महामारी में इम्तिहान युवाओं की ज़िंदगी से खेलने के बराबर है


वर्ल्‍डोमीटर के हवाले से 26 अगस्त तक भारत में कोरोना के कुल मामले 32 लाख के पार जा चुके थे। अगस्त के महीने में रोज़ाना तकरीबन 60 हज़ार से ज्यादा कोरोना के नये मामले सामने आये हैं। अब तक 60 हज़ार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं और देश के करीब 19 राज्य बाढ़ की चपेट  में भी हैं। ऐसे में राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (NTA) की नीट परीक्षा करवाने का फैसला छात्रों के बीच हताशा और गुस्से का कारण बनता जा रहा है।

मार्च से लगे लॉकडाउन के बाद अब तक ज़िन्दगी पटरी पर नहीं आ पायी है। अब तक न तो कोरोना पर काबू पाया जा सका है और न ही बिना किसी तैयारी के लगाये गये लॉकडाउन और उस दौरान घोर लापरवाही से पनपे आम जनजीवन की कठिनाइयों पर। हम सब ने हज़ारों किलोमीटर तक पैदल अपने घर जाते मजदूरों के वो भयानक दृश्य देखे, जिसमें न जाने कितने मज़दूरों और उनके परिजनों ने अपनी ज़िंदगी गंवायी।

हाल ही में NTA द्वारा नीट परीक्षा अयोजित करवाने की पुष्टि की गयी। आज 32 लाख से भी अधिक कोरोना के मामले और 19 राज्यों में बाढ़ के बावजूद लिया गया यह फैसला छात्रों को बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा है।

अब भी देश में आवागमन पर पूरी तरह से छूट नहीं मिली है, यातायात के तमाम साधन अब भी बंद पड़े हैं। लॉकडाउन के कारण बंद पड़े शिक्षण संस्थानों और खोखली ऑनलाइन एजुकेशन की नीति के कारण विद्यार्थी पूरी तरह से परीक्षा को लेकर आश्वस्त दिखायी नहीं दे रहे हैं।

जिन इलाकों में बाढ़ का पानी घुसा हुआ है, क्या उन इलाकों के छात्र/छात्राएं परीक्षा दे पाएंगे? क्या वे पिछले कुछ महीनों से परीक्षा की तैयारी कर पा रहे होंगे? राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी और मानव संसाधन विकास मंत्रालय को चाहिए कि वह परीक्षा को महज एक मशीनी क्रिया न समझ कर इसे छात्रों के  भविष्य से जोड़ कर, उनके जीवन से जोड़ कर देखे। 

नीट की परीक्षा के दौरान एक ही दिन काफी सारे छात्र परीक्षा देने निकलते हैं। क्या ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो पाएगा? अब तक के घटनाक्रम को देखते हुए यही लगता है कि बिल्कुल नहीं हो पाएगा। इतनी सुरक्षा और तमाम सुविधाओं के बावजूद जब देश के गृहमंत्री को कोरोना हो सकता है, तो आम छात्र भला पहले से अपने हाथ खड़े कर चुकी इस स्वास्थ्य व्यवस्था के भरोसे कैसे बैठे रहें?

क्या गारंटी है कि यह संक्रमण और बड़े स्तर तक नहीं पंहुचेगा? महामारी और बाढ़ के बीच में लिए गये इस हैरान कर देने वाले फैसले के खिलाफ अब कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने परीक्षा को टालने का प्रस्ताव रखा है।

ऑनलाइन एजुकेशन की असफलता से छात्र पहले ही परेशान हैं। अब तक जारी हुए कुछ सर्वे की रिपोर्ट्स के मुताबिक ऐसे छात्रों की संख्या बहुत ज्यादा है जो ऑनलाइन एजुकेशन प्राप्त करने में असमर्थ हैं। अगर पिछड़े राज्यों, जैसे बिहार, झारखंड, ओडिशा आदि की बात करें तो वहां आज तक दूर-दराज के इलाकों में मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव है। क्या उन इलाकों के छात्र/छात्राएं, जो बहुत मुश्किल से स्कूल और कॉलेज तक का सफर तय करते हैं, महामारी के इस दौर में परीक्षा देने का खतरा उठाना चाहेंगे? 

ये वो तमाम ज्वलंत सवाल हैं जिनके बारे में मानव संसाधन विकास मंत्रालय और राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी को सोच-समझ कर फैसला लेना चाहिए। जिन छात्र-छात्राओं को यह परीक्षा देने को मजबूर किया जा रहा है, इस लॉकडाउन ने उनसे उनके परिवार वालों की नौकरियां छीन ली हैं। पहले से ही सिकुड़ती अर्थव्यवस्था और बन्द पड़े बाज़ारों ने उनका व्यवसाय छीन लिया है। अभी उनके सामने रोज़मर्रा की एक बहुत बड़ी चुनौती पहले से खड़ी है, क्या उस हालात में परीक्षा जरूरी है? 

परीक्षा की वकालत कर रहे एक न्यूज़ चैनल ने ट्विटर पर एक पोल कराया जिसमें पूछा गया कि कितने प्रतिशत लोग ऐसा चाहते हैं कि ये परीक्षा अभी करायी जाए? तकरीबन 93 फीसद लोगों ने इसे नकारते हुए कहा कि परीक्षा नहीं होनी चाहिए, मात्र 6-7 फीसद लोगों ने इसके पक्ष में वोटिंग की। बावजूद इसके शिक्षा मंत्री निशंक जेईई-नीट और अन्य परीक्षाओं को फिलहाल के लिए रद्द कर देने की मांग पर मज़ाक उड़ाते फिर रहे हैं।

इससे ये साफ दिखायी देता है कि लोगों की जीवन सुरक्षा को लेकर यह सरकार बिल्कुल भी तत्पर और संवेदनशील रुख नहीं अपना रही है।


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