इस साल शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित (संयुक्त रूप से) रूसी अखबार नोवाया गजेटा के सम्पादक दिमित्री मुरातोव ने यह सम्मान अपने उन पत्रकारों को समर्पित किया है जो जंग को कवर करते हुए मारे गए हैं। इस पुरस्कार की घोषणा का दिन दो संयोगों से घिरा हुआ था- पहला, नोवाया गजेटा की स्टाफ रहीं अन्ना पोलित्कोव्सकाया की हत्या की यह सोलहवीं बरसी थी और दूसरे, उनकी हत्या की जांच में राज्य की ओर से दंड की समयसीमा 7 अक्टूबर, 2021 को समाप्त हो गयी। आज तक पता नहीं चला कि अन्ना की हत्या किसने की और करवायी थी, हालांकि उनके साथियों और दुनिया भर के पत्रकारों का मानना है कि उनकी लिखी आखिरी स्टोरी हत्या का कारण बनी। यह स्टोरी अधूरी थी कि उन्हें मार दिया गया। 1999 से लगातार चेचन्या के मुद्दे पर पुतिन सरकार की साम्राज्यवादी नीतियों की सबसे प्रखर आलोचक रहीं पत्रकार अन्ना पोलित्कोव्सकाया की हत्या 7 अक्टूबर 2006 को भाड़े के कुछ हत्यारों ने मॉस्को में कर दी थी। इससे पहले कुछ वर्षों के दौरान रूसी खुफिया एजेंसी ने उनकी जान पर कई हमले करवाये थे। उनका यह आखिरी और अधूरा लेख 10 अक्टूबर को नोवाया गजेटा में प्रकाशित होने को था। ‘दी इंडिपेन्डेन्ट’ ने इसे 14 अक्टूबर 2006 को प्रकाशित किया था। नोवाया गजेटा ने इस स्टोरी में उठाये गए मामले की पड़ताल करने का संकल्प लिया था। आतंकवाद के नाम पर दुनिया भर में बीते दो दशक से चलाये जा रहे राजकीय आतंकवाद की निशानदेही इस स्टोरी में की जा सकती है, हालांकि 2006 से लेकर अब तक ऐसी कहानियां भारत में आम हो चुकी हैं जिसकी कीमत पत्रकारों को यहां भी चुकानी पड़ी है। हिंदी की लघु पत्रिका ‘समयांतर’ में इस स्टोरी का अनुवाद नवम्बर 2006 के अंक में प्रकाशित हुआ था जिसका अनुवाद अभिषेक श्रीवास्तव ने किया था। जनपथ के पाठकों के लिए 15 साल पुरानी अन्ना पोलित्कोव्सकाया की लिखी यह अधूरी स्टोरी एक बार फिर प्रस्तुत है, जिसके एवज में उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी लेकिन पंद्रह साल बाद जिसका सिला उनके सम्पादक के लिए नोबेल पुरस्कार के रूप में सामने आया है।
सम्पादक
दर्जनों फाइलें रोजाना मेरी डेस्क से होकर गुजरती हैं। इनमें उन लोगों के खिलाफ आपराधिक मामलों के दस्तावेज होते हैं जिन्हें ‘आतंकवाद’ के आरोप में जेल में कैद किया गया है या जिनके खिलाफ अब भी जांच चल रही है। सवाल उठता है कि मैंने यहां ‘आतंकवाद’ शब्द को कोट में क्यों दर्ज किया है?
केवल इसलिए कि अधिकारियों द्वारा इस हुजूम के बहुसंख्य लोगों को आतंकवादी ‘करार’ दिया जा चुका है। 2006 में हुए किसी भी आतंकवाद विरोधी संघर्ष की यह अनिवार्य परिणति है कि लोगों को इसी तरह आतंकवादी ‘करार’ दिया जाता रहा है। और इस कार्रवाई ने बदले की भावना रखने वाले उन लोगों को मौका दिया है कि वे तथाकथित संभावित आतंकवादियों के खिलाफ जहर उगल सकें।
अधिवक्ता और न्यायाधीश न तो कानून के मुताबिक ही काम कर रहे हैं, न ही दोषी को सजा देने में उनकी कोई दिलचस्पी है, बल्कि वे राजनैतिक आवश्यकताओं के मुताबिक इस प्रकार से काम कर रहे हैं कि क्रेमलिन की आतंकवाद विरोधी आंकड़ा सूची और बेहतर दिखे। ऐसा लगता है कि आपराधिक मामले बिल्कुल नूडल्स की तरह पक कर दो मिनट में तैयार हो रहे हैं। आतंकवादियों को छानने वाली इस सरकारी चलनी में ‘हृदयानुभूत आत्मस्वीकृतियां’ भूंसे की तरह एक ओर फेंक दी जाती हैं। बचते हैं तो बस आंकड़े उत्तरी कॅाकेशस (जहां चेचन्या स्थित है) में ‘आतंकवाद के खिलाफ युद्ध’ के।
आइए देखें कि चेचन्या के कुछ युवा आपराधिक आरोपितों की मांओं ने अपने सामूहिक पत्र में मुझे क्या लिखा थाः
चेचन्या के आपराधिक आरोपितों के लिए बनाये गये सुधार गृह (जहां संदिग्ध आतंकवादियों को रखा जाता है) मोटे तौर पर यातना के शिविरों में तब्दील होते जा रहे हैं। जातीय आधार पर उनके साथ भेदभाव किया जाता है। इनमें बहुसंख्य या कहें सभी को गढ़े गए सबूतों के आधार पर आरोपित किया गया है। कठिनतम परिस्थितियों में कैद और मनुष्य होने का अपमान झेल रहे इन लोगों के मन में हर चीज के प्रति घृणा घर कर गयी है। एक दिन ऐसा आएगा जब यह (पूर्व आरोपितों की) पूरी सेना सार्वजनिक जीवन में अपनी तबाह जिंदगियों के साथ वापस लौटेगी, उस वक्त उनकी अपने इर्द-गिर्द की दुनिया की समझ भी छिन्न-भिन्न हो चुकी होगी..।
मैं पूरी ईमानदारी से इस बात को स्वीकार करूंगी कि मुझे इस विद्वेष से भय होता है। मैं भयभीत हूं क्योंकि आज नहीं तो कल विद्वेष का यह बबूला खुले में फूट पड़ेगा। और तब, वे सारे युवा जो इस दुनिया से इतनी नफरत करते हैं, उनके लिए हर कोई बाहरी हो जाएगा।
आतंकवादी करार दिये जाने की पूरी कार्रवाई दो भिन्न मतों से सम्बद्ध सवाल खड़े करती है। क्या हम कानून का उपयोग गैरकानूनी गतिविधियों से लड़ने में कर रहे हैं? या हम ‘उनके’ गैरकानूनी होने की हद को खुद की ऐसी ही हद से नाप रहे हैं?
हाल ही में रूस के आग्रह पर उक्रेन ने बेसलान गदायेव को मॉस्को के हाथों में सौंप दिया। वह चेचन्या का नागरिक है और उसे अगस्त की शुरुआत में क्रीमिया में कुछ दस्तावेजों की जांच के दौरान गिरफ्तार किया गया था। वह वहां पर एक विस्थापित की भांति रह रहा था। 29 अगस्त को उसके द्वारा मुझे लिखी गयी चिट्ठी के कुछ अंश यों हैंः
‘‘उक्रेन से ग्रोज़्नी (चेचन्या की राजधानी) में प्रत्यर्पण के बाद मुझे पुलिस स्टेशन ले जाया गया और पूछा गया कि क्या मैंने अन्जोर सलीखोव के परिवार और अन्जोर के मित्र के परिजनों की हत्या की है? मैंने कसम खायी कि मैंने किसी की हत्या नहीं की है न ही किसी का खून बहाया है, चाहे वह रूसी हो या चेचन। पुलिसवाले ने पूरी निश्चितता से कहा- ‘नहीं, तुम हत्यारे हो’। मैंने फिर से मना किया।
”उन्होंने मुझे मारना शुरू कर दिया। पहले उन्होंने मेरी दायीं आंख के पास दो घूंसे जड़े। मैं संभल ही पाता कि उन्होंने मुझे बांध दिया और हथकड़ियां पहना दीं जो मेरे घुटनों के पीछे रखे धातु की छड़ से बंधी थीं। अब मैं हाथ नहीं हिला सकता था। इसके बाद उन्होंने उस धातु की छड़ के सहारे मुझे एक मीटर की ऊंचाई पर दो स्टूलों के बीच में लटका दिया। लटकाने के बाद मेरी पतली उंगलियों में उन्होंने बिजली का तार जोड़ दिया। उसके बाद मुझे बिजली के झटके दिये जाने लगे। बीच-बीच में वे अपनी मर्जी से जहां चाहते वहां रबड़ की बेंत से मुझे पीटते।
”मुझे याद नहीं कि यह सब कब तक चला, लेकिन दर्द की वजह से मुझ पर बेहोशी छाने लगी। यह देखकर उन्होंने पूछा कि क्या मैं बात करने को तैयार हूं? मैंने कहा कि मैं बोलूंगा, लेकिन मुझे ये नहीं पता कि मुझे किस बारे में बोलना है। मैंने उनसे कहा कि कुछ ही देर के लिए सही, वे मुझे प्रताड़ित करना बंद करें। उन्होंने मुझे नीचे उतारा, धातु की छड़ हटायी और दरवाजे से मुझे सटाकर कहा- ‘बोलो’।
”मैंने उनसे कहा कि मेरे पास कहने को कुछ नहीं है। इसका जवाब उन्होंने उसी धातु की छड़ से मेरी दायीं आंख के पास मार कर दिया जहां वे पहले ही मार चुके थे। उन्होंने दोबारा मुझे लटका दिया, पहले की ही तरह और पूरी प्रक्रिया को दोहराया। मुझे याद नहीं कि यह सब कब तक चला… वे लगातार मुझ पर पानी डालते रहे।
”दोपहर के खाने के वक्त सादे कपड़ों में एक पुलिसवाला मेरे पास आया और उसने मुझे बताया कि कुछ पत्रकार मुझे देखने आए हैं और मुझे यह स्वीकार करना है कि मैंने तीन हत्याएं और एक डकैती की है। उसने कहा कि यदि मैं इसके लिए तैयार नहीं हुआ तो वे प्रताड़ना की पूरी प्रक्रिया को दोहराएंगे और आखिरकार यौन प्रताड़ना देकर मुझे किसी न किसी तरीके से तोड़ ही देंगे। मैं तैयार हो गया। मैंने पत्रकारों को साक्षात्कार दिया और पुलिसवालों ने मेरे ऊपर दबाव डालकर मुझसे यह मंजूर करवाया कि मुझे जो चोटें आयी हैं वे उनसे बचकर भागने की कोशिश का नतीजा हैं…।’’
बेसलान गदायेव का बचाव करने वाले वकील ज़ौर ज़क्रीव ने एक मानवाधिकार संस्था मेमोरियल को सूचना दी कि उनके मुवक्किल को ग्रोज़्नी पुलिस बल के परिसर में ही शारीरिक और मनोवैज्ञानिक हिंसा का शिकार बनाया गया है।
ग्रोज़्नी की जेल नम्बर एक के मेडिकल वार्ड में जहां गदायेव डकैती के आरोपों के साथ पड़ा हुआ है, सिर्फ एक दस्तावेज उसके जख़्मों की कहानी विस्तार से बताता है। उसके वकील ज़क्रीव ने इन शिकायती दस्तावेजों को सरकारी वकील के पास भेज दिया है।