एसोसिएशन और दिल्ली हाईकोर्ट विमेन लॉयर्स फोरम ने भी “जांच एजेंसियों द्वारा वकीलों को निशाना बनाने” की निंदा की है.
गृहमंत्री को लिखे एक पत्र में वकीलों ने कहा है कि-
दिल्ली पुलिस और बार एसोसिएशन तथा बार काउंसिल के बीच आपसी सहमति है कि वकीलों के खिलाफ किसी भी मामले में पुलिस पहले बार एसोसिएशन तथा बार काउंसिल के प्रतिनिधियों को सूचित करेगी और उन्हें विश्वास में लेगी.
दिल्ली बार काउंसिल के उपाध्यक्ष हिमल अख्तर और उसके सदस्यों के. सी. मित्तल तथा राजीव खोसला ने पत्र लिखा है.
एडवोकेट महमूद प्राचा के दफ्तर पर पुलिस की छापेमारी पर सुप्रीमकोर्ट बार एसोसिएशन ने भी गुस्सा जाहिर करते हुए इस कार्रवाई की निंदा की है.
सुप्रीमकोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने एक बयान जारी कर एडवोकेट प्राचा के दफ्तर से गोपनीय जानकारियां जब्त करने की कार्रवाई को दुर्भावनापूर्ण कहा है.
बयान में कहा गया है कि
ऐसा कृत्य एक वकील को बिना भय या पक्षपात के पेशे के अभ्यास से रोकता है. उल्लेखनीय है कि प्राचा दिल्ली दंगों की साजिश के मामलों में कई आरोपियों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. ‘पुलिस द्वारा एक वकील के दफ्तर की तलाशी और जब्ती दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई है, यह एक वकील के, बिना भय या पक्षपात के पेशे का अभ्यास करने के अधिकार को विफल करती है. यह आक्रामक कार्रवाई है और पुलिस की धमकियों के आगे एक वकील को झुकने के लिए मजबूर कर, कानून की नियत प्रक्रिया का दुरुपयोग करती है. ऐसे तरीके कानून में कभी नहीं सुने गए. इस तरह की तलाशी, जब्ती कानून के विशिष्ट प्रावधानों के खिलाफ है, जो वकील और मुवक्किल के रिश्ते और पत्राचारों की सुरक्षा करते हैं.
गौरतलब है कि, महमूद प्राचा सुप्रीमकोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्य भी हैं. बार एसोसिएशन ने अपने बयान में कहा है कि-
पुलिस द्वारा एक वकील के अधिकारों का अतिक्रमण अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत अभियुक्तों के निष्पक्ष मुकदमे के अधिकारों का उल्लंघन है,उन पुलिस अधिकारियों द्वारा ली गई तलाशी में, गोपनीय जानकारी की जब्ती, जिन्होंने वकीलों के मुवक्किलों पर अभियोग लगाया है, जबकि उक्त जानकारियों वकील-मुवक्किल विशेषाधिकार के जरिए संरक्षित हैं, मुवक्किल के अधिकारों को प्रभावित करता है. यह गैरकानूनी है और एक मुवक्किल और उसके वकीलों के अधिकारों का उल्लंघन करता है.
गौरतलब है कि 24 दिसंबर को दिल्ली पुलिस ने एडवोकेट प्राचा के दफ्तर पर छापा मारा था, जिसमें उनकी लॉ फर्म के आधिकारिक ईमेल पते के दस्तावेजों और आउटबॉक्स की मेटाडेटा की जांच की गई थी.
एडवोकेट प्राचा ने लैपटॉप की जब्ती पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि इसमें उन्हें वकीलों द्वारा सौंपी गई गोपनीय जानकारियां हैं और इससे अटॉर्नी-क्लाइंट विशेषाधिकार का हनन होगा. बाद में उन्होंने जब्ती के खिलाफ दिल्ली की एक कोर्ट में आवेदन दायर किया, जिसकी सुनवाई में कोर्ट ने जांच अधिकारी और तलाशी के पूरे वीडियो फुटेज को पेश करने निर्देश दिया था.
रविवार को पटियाला हाउस कोर्ट के एक मजिस्ट्रेट ने निर्देश दिया कि दिल्ली पुलिस द्वारा एडवोकेट महमूद प्राचा के दफ्तर में ली गई तलाशी की पूरी वीडियो फुटेज अदालत की मुहर के साथ सुरक्षित रखी जाए.
‘लाइव लॉ’ से इनपुट के साथ