ग्राम प्रधान से बदलाव की उम्मीद रखने वाला एक लड़का दूध लेने आया। दूधिया भैंस दूहने के कार्य में लगा हुआ था। दूध निकलने में समय था। लड़का मेरे पास आकर बैठ गया। बैठते ही वो प्रधान की शिकायत करने लगा। लड़का प्रधान को दोष दे रहा था पर राजनीति की चालों से अनभिज्ञ था।
जमीन बेचकर या आठ-दस लाख रुपए खर्च कर प्रधान बना आदमी पहले अपने चुनाव खर्च की वसूली करेगा। ‘उम्मीद पर दुनिया कायम है’ के अनुसार प्रधान बनने के बाद उसकी महत्वाकांक्षा बढ़ेगी। वो जिला पंचायत में जाने की तैयारी करेगा। जिला पंचायत का चुनाव लड़ने के खर्च की भी वसूली करेगा। अपना भविष्य सँवारने वाली वसूली करते-करते प्रधान का कार्यकाल खत्म हो जाएगा। फिर प्रधान गाँव और ग्रामीणों का वर्तमान कैसे सँवारे? चुनाव खर्च की वसूली जनता के नाम पर जारी होने वाले धन में से ही होती है।
लोकतंत्र में पूँजी का प्रभाव देख राजनीति चौंधिया गई है। वो योग्य, अयोग्य की पहचान ही नहीं कर पाती। स्वयंवर के दौरान पूँजी के गले में वरमाला डाल देती है। पति को परमेश्वर मान, पति के हर आदेश का अक्षरश: पालन करती है। भले ही पति कह दे- तुम आत्महत्या कर लो! तो वो आत्महत्या भी कर लेती है।
लड़का नहीं जानता था, साजिशन महँगा किया जा रहा चुनाव लोकतंत्र को पूँजीपतियों के हाथ में गिरवी रखने का खेल है। जो धनपति है, वही जनप्रतिनिधि भी बनेगा। जिसके पास मीडिया, होर्डिंग, शराब, वाहन खर्च के लिए अकूत धन हो, वही जनप्रतिनिधि बनेगा। भले ही वो वैचारिक रूप से कितना बड़ा दरिद्र क्यों न हो।
लड़का दूध लेकर चला गया। तब बछड़े ने मुझे अपने पास बुलाया। बछड़ा लड़के की शिकायत सुन रहा था। मैं बछड़े के पास पहुँचा। बछड़े ने कहा- मुझे प्रधानी का चुनाव लड़ा दो। मुझे लगा बछड़ा मजाक कर रहा है। मैंने कहा- तुम्हें कोई वोट नहीं देगा। बछड़ा बोला- वोट शराब और नोट को मिलता है। तुम भी आठ-दस लाख खर्च कर देना, मैं प्रधान बन जाऊँगा।
बछड़े द्वारा बताया गया चुनाव जीतने का नुस्खा सुन मैं समझ गया, बछड़ा मजाक के मूड में नहीं है।
मैंने कहा- तुम आदमी नहीं हो। तुम चुनाव नहीं लड़ सकते। मेरा कहा सुन बछड़ा हँसा- ही ही ही ही, फिर बोला- मेरे पास दिमाग नहीं है। मैं चोरी, बेईमानी करना नहीं जानता हूँ। ईमानदारी से अपना कार्य करना जानता हूँ। अगर कभी बेईमानी करने का मन हुआ तो अपने लिए एक मच्छरदानी खरीदूँगा। मच्छरों को अब आदमी का खून भी अच्छा नहीं लगता! जानवरों को काट रहे हैं।
बछड़ा आदम जाति का उपहास कर रहा था। मैंने अपमान का बदला लेने की सोची। बदले की भावना बड़ी-बड़ी मूर्खताओं को जन्म देती है। ऐसी ही एक मूर्खता का नाम है- दंगा। मूर्खों के बीच होने वाला संघर्ष हिंसक होता है। वैचारिक रूप में हो तो उन्मादी होता है।
बछड़े का उपहास करने के लिए मैंने कहा- तुम खूँटे से बँधे रहते हो। पढ़े-लिखे भी नहीं हो। तुम्हें कोई वोट नहीं देगा। कितने वोट बनाए हैं तुमने? बदले की भावना से उत्पन्न हुए मेरे मूर्खतापूर्ण विचार को सुन बछड़ा हँसा- ही ही ही ही, फिर बोला-महिला प्रधान भी तो पति नामक खूँटे से बँधी होती है। जनप्रतिनिधि बनने के लिए आड़ा-तिरछा दस्तखत बनाना सीखने वाले को तुम पढ़ा-लिखा मानते हो? तुम्हारे प्रधान का छोटा भाई भी प्रधानी का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा था। चुनाव लड़ने के लिए अपने भाई से लड़ पड़ा। दोनों के बीच सुलह-सपाटे की जुटान हुई। पंचों ने छोटे भाई से प्रधान बनने की योग्यता पूछी-कितने वोट बनाए हैं? छोटे भाई ने बताया- मैंने अब तक छिहत्तर शादी और इक्कीस तेरहवीं में पत्तल उठाए हैं। बड़े भाई साहब से तेरह शादी और पाँच तेरहवी अधिक। मेरे वोट उनसे अधिक है।
बछड़े द्वारा उम्मीदवारी की योग्यता की जंग का वर्णन सुन मैं मुस्कुराने लगा। हालाँकि पंचों ने बड़े भाई साहब को ही योग्य उम्मीदवार घोषित किया था। प्रधान बनने के बाद वे अधिकारियों की जूठन उठाते हैं। उनके खाने से जो बचता है, उसे गाँव की गली, खडंजे, सड़क आदि पर छिड़कते हैं। बछड़े ने अपनी उम्मीदवारी पर मुहर लगाई- जीत की इस योग्यता के अनुसार मेरे पास सबसे अधिक वोट हैं। मेरे गोबर से सैकड़ों घरों के चूल्हे जलते हैं। इतना कहकर बछड़ा हँसा- ही ही ही ही, फिर बोला- समझदारी और व्यवहारिकता डिग्री की मोहताज होती है, ये किस किताब में पढ़ लिया प्राणी श्रेष्ठ? मूर्खता भी डॉक्ट्रेट की डिग्री धारण कर सकती है। डॉक्ट्रेट धारण करने वाली मूर्खता सम्मानित भी की जाती है। उच्च शिक्षित मूर्खता का क्लास भी हाई होता है। हाई क्लास की मूर्खता गिनाऊँ तो तुम्हारी भावना आहत हो जाएगी। मेरी जान पर बन आएगी। मैं अनपढ़ हुआ तो क्या हुआ, खुर का निशान लगाना जानता हूँ। स्याही भी नहीं लगेगी, निशान अमिट होगा। कहो तो तुम्हारे पैर के पंजे पर खुर का निशान बनाकर ‘डेमो’ दूँ?
डेमो वाली बात चेतावनी थी- खुद को बहुत होशियार मत समझो। बदले की भावना के वशीभूत होकर मुझसे हुई मूर्खता का खंडन बछड़े से सुन मैंने आत्मसमर्पण करते हुए कहा- अगर तुम प्रधान बन गए तो मुझे क्या फायदा होगा?
बछड़ा तपाक से बोला- स्टिकरकाल में प्रधानपति होता है। सांसद/ विधायक/ महापौर/ पार्षद पुत्र होता है। वैसे ही तुम भी “प्रधान बछड़ा मालिक” का स्टिकर लगाकर घूमना। आदमी तो अब कुत्ते की नस्ल से पहचाना जा रहा है! बब्लू जर्मन शेफर्ड वाले। बब्लू बुलडॉग वाले। बब्लू पामेरियन वाले। आदमी की अपनी पहचान ही नहीं बची है! तुम भी अपने बछड़े के नाम से जाने जाओगे। बछड़े की बात सुन मैं स्टिकरकाल में प्रचलित विभिन्न प्रकार के स्टिकर के बारे में सोचने लगा।
एक गाड़ी के आगे स्टिकर लगा है- अध्यक्ष, इक्कीस सूत्रीय क्रियान्वयन समिति। गाड़ी के पीछे इक्कीस में से पांच-छ: सूत्रों का उल्लेख भी है। अध्यक्ष जी का एकसूत्रीय कार्यक्रम है- नेतागिरी, जिसके लिए इक्कीस सूत्र तैयार करने पड़े। एक गाड़ी के आगे स्टिकर लगा है- अध्यक्ष, अखिल भारतीय गोरक्षा आंदोलन वाहिनी। अध्यक्ष जी बीफ एक्सपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्य भी हैं। एक गाड़ी के आगे स्टिकर लगा है- अध्यक्ष, जल जंगल जमीन बचाओ दल। अध्यक्ष जी के घर जमीन खरीद-फरोख्त के खिलाड़ी दरबार लगाने आते हैं।
सरकार विज्ञापनों के माध्यम से बाघ बचाने की अपील करती है। कंक्रीट के जंगल में रहने वाला नागरिक बाघ बचाने में अपना योगदान कैसे दे? योगदान देने के लिए वो अपनी गाड़ी पर “सेव दी टाइगर” का स्टिकर लगा लेता है। सरकार कहती है-जल बचाएँ। तो वो अपनी गाड़ी पर “सेव वाटर” का स्टिकर लगा लेता है। भले ही प्रतिदिन गाड़ी धोते समय उस स्टिकर को हजारों लीटर पानी से नहलाता हो।
राष्ट्रपति, जिसके ऊपर तीनों सेनाओं का कमांडर होने का स्टिकर लगा है। राष्ट्रपति, कहने को देश का प्रथम नागरिक, तीनों सेनाओं का कमांडर, फिर भी ये पद उपहारस्वरूप या पार्टी के वफादार कार्यकर्ताओं को पारितोषिक के तौर पर या भविष्य की राजनीति साधने के लिए दिया जाता है। अच्छा, तो तुम प्रधानमंत्री बनना चाहते हो? चलो राष्ट्रपति बन जाओ। अच्छा, तो पार्टी के लिए किये गए त्याग के बदले तुम्हें कुछ नहीं मिला? चलो राष्ट्रपति बन जाओ। बीच-बीच में गैर-राजनीतिज्ञों को भी राष्ट्रपति बनाकर राष्ट्रपति पद की स्वायत्तता के भ्रम को बरकरार रखा जाता है।
राज्यपाल, जिसके ऊपर भी महामहिम का स्टिकर लगा है। लोकतंत्र के दंगल में राज्यपाल संकटकालीन जीव हो गया है। इस पद पर बैठने वालों ने पार्टी प्रवक्ता की तरह व्यवहार कर राज्यपाल को संकटकालीन जीव बनाने में पूरा सहयोग दिया है। इस जीव का यही हाल रहा तो जल्द ही इसके अवशेष आशोक रोड और अकबर रोड के नीचे मिलेंगे। साबरमती नदी के किनारे एक बाड़े में भी राज्यपाल नामक कई जीव कैद करके रखे गए हैं। वहाँ भी अवशेष मिल सकते हैं।
राज्यपाल नामक जीव की रक्षा कैसे हो? लोकतन्त्र के दंगल में राज्यपाल नामक जीव की रक्षा करने के लिए “सेव दी गवर्नर” नामक स्टिकर भी उपलब्ध है। राजनीतिक दलों ने “सेव दी गवर्नर” का स्टिकर लगाया हुआ है।
1947 में देश को अंग्रेजी उपनिवेश से आजादी मिली। जनता ने आजादी का जश्न मनाया। जनता आजादी के जश्न में डूबी थी, उसी दौरान ‘स्टेट’ के प्रतिनिधियों (जिन्हें जनता अपना प्रतिनिधि मानती है) ने देश पर लोकतंत्र का स्टिकर लगा दिया। स्टिकर को देख जनता ने कहा- “अहा, जनता का राज लागू हो गया।” अभी तक जनता जश्न मना रही है। जब कभी लोकतंत्र के साथ ‘वार्डरोब मालफंक्शन’ की दुर्घटना होती है, तब जनता को पता चलता है- अंत:पुर में अब भी राजाओं का शासन चल रहा है। जनता शोर मचाती है- लोकतंत्र का चीरहरण हो रहा है। प्रतिनिधि फटाफट नया स्टिकर चिपका देते हैं। सत्ता परिवर्तन से लोकतंत्र सुरक्षित हो जाता है।
प्रतिनिधि स्टेट का सबसे वफादार मैनेजर बनने के लिए एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं। आरोप-प्रत्यारोप के सहारे वे मैनेजर की कुर्सी पाते हैं। स्टेट का मैनेजर बनने के लिए होने वाले प्रतिनिधियों के आपसी संघर्ष में जनता बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना है। विदेशी उपनिवेश से मिली आजादी के बाद यहाँ के प्रतिनिधियों ने देश को अपना उपनिवेश बना लिया। जनता पर ‘देश आपके पैसों से ही चल रहा है’ का स्टिकर चिपका दिया। स्टिकर की आड़ में वे टैक्स से जनता का खून-पसीना खींच स्टेट की बगिया सींच रहे हैं। इस स्टिकर को पीठ पर लादे, माथे पर चिपकाए जनता बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना बनी हुई है। बेगानी शादी में अब्दुल्ला की दीवानगी कम होने लगती है, तब प्रतिनिधि कोई नया स्टंट दिखाते हैं। अब्दुल्ला के माथे पर नया स्टिकर चिपका देते हैं।
स्टिकर के बारे में सोच रहा था, इसी बीच बछड़े ने अपनी जीभ मेरे चेहरे पर फेर दी। लगा किसी सोते हुए के मुँह पर पानी का छींटा मार दिया गया हो। बछड़े से बच निकलने के लिए उसके पास से उठा तो बछड़े ने अपनी जीभ से मेरी पैंट पकड़ ली। मैं समझ गया- पूरा नंगा किए बिना जाने नहीं देगा।
मैं रुका। बछड़े का मुँह चला- और तो और, तुम प्रधान बछड़े के मालिक हो, जैसे ही ये खबर ब्रेकिंग बनेगी, तुम्हारी पूछ राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ जाएगी। गोरक्षा आंदोलन वाले और पशुपालक दल वाले तुम्हें गोद लेने के लिए लालायित हो उठेंगे। मुझे प्रधान बनाकर तुम राष्ट्रीय स्तर के नेता बन सकते हो। सोच लो!
बिना दिमाग के बछड़े की बातें सुन मेरा दिमाग चकरा रहा था। बछड़े की बातें सुन मैं सोचने लगा- बछड़े को प्रधान बना देना मेरे लिए फायदे का सौदा है। मैंने तय कर लिया- अगली बार बछड़े को प्रधानी का चुनाव लड़ाऊँगा।