राजा मेखल ने तय किया था कि उनकी बिटिया नर्मदा का ब्याह उसी से होगा जो गुलबकावली के दुर्लभ फूल लेकर आएगा. नर्मदा थी अनिंद्य सुंदरी. राजे-महाराजे, कुंवर-ज़मींदार सब थक गए, गुलबकावली का फूल खोज न पाए. पर एक था ऐसा बांका नौजवान, राजकुमार शोणभद्र, जिसने यह काम अंजाम देने का बीड़ा उठाया और वह ले आया गुलबकावली के दुर्लभ पुष्प.
ब्याह तय हो गया. अब तक नर्मदा ने शोणबद्र के रूप-गुण और जांबाज़ी के बारे में बहुत कुछ सुन लिया था. नर्मदा, शोण को मन ही मन चाहने लगी थी. शादी में कुछ दिन बाकी थे कि रहा न गया नर्मदा से. दासी जुहिला के हाथों शोणभद्र को संदेशा भिजवा ही दियाः ब्याह से पहले एक बार मिल तो लो.
शोणभद्र ने भी नर्मदा को देखा तो था नहीं, सो पहली मुलाकात में जुहिला को ही नर्मदा समझ बैठा. जुहिला की नीयत भी बांके शोण को देखकर डोल गई. उसने सच छिपा लिया, कहा, मैं ही हूं नर्मदा.
दासी जुहिला अब आए कि तब आए, नर्मदा का पल-पल पहाड़ की तरह कटे. दासी के आने में देरी हुई तो नर्मदा खुद चल पड़ी शोणभद्र से मिलने. वह पहुंची तो देखती क्या है, जुहिला और शोणभद्र प्रेमालिंगन में हैं. अपमान और गुस्से से भरी नर्मदा वहां से उल्टी दिशा में चल पड़ी, फिर कभी न लौटने के लिए.
शोण ने बहुतेरी माफी मांगी पर भी नर्मदा ने अपनी धारा नहीं बदली. आज भी जयसिंहनगर में गांव बरहा के पास जुहिला नदी को दूषित नदी माना जाता है और सोन से इसका बाएं तट पर दशरथ घाट पर संगम होता है. वहीं नर्मदा उल्टी दिशा में बह रही होती है. अब भी शोण के प्रेम में, पर अकेली और कुंवारी…
वही नर्मदा एक बार फिर अकेली पड़ गई है. इस बार उसे शोणभद्र ने नहीं, उसकी अपनी संतानों, इंसानों ने धोखा दिया है.
लगातार होते रेत खनन, नदियों के पास ताबड़तोड़ कथित विकास परियोजनाओं और बांध बनाए जाने और इसके जलागम क्षेत्र में जंगल का अबाध कटाई ने नर्मदा को बहुत बीमार बना दिया है.
पिछली गर्मियों में नर्मदा का जलस्तर तो इतना गिर गया था कि कोई पांव-पैदल भी नदी को पार कर सकता था. इस नदी को नदी-जोड़ परियोजना ने भी काफी नुक्सान पहुंचाया है.
वनों के लिए मशहूर मध्य प्रदेश में असलियत यह है कि जंगल का इलाका काफी सिकुड़ गया है और आंकड़े इसकी तस्दीक भी करते हैं. 2017 की भारत सरकार के वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट बताती है कि मध्य प्रदेश में 1991 में जंगल का इलाका 1.35 लाख वर्ग किमी था जो 2011 में घटकर 77,700 वर्ग किमी रह गया. इसमें अगले चार साल में और कमी आई और 2015 में यह घटकर 77,462 वर्ग किमी हो गया. 2017 में सूबे में वन भूमि 77,414 वर्ग किमी रहा. जाहिर है, तेजी से खत्म होते जंगलों की वजह से नर्मदा के जलभर (एक्विफर) भरने वाले सोते खत्म होते चले जा रहे हैं.
2018 में नर्मदा की धारा कई जगहों पर सूख गई थी. नर्मदा प्रायद्वीपीय भारत की सबसे बड़ी नदियों में से एक है और मध्य प्रदेश के अमरकंटक से निकलती है. इस नदी पर बने छह बड़े बांधों ने इसके जीवन पर संकट पैदा कर दिया है. छह ही क्यों, नर्मदा घाटी विकास परियोजना के तहत 30 बड़े और 135 मझोले बांध हैं.
वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआइ) की एक रिपोर्ट में इसे दुनिया की उन छह नदियों में रखा है जिसके सामने अस्तित्व का संकट आन खड़ा हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में तो इस नदी में जल का ऐसा संकट आ खड़ा हुआ था कि गुजरात सरकार ने सरदार सरोवर बांध से सिंचाई के लिए पानी लेने पर भी बंदिश लगा दी थी. जानकार बताते हैं, इस नदी के बेसिन पर बहुत अधिक दबाव बन रहा है और बढ़ती आबादी की विकासात्मक जरूरतें पूरी करने के लिहाज का नर्मदा का पानी कम पड़ता जा रहा है.
एसएएनडीआरपी वेबसाइट पर परिणीता दांडेकर लिखती हैं कि महेश्वर बांध पर उन्हें ऐसे लोग मिले जो कहते हैं कि अगर जमीन के बदले जमीन दी जाती है, मकान के बदले मकान, तो नदी के बदले नदी भी दी जानी चाहिए.
नर्मदा ही नहीं, तमाम नदियों के अस्तित्व पर आए संकट का सीधा असर तो मछुआरा समुदाय पर पड़ता है. उन्हें कोई मुआवजा नहीं मिलता, कोई पुनर्वास नहीं होता, उनके लिए किसी पैकेज का प्रावधान नहीं. रोजगार नहीं.
नर्मदा पर बांध बनने के बाद से मछली की कई नस्लें विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई हैं. झींगे तो बचे ही नहीं. गेगवा, बाम (ईल) और महशीर की आबादी में खतरनाक तरीके से कमी आई है.
न्यूज वेबसाइट ‘फर्स्टपोस्ट’ में प्रकाशित एक ख़बर में आइआइटी दिल्ली के शोध छात्र के हवाले से एक आंकड़ा दिया गया है जिसके मुताबिक, मध्य प्रदेश में नर्मदा की 41 सहायक नदियां अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं.
शोणभद्र से रूठी नर्मदा का आंचल खनन और वनों की कटाई से तार-तार हो रहा है. डर है, मां रेवा कहीं अपनी संतानों से सदा के लिए न रूठ जाए.