कोरोना संक्रमण का आर्थिक पहलू


कोरोना वायरस रोग (COVID-19) से दुनिया भर में लगभग अठारह लाख से भी ज्यादा लोगों के संक्रमित होने और एक लाख पन्द्रह हजार से ज्यादा लोगों की मौत के बाद अब विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की भी सांस फूल रही है।

यह संक्रमण अब न केवल वैश्विक महामारी का रूप ले चुका है बल्कि यह और तेज़ी से बढ़ रहा है और लाखों नये लोग इसकी चपेट में आते जा रहे हैं। अब तक 212 से भी ज्यादा देशों में फैले कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर भारत में चिता इसलिए अधिक है कि भारत में आबादी घनत्व (455 व्यक्ति प्रति किलोमीटर), चीन के मुकाबले 3 गुणा और अमरीका के मुकाबले (36 व्यक्ति प्रति किलोमीटर) 13 गुणा है। इस वायरस से पीड़ित व्यक्ति महज कुछ फीट की दूरी पर खड़े 2 से 3 व्यक्ति को प्रभावित करता है। इसके अलावा भारत में लोग आदतन भी ऐसी संक्रामक बीमारियों में एहतियात नहीं बरतते। यह तो कोरोना वायरस संक्रमण से जुड़ा इंसानी जिन्दगी और उसके सेहत की बात है लेकिन इसका एक दूसरा पहलू है कि इस वायरस ने दुनिया भर के बाजारों की पल्स रेट को काफी नीचे ला दिया है। अर्थशास्त्रियों के अनुमान के अनुसार भारत से लेकर अमरीका तक के शेयर बाजारों में ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई है।

अन्तरराष्ट्रीय पत्रिका ‘‘द इकोनोमिस्ट’’ के ताजा आंकड़ों में कई अन्तरराष्ट्रीय स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने दावा किया है कि कोरोना वायरस संक्रमण को काबू करने के रास्ते लगभग बन्द हो चुके हैं। चीन से फैले इस खतरनाक वायरस के संक्रमण को ‘सख्ती’ से रोकना चीन में तो सम्भव हो गया लेकिन भारत सहित अन्य देशों में मुश्किल यह है कि यहां अफवाहों में जीने वाले लोगों/समूहों की भरमार है और उनमें सही-गलत को पहचानने की क्षमता भी कम है मसलन, कोरोना वायरस संक्रमण के फैलने को काबू करना आसान नहीं है, हालांकि स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि इस वायरस में मृत्यु दर (0.6 प्रतिशत) व अन्य वायरस में मृत्युदर से कम है इसलिये संक्रमण के बाद लोगों के जीवित रहने की सम्भावना तुलनात्मक रूप से ज्यादा है। उल्लेखनीय है कि स्वाइन फ्लू (0.02 प्रतिशत), इबोला (40.40 प्रतिशत), मर्स (34.4 प्रतिशत) तथा सार्स (9.6 प्रतिशत) की मृत्यु दर से कोरोना वायरस की मृत्युदर काफी कम है।

कोरोना वायरस संक्रमण (COVID-19) को दुनिया भर में आर्थिक विकास का सबसे बड़ा रोड़ा माना जा रहा है। ‘आक्सफोर्ड इकोनोमिक्स’ ने आशंका जतायी है कि कोरोना वायरस संक्रमण वैश्विक महामारी का रूप ले चुका है और यह वैश्विक विकास दर का 1.3 प्रतिशत कम कर सकती है लेकिन अपने देश के कई गंभीर अर्थशास्त्री मान रहे हैं कि भारत में कोरोनावायरस संक्रमण की वजह से देश की आर्थिक विकास दर नकारात्मक रहेगी। ‘‘डन एण्ड ब्रैडस्ट्रीट’’ ने भी अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि चीन से शुरू कोरोना वायरस के संक्रमण का असर जून महीने तक बने रहने की संभावना है और इसकी वजह से वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर एक फीसद नीचे आ सकती है। रिपोर्ट के अनुसार इस वायरस का असर चीन की अर्थव्यवस्था के ऊपर तो नकारात्मक प्रभाव डाल ही रहा है। चीन में स्थित दुनिया की 2.2 करोड़ कम्पनियां 50 से 70 प्रतिशत के घाटे में हैं। चीन में कोरोना के घातक असर का भारत की अर्थव्यवस्था पर गम्भीर परिणाम के संकेत हैं, हालांकि भारत सरकार दावे कर रही है कि इसका उसकी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर नहीं होगा।

चीन के कोरोना वायरस संक्रमण के भारत के दवा बाजार पर गम्भीर असर की आशंका यहां की फार्मा कम्पनियों के सीईओ को सताने लगी है। वर्ष 2018-19 में भारत का एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रीडिएन्ट्स (एपीआई) और बल्क ड्रग भारत आयात 25,552 करोड़ रुपये था जिसमें चीन का हिस्सा 68 प्रतिशत था। विगत तीन वर्षों में फार्मा सेक्टर में भारत की चीन पर निर्भरता 23 प्रतिशत बढ़ी है। एपीआई पर लो-प्राफिट मार्जिन के कारण भारतीय फार्मा इन्डस्ट्री एपीआई का आयात कर यहां दवा बनाकर दूसरे देशों को निर्यात करती है। अमरीकी बाजार को ड्रग्स आपूर्ति करने वाली 12 प्रतिशत मैन्युफैक्चरिंग साइट्स भारत में हैं और भारतीय कम्पनियों का एपीआई स्टाक अब समाप्त हो गया है। दवा उद्योग के साथ-साथ यही स्थिति लगभग सभी अन्य कम्पनियों की भी है। चीन के वुहान शहर में, जहां से कोरोना का संक्रमण फैला, वहां की एक करोड़ से ज्यादा अन्तरराष्ट्रीय कम्पनियों में शटडाउन चल रहा है।

कोरोना वायरस संक्रमण के कारण देश की आर्थिक हालत बरबादी के कगार पर पहुंच चुकी है। लाॅकडाउन से भारतीय अर्थव्यवस्था में 100 अरब डालर के नुकसान की सम्भावना है। देश के मूर्धन्य अर्थशास्त्री प्रोफेसर वी. उपाध्याय के अनुसार विमुद्रीकरण के बाद से ही भारतीय अर्थव्यवस्था हिचकोले खा रही है। ऊपर से कोरोना वायरस संक्रमण से उत्पन्न हालात को अदूरदर्शी तरीके से (हैंडल करने) निबटने का नतीजा यह निकलेगा कि 5 ट्रिलियन डालर की इकोनाॅमी का सपना त्रासदी में बदल जाएगा, यदि अभी भी सरकार ने ठोस और उचित कदम नहीं उठाए।

प्रो. उपाध्याय कहते हैं कि वर्ष 2020 का अप्रैल महीना पूरी तरह लाॅकडाउन में गुजरने के बाद बुनियादी स्तर पर उत्पादन लगभग बरबाद हो जाने की वजह से आमदनी चवन्नी भी नहीं रह गई है। आगे यदि सरकार ने उत्पादन बढ़ाने को लेकर यदि कोई पहल नहीं की तो विकास दर नकारात्मक होगी। हमने पश्चिमी देशों में अमरीका-ब्रिटेन को फाॅलो किया लेकिन यदि हम पड़ोसी देश पाकिस्तान को ही फाॅलो कर लेते तो अपनी अर्थव्यवस्था को बचा सकते थे। स्थिति इतनी गम्भीर है कि सरकार अपने 1.70 लाख करोड़ के पैकेज के बाद अब दूसरे पैकेज जारी करने की सोच रही है।

भारत में लाॅकडाउन की वजह से अनुमान है कि नौकरियां 50 फीसद कम हो जाएंगी और विकास दर विगत 30 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाएगी। क्रेडिट रेटिंग एजेन्सी ‘‘फिच रेटिंग्स’’ ने भी भारत के वृद्धि अनुमान को घटाकर 5.1 प्रतिशत कर दिया है। उल्लेखनीय है कि इस दौरान सरकार की कमाई यानी जीएसटी कलेक्शन घटकर आधी रह गई है। देश के छोटे मझोले किसान और मजदूर (जिनकी संख्या लगभग 40 करोड़ है) देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। इस कोरोना वायरस संक्रमण संकट से निबटने के मोदी सरकार के तरीके ने देश की अर्थव्यवस्था की इस रीढ़ को ही तोड़कर रख दिया है।

जाने-माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज की मानें तो देश के मजदूर और किसान इस दौर में जिस संकट से गुजर रहे हैं वह त्रासद है। लालची मध्यवर्ग ने उन्हें जिस तरीके से कोरोना वायरस संक्रमण के नाम पर शहर से बाहर जाने को मजबूर कर दिया उससे भी यह आशंका है कि वे पूरी तरह शहर नहीं लौट पाएं मतलब शहरी उद्योग धन्धों में 50 से 60 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है।

लेखक जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त चिकित्सक हैं। अगले हफ़्ते पढ़ेंः “कोरोना संक्रमण की ओट में उपेक्षित दूसरे गम्भीर रोग” 


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