2002 में गुजरात की साम्प्रदायिक हिंसा में बिलकिस बानो का सामूहिक बलात्कार हुआ, उसकी तीन साल की एक लड़की, गर्भ में पांच माह का बच्चा समेत परिवार के कुल 14 सदस्य मारे गए, मां और तीन बहनों के साथ भी बलात्कार हुआ। इस मामले में 2008 में 11 अभियुक्तों को सजा हुई। 2022 में स्वतंत्रता दिवस के दिन प्रधानमंत्री द्वारा लाल किले की प्रचीर से देशवासियों को महिलाओं के प्रति नजरिया बदलने की सीख देने के कुछ ही समय बाद गोधरा जिले की एक समिति ने 11 अपराधियों की सजा माफ कर दी और वे जेल से रिहा हो गए। उन्हें फूल मालाएं पहनाई गईं और लड्डू खिलाए गए। भारतीय जनता पार्टी के एक नेता ने उनकी रिहाई को जायज ठहराते हुए बताया कि उसमें से कुछ संस्कारी ब्राह्मण हैं।
हमने 26 सितम्बर से 4 अक्टूबर तक रंधीकपुर से अहमदाबाद तक की बिलकिस बानो से माफी मांगने के लिए एक पदयात्रा तय की थी। अभी हम 25 सितम्बर को गोधरा में ही थे कि रात साढ़े दस बजे जब स्थानीय सभासद हनीफ कलंदर के घर खाने के लिए गए थे हमें पुलिस ने छापा मार कर हिरासत में ले लिया। इतने पुलिसकर्मी व वाहन थे कि मानो किसी माफिया या खूंखार अपराधी को पकड़ने आए हों। हनीफ कलंदर के अलावा तनुश्री गंगोपाध्याय, नितेश गंगारमानी, डी. गोपालकृष्ण, नूरजहां दीवान, कौशरअली सैय्यद व मुझे गोधरा शहर के बी डीविजन थाने ले जाया गया। घर से ही जब हनीफ कलंदर व नूरजहां दीवान ने बिलकिस बानो के पक्ष में नारे लगाने शुरू कर दिए तो आसपास से सैकड़ों युवा अपने घरों से निकल आए। हनीफ की लोकप्रियता इस बात से पता चलती है कि लोग अपनी अपनी मोटरसाइकिलों से पुलिस वाहनों के पीछे पीछे थाने भी पहुंच गए। थाने के बाहर इतनी भीड़ जमा हो गई कि कानून व व्यवस्था को खतरा पैदा हो गया। उस दिन पुलिस ने एक ही बुद्धिमानी का काम किया और हनीफ कलंदर को घर वापस जाने दिया। चूंकि शाम 6 बजे के बाद महिला को थाने नहीं लाया जा सकता इसलिए तनुश्री व नूरजहां को भी जाने दिया गया। हम शेष चार लोगों को व वकील नरेन्द्र परमार जिन्हें उनके घर से उठाया गया था को गोधरा शहर से बाहर 15 किलोमीटर कांकणपुर थाने पहुंचा दिया गया ताकि हम मीडिया से बात न कर पाएं जो लगातार थाने पर आ रही थी। रात भर थाने पर गुजारने के बाद हमें अगले दिन तीन बजे यह कह कर छोड़ा गया कि हम गोधरा नहीं जा सकते। हमने तय किया कि पंचमहल जिले, जिसका मुख्यालय गोधरा है, की सीमा से चलना शुरू करेंगे। यात्रा रोके जाने की वजह से मैंने अनशन शुरू कर दिया था। मैंने पुलिस निरीक्षक से कह दिया कि वे हमारी पदयात्रा रोक सकते हैं लेकिन बिलकिस बानो के साथ जो हुआ उसके लिए प्रायश्चित अनशन नहीं रोक सकते। जब हमें 26 सितम्बर को चलने दिया गया तो मैंने अनशन समाप्त कर दिया।
बिलकिस बानो के साथ जो हुआ उसका अपराध करने वालों को कोई अफसोस नहीं है और न ही सरकार को कोई फर्क पड़ता है। बिलकिस को अपने बलात्कारियों के साथ उसी इलाके में रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है। बिलकिस को अज्ञातवास में रहना पड़ रहा है और बलात्कारियों को फूल मालाएं पहनाईं जा रही हैं व लड्डू खिलाए जा रहे हैं। हम किस तरह का समाज बनाना चाह रहे हैं? जहां पीड़ित असुरक्षित हो और अपराधी बेखौफ घूमें? समाज का बहुसंख्यक वर्ग चुप है क्योंकि बिलकिस मुस्लिम है, लेकिन तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रे ने सही सवाल खड़ा किया है कि देश तय करे कि बिलकिस मुस्लिम है अथवा महिला? देश की हरेक महिला इस तरह के अत्याचार, कुछ कम, कुछ ज्यादा झेलती ही है। यदि हम बिलकिस के साथ हुए अन्याय पर बोलेंगे नहीं तो देश में महिला सुरक्षित नहीं रह सकती।
इसलिए मैंने तय किया कि चूंकि हमें बिलकिस से माफी मांगने के लिए पदयात्रा नहीं निकालने दी जा रही तो हम उसके साथ जो हुआ उसका प्रायश्चित करने के लिए अनशन करेंगे। नहीं तो समाज में नैतिक मूल्यों व उच्च आदर्शों को उलट पुलट कर रख दिया जाएगा और कोई सुरक्षित नहीं रह पाएगा। हमें सोचना पड़ेगा कि हम कैसे लोगों को अपने ऊपर शासन करने के लिए चुन रहे हैं जो हमें जंगल राज जैसे स्थिति में ले जा रहे हैं?
अभी हम पंचमहल और खेड़ा जिले की सीमा महीसागर नदी पार ही कर पाए थे कि देखा कि सामने सेवालिया थाने की पुलिस खड़ी है। दूसरी रात भी थाने पर बीती। इस बार हिरासत में दस लोग थे – तनुश्री गंगोपाध्याय, नितेश गंगारमानी, डी. गोपालकृष्ण, कौशरअली सैय्यद, राजेश्वर ब्रह्मभट्ट, कृष्णेन्दु चटर्जी, राजीव सिंह कुशवाहा, प्रवीण पटेल, हरेश रावल, व मैं। तनुश्री को चूंकि थाने पर नहीं रखा जा सकता था अतः उन्हें अहमदाबाद उनके घर पहुंचाने का निर्णय हुआ, किंतु पुलिस उन्हें अहमदाबाद के नाम पर एक स्थानीय होटल ले गई और रात उन्हें तीन महिला पुलिसकर्मियों की सुरक्षा में काटनी पड़ी। उस रात पुलिस पिछली रात से ज्यादा सजग थी और हम शौचालय भी जाते तो हम पर निगरानी रखती। अगले दिन सुबह तनुश्री को वापस थाने लाया गया। फिर अचानक हमें अहमदाबाद ले जाने का निर्णय लिया गया। दूसरे दिन पुनः यात्रा रोके जाने के कारण मैंने 27 सितम्बर को फिर से अनशन शुरू कर दिया।
इस तरह जो यात्रा 180 किलोमीटर व 9 दिनों में पूरी होनी थी वह करीब दो किलोमीटर चल कर व शेष दूरी पुलिस वाहनों में दो दिनों से भी कम में पूरी करा दी गई। अहमदाबाद में मुझे सार्वजनिक जगह पर अनशन करने की अनुमति नहीं मिली। गुजरात की राजधानी गांधीनगर के धरना स्थल सत्याग्रह छावनी गया तो वहां भी खुफिया विभाग के लोगों ने बिना अनुमति नहीं बैठने दिया। सत्याग्रह छावनी में कुछ गरीब लोगों की झुग्गियां पड़ी हुई हैं व कुछ खाने पीने के ठेले लगे हुए थे, लेकिन धरना एक भी नहीं चल रहा था। इसके दो ही मतलब हो सकते हैं। एक तो यह कि गुजरात में किसी को सरकार से कोई शिकायत ही नहीं है। दूसरा कि किसी को धरना करने ही नहीं दिया जाता और नागरिक अधिकार पूरी तरह से खत्म कर दिए गए हैं।
मैंने अनशन एक मित्र के घर पर रह कर पूरा किया व छठे दिन कोचरब आश्रम, जहां महात्मा गांधी साबरमती जाने से पहले रहते थे, पर मेरे साथ हिरासत में रहीं दो महिलाओं तनुश्री व नूरजहां के हाथों से फल का रस स्वीकार कर समाप्त किया।
महिला के सम्मान का संधर्ष जारी रहेगा। महिला दो ही स्थितियों में सुरक्षित रह सकती है। एक जब पुरुष का महिला को देखने का नजरिया सम्मानजनक हो, दूसरा जब महिला इतनी सशक्त हो जाए कि पुरुष को अपना शोषण ही न करने दे। समाज में ये दोनों प्रक्रियाएं चल रहीं हैं किंतु अत्यंत धीमी गति से। ज्यादातर महिलाएं अभी भी पितृसत्ता की गुलाम हैं और आए दिन घर के अंदर और बाहर हिंसा का शिकार होती हैं।
ऐसा कहा जाता है कि दुनिया में जितने किस्म की गैर बराबरियां हैं उनमें लैंगिक गैर बराबरी को खत्म करना सबसे मुश्किल काम है। इसीलिए शायद प्रखर समाजवादी चिंतक व राजनीतिज्ञ डॉ. राम मनोहर लोहिया ने अपनी सप्त क्रांति में नर नारी समता को सबसे ऊपर रखा है।
संदीप पाण्डेय सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के महासचिव हैं