पिछले साल हमलोग लॉकडाउन के दौरान साफ आसमान की विरुदावलियां गा रहे थे। कभी नोएडा में नीलगाय दिख जाती थी और मुंबई में डॉल्फिन, मगर इस बार ऐसा नहीं है। इस बार हमने प्रदूषण फैलाने का अपना कारनामा जारी रखा है।
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल यमुना में प्रदूषण का स्तर पहले के मुकाबले और अधिक खराब हो गया है। मृत्यु के देवता यम की बहन यमुना जैविक रेगिस्तान बन गयी है और अब वहां पर उनके भाई का राज है।
सिर्फ नोएडा की बात करें तो यहां पर ऑक्सीजन शून्य है। एक छदाम ऑक्सीजन नहीं बचता वहां। यूपीपीसीबी के आंकड़े कहते हैं कि ‘यमुना बगैर घुली ऑक्सीजन के नोएडा में घुसती और उच्च स्तर के प्रदूषण के साथ शहर से बाहर निकल जाती है।‘
बिना घुली ऑक्सीजन के लिए पर्यावरणीय जार्गन है डिज़ॉल्व्ड ऑक्सीजन यानी डीओ।
Yamuna-River_260621यूपीपीसीबी की रिपोर्ट में औद्योगिक अपशिष्ट जैसे कठोर धातुओं की मात्रा, पारा, आर्सेनिक, सीसा वगैरह के आंकड़ों का उल्लेख नहीं है। राज्य प्रदूषण निकाय ने बुनियादी मानकों पर पानी का परीक्षण किया है जिसमें घुलनशील ऑक्सीजन (डीओ) और जैव-रासायनिक ऑक्सीजन की मांग (बीओडी) और प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक पाया गया।
आंकड़ों के अनुसार इस साल मई में गौतमबुद्ध नगर जिले (नोएडा) के प्रवेश बिंदु ओखला बैराज पर यमुना का घुलित ऑक्सीजन (डीओ) स्तर शून्य था। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि कोई भी जलीय जीव उस पानी में जीवित नहीं रह सकता। जिन वनस्पतियों को पानी में घुले ऑक्सीजन की जरूरत होती है, यह उनके लिए भी कब्रगाह है। वैसे बता देते हैं कि पानी में जीवन के लिए घुले हुए ऑक्सीजन की मात्रा हर लीटर में कम से कम 4 मिलीग्राम होनी चाहिए और और उस पानी को पीना हो तो श्रेणी ए का पेयजल होने के लिए मानक 6 मिलीग्राम प्रति लीटर है।
यूपीपीसीबी की रिपोर्ट के हिसाब से नोएडा में यमुना प्रदूषण के ‘ई’ श्रेणी में है, जहां पानी की कितनी भी सेवा कर ली जाए, पारंपरिक उपचार और कीटाणुशोधन कर दिया जाए, वह पेयजल नहीं हो सकता।
आवाज- द वॉयस में छपी एक खबर के मुताबिक- जिसमें साइट ने यूपीपीसीबी के क्षेत्रीय अधिकारी प्रवीण कुमार को उद्धृत किया है- शाहदरा नाले से ‘अनकैप्ड सीवेज’ यमुना की खराब स्थिति के लिए जिम्मेदार है।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया और दिल्ली विश्वविद्यालय के दो शोधार्थियों के रिसर्च के मुताबिक यमुना महज 16 मीटर चौड़ी और 1 मीटर गहरी रह गयी है जबकि सामान्य तौर पर इसकी गहराई औसतन साढ़े तीन मीटर और चौड़ाई 80 मीटर होनी चाहिए। ये आंकड़े मई के हैं।
बहरहाल, यमुना की धारा में उनके भाई यम का तांडव चल रहा है और यमुना नदी बगैर ऑक्सीजन के अपने भविष्य के सामने शून्य, जीरो, सिफर, निल, सन्नाटा और अंडा लिखा हुआ देख रही है।