भारत में कोरोना की दूसरी लहर के थमने के संकेत हैं लेकिन साथ ही तीसरी लहर की आशंका से देशवासियों में अब भी कोरोना वायरस संक्रमण का डर गया नहीं है। कई राज्य सरकारें अभी से तीसरी लहर से बचाव के एहतियात की कार्रवाई में जुट गयी हैं। दिल्ली में केजरीवाल की सरकार ने तो अतिरिक्त 5000 कोरोना वालन्टियर्स को प्रशिक्षित करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेन्सी रायटर्स की ओर से कराये गये एक विशेषज्ञ सर्वेक्षण में यह पाया गया है कि कोरोना वायरस संक्रमण की तीसरी लहर नवम्बर 2021 से फरवरी 2022 के मध्य आ सकती है। अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान, नई दिल्ली के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने भी माना है कि तीसरी लहर आएगी लेकिन टीकाकरण की वजह से यह दूसरी लहर की अपेक्षा ज्यादा नियंत्रित होगी।
अब सवाल है कि इस महामारी से जूझते हुए लगभग डेढ़ वर्ष के तजुर्बे के बाद भी क्या हम देश की जनता को यह आश्वासन दे सकते हैं कि हमारी सरकार एवं यहां की चिकित्सा व्यवस्था महामारी से जनता को बचाने एवं निबटने में सक्षम है?
कहा जा रहा है कि तीसरी लहर में यह महामारी बच्चों को निशाना बना सकती है। इसी दौरान बच्चों की सेहत पर काम करने वाली संस्था युनिसेफ का एक अलर्ट भी चर्चा में है। दक्षिण एशिया के लिए युनिसेफ की रीजनल डायरेक्टर जीन गैफ ने कहा है कि कोरोना काल में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर बढ़ने की पूरी सम्भावना है। युनिसेफ के अनुसार भारत को बाद पड़ोसी देश पाकिस्तान में मौतों का आंकड़ा सबसे ज्यादा रहने वाला है। इस दौरान अनुमान है कि भारत में तीन लाख, पाकिस्तान में 45 हजार, बांग्लादेश में 28 हजार, अफगानिस्तान में 13 हजार तथा नेपाल में 4 हजार बच्चों की जान जा सकती है। युनिसेफ ने आशंका व्यक्त की है कि कोरोना वायरस में लाकडाउन कर्फ्यू एवं परिवहन पर रोक के कारण लोग अपने बच्चों के साथ घर में हैं और वे स्वास्थ्य सुविधा केन्द्रों पर जांच के लिए नहीं जा रहे। इस दौरान टीकाकरण अभियान भी रोक दिया गया है। अस्पतालों में कोविड-19 के मरीजों के बढ़े बोझ के कारण बच्चों के इलाज पर असर पड़ा है। युनिसेफ के इस अनुमान अध्ययन को लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल ने प्रकाशित किया है।
PIIS0140673620314811देश में कोरोना वायरस संक्रमण की तीसरी लहर के मद्देनजर युनिसेफ का यह अध्ययन बेहद महत्वपूर्ण है। अध्ययन के आंकड़़े चौंकाने वाले हैं। दुनिया भर में 18 वर्ष से कम आयु के 77 फीसद (2.35 अरब में से 1.80 अरब बच्चे) मई की शुरूआत तक 132 देशों में कोविड-19 के कारण घर में रह रहे थे। लगभग 1.3 अरब (72 फीसद) छात्र 177 देशों में स्कूल बंदी के कारण घर में थे। 143 देशों में लगभग 37 करोड़़ बच्चे सामान्य रूप से दैनिक पोषण के लिए स्कूल से मिलने वाले भोजन पर निर्भर हैं जिसमें भारत में बच्चों की संख्या ज्यादा है। वे लॉकडाउन के दौरान इससे वंचित रहे। इसी दौरान कोई 11 करोड़ 70 लाख बच्चे नियमित टीकाकरण से भी चूक गए क्योंकि कोरोनाकाल में टीकाकरण कार्यक्रम को रोक दिया गया था। जाहिर है यह आंकड़ा भविष्य के लिए बेहद डरावना है और जब कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों के प्रभावित होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही हो तब तो यह ज्यादा खौफनाक है।
कोरोना की तीसरी लहर के मद्देनजर देश में केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों की तैयारी में कोई विशेष पहल तो दिख नहीं रही, उल्टे दहशत के बावजूद लोगों में लापरवाही एवं गैर-जिम्मेदारी के तमाम नजारे देखने को मिल रहे हैं। कोरोना से बचाव के एहतियात भी लोग भूलने लगे हैं। बाजार में भीड़ बढ़ी है और लोग बिना मास्क देखे जा रहे हैं। रेस्तरां एवं मॉल में भी रौनक लौटी है, लेकिन कोरोना की जानलेवा आशंका के बीच लापरवाही के साथ। जन स्वास्थ्य पर काम कर रहे जन संगठनों एवं स्थानीय प्रशासन की चेतावनी के बावजूद लोगों की लापरवाही हैरान करने वाली है। इसी दौरान देश के तीन बड़े अस्पतालों के चिकित्सकों का एक अध्ययन भी सामने आया है जिसमें कहा गया है कि कोरोना के असर के आठ बड़े कारणों में लोगों के शरीर में इम्युनिटी की कमी, तनाव, भय, मस्तिष्क व स्नायु विकार, चिकित्सकों की कमी आादि महत्वपूर्ण है। इसी अध्ययन में कहा गया है कि आधुनिक चिकित्सा की कोई भी पद्धति पूरी तरह कारगर नहीं है। ऐलोपैथी में केवल पद्धतियों के समन्वय की जरूरत है। इस अध्ययन में दिल्ली के एम्स की डॉ. बिन्दिया पाहुजा, फोर्टिस दिल्ली के डॉ. अमन गुप्ता एवं सफदरजंग अस्पताल, दिल्ली के डॉ. विजेन्द्र कंवर ने हिस्सा लिया था।
देश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के तेजी से फैलने की अहम वजह ‘‘डेल्टा वेरिएन्ट’’ को माना गया था। इस संक्रमण के डबलम्यूटेन्ट यानी वेरिएन्ट का पहला मामला महाराष्ट्र में ही देखा गया था। अब यदि देश में कोरोना संक्रमण के तीसरी लहर की आशंका जतायी जा रही है तो उसकी वजह नये वेरिएन्ट ‘‘डेल्टा प्लस’’ को माना जा रहा है। महाराष्ट्र सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने बताया था कि डेल्टा प्लस वेरिएन्ट से प्रभावित राज्य के छह जिले थे। इनमें रत्नागिरी तथा जलगांव में सबसे ज्यादा संक्रमित थे। साथ ही मुम्बई, पालघर, ठाणे तथा सिंधुदुर्ग में भी संक्रमितों का पता चला था। कोरोना वायरस संक्रमण के मामले में प्रत्येक नये वेरिएन्ट को खतरे के संकेत के रूप में देखा जाना चाहिए। दरअसल, कोविड-2019 एक आरएनए वायरस है लिहाजा इसकी म्यूटेट करने की क्षमता बहुत ज्यादा है। कई माइक्रोबायोलिजिस्ट कह रहे हैं कि डेल्टा वेरिएन्ट में काफी ज्यादा म्यूटेशन की वजह से नया डेल्टा प्लस वेरिएन्ट सामने आया है। डेल्टा प्लस वेरिएन्ट में पहले के सभी म्यूटेंशंस उपस्थित हैं।
कोरोना वायरस के डेल्टा वेरिएन्ट को इतना खतरनाक क्यों बताया जा रहा है? दरअसल यह नया स्वरूप डेल्टा प्लस (एवाई.1) भारत में सबसे पहले सामने आए डेल्टा (B.L.617-2) में म्यूटेशन से बना है। इसके अलावा Ku1N नाम का म्यूटेशन जो दक्षिण अफ्रीका में बीटा वेरिएन्ट में पाया गया था उससे भी इसके लक्षण मिलते हैं। इसलिए यह ज्यादा खतरनाक है। कुछ वायरोलॉजिस्टों की नजर में यह वेरिएन्ट अल्फा वेरिएन्ट की तुलना में 60 फीसद ज्यादा खतरनाक है। इस वेरिएन्ट से सम्बन्धित एक नकारात्मक खबर यह है कि डेल्टा प्लस वेरिएन्ट वैक्सीन और इम्यूनिटी दोनों को चकमा दे सकता है, हालांकि सरकार कह रही है कि कोरोना से बचाव की वैक्सीन कोविशील्ड तथा कोवैक्सीन डेल्टा प्लस वेरिएन्ट पर भी प्रभावी है। भारत के प्रसिद्ध विषाणु वैज्ञानिक तथा इंडियन सार्स-कोव-2 जीनोम सिक्वेसिंग कंसोर्टियम के पूर्व सदस्य प्रो. शाहिद जमील भी डेल्टा प्लस वेरिएन्ट को लेकर चिंतित हैं।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के टीकाकरण मामलों के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं एडवर्स इफेक्ट फॉलोइंग इम्यूनाइजेशन कमिटी (एईएफआइ) के सदस्य डॉ. एन. के. अरोड़ा कहते हैं कि तीसरी लहर की सम्भावना इस बात पर निर्भर करेगी कि हम कितनी गम्भीरता से कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हैं। डॉ. अरोड़ा के अनुसार कोरोना वायरस में म्यूटेशन और नयी लहर के लिए चार प्रमुख कारण हैं। यदि हम सावधान नहीं रहे तो संक्रमण की तीसरी लहर और ज्यादा मारक हो सकती है। पहला है वायरस का व्यवहार। दूसरा है अतिसंवेदनशील मेजबान (मरीज)। तीसरा है संक्रामकता (यानि यदि वायरस रूपांतरित होता है तो वह और अधिक संक्रामक हो जाता है। चौथा है अवसर- यदि हम वायरस को अपनी लापरवाही से मौका देते हैं कि वह तेजी से अपना प्रसार करे। इसलिए जरूरी है कि हम एहतियात बरतें और कोरोना वायरस संक्रमण को और घातक रूप में प्रसारित होने से रोकें।
मार्च 2020 से ही देश कोरोना संक्रमण से एक तरह से युद्ध लड़ रहा है, हालांकि जनवरी 2021 में वैक्सीन को लॉन्च कर इस युद्ध को काबू में करने की कोशिश की गयी है, फिर भी देखा गया है कि कोरोना वायरस मानवीय कमजोरी का फायदा उठाकर संक्रमण को फैला देता है। अभी इसके नये वेरिएन्ट ने जो कहर बरपाया वह तो दिल दहला देने वाला था। हालात इतने गम्भीर थे कि इसकी जांच व पहचान के लिए की जाने वाली आरटीपीसीआर जांच भी कामयाब नहीं थी। इसके लिए एचआरसीटी करना पड़ा। सरकारी वैज्ञानिक कोरोना की सम्भावित लहर को रोकने के लिए जल्द से जल्द टीकाकरण की बात पर जोर दे रहे हैं, हालांकि अब तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार टीके की दोनों खुराक ले चुके लोग भी बुरी तरह कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में आये हैं और काफी लोग तो अपनी जान गंवा चुके हैं। इस जानलेवा वायरस से कारगर तरीके से निबटने की रणनीति केवल सम्पूर्ण टीकाकरण से नहीं बनेगी। इसके लिए लोगों के जीवन में मूलभूत बदलाव, प्राकृतिक जीवनशैली, प्राकृतिक खान-पान, तनाव से मुक्ति आदि की भी बात करनी पड़ेगी।
कोरोना के अब तक के अनुभव यही बता रहे हैं कि चिकित्सा के निजी क्षेत्र ने जहां इस दौरान अकूत धन कमाया है वहीं बदहाल और जर्जर सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था ही आम लोगों के जीवन का सहारा थी। चिकित्सकों और चिकित्साकर्मियों में इस दौरान रोष भी देखा गया। कोरोना के प्रारम्भ (मार्च 2020) में अचानक किये लॉकडाउन की घोषणा के बाद हजारों लोग तो व्यवस्था ने मार दिये। आजीविका और भोजन के संकट की आशंका में करोड़ों लोगों ने जान गंवा दी। सरकार और प्रशासन की यह एक बड़ी विफलता थी, हालांकि इसी दौरान सरकार ने देश-विदेश से कई लोगों को विशेष रेल व विमान से देश वापसी करायी। गरीब जनता नोटबंदी के समय भी लाइन में लगकर मरी थी और कोरोना संकट में सरकार की अचानक लॉकडाउन के बाद रास्ते पर सैकड़ों मील पैदल चलते हुए भूखे मरी। देश भर में हजार से ज्यादा चिकित्सक एवं इससे कई गुना ज्यादा चिकित्साकर्मियों ने अपनी जान दे दी है। कोरोना संक्रमित लोगों के मरने का आंकड़ा विवादों में हैं। अनुमान है कि देश में 40-50 लाख लोग वर्ष 2020-21 में बीमारी से मर चुके हैं।
हम महामारियों के दौर में हैं। कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर या आगे की चुनौतियां कई कारणों से बड़ी हैं। इसलिए ईमानदारी से जन स्वास्थ्य की व्यवस्था को मजबूत और सभी नागरिकों को स्वास्थ्य के बुनियादी सुविधा की गारन्टी देनी होगी। इसकी जवावदेही भी तय करनी होगी। स्वास्थ्य के क्षेत्र को मुनाफे के बाजार से अलग करना होगा। सबको स्वास्थ्य की सरकारी व सामुदायिक गारन्टी देनी होगी तभी हम लोगों की जान बचा सकेंगे नहीं तो देश को अभी और लाखों लोगों की खौफनाक मौतों से गुजरना बाकी है। समय है, सरकार और अवाम सजग हो जाएं। कोरोना वायरस संक्रमण की तीसरी लहर के मद्देनर राष्ट्रीय स्तर पर सरकार को वर्षों से लम्बित हेल्थ रिफॉर्म को भी प्राथमिकता देनी चाहिए। दवा एवं वैक्सीन निर्माण की पर्याप्त उत्पादन क्षमता के साथ-साथ भारत में चिकित्सा उपकरण के निर्माण की जरूरत वर्षों से महसूस की जा रही है लेकिन आत्मनिर्भर भारत, स्टार्टप योजना आदि के बावजूद देश में चिकित्सा उपकरणों के निर्माण में कम्पनियों की रुचि नहीं विकसित हो पायी। इसकी वजह तलाश कर उसके समाधान की तरफ बढ़ने की जरूरत है। देश में विदेशों से पढ़कर लौटे लगभग 90 हजार डॉक्टर अब भी भारतीय चिकित्सा परिषद में निबन्धन के इन्तजार में हैं। निजीकरण की सीमाओं को जानते हुए भी सरकार स्वास्थ्य सेवाओं का लगातार निजीकरण किये जा रही है जो भविष्य में जन स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा हो सकता है।