हो सकता है कि आप यह लेख अपने स्मार्ट फोन पर पढ़ रहे हों. आपके पास दूसरा विकल्प है कि आप इसे अपने लैपटॉप या डेस्कटॉप पर पढ़ें. पर क्या आपने कभी सोचा भी है कि आपके इस स्मार्टफोन या कंप्यूटर की वजह से मैदानी भारत की एक अहम नदी रामगंगा की सांसें थम रही हैं? आपको लग रहा होगा कि क्या बेपर की बात है… भला स्मार्ट फोन का नदी के प्रदूषण से क्या रिश्ता?
रिश्ता है. सोचिए जरा कि आखिर आपका मोबाइल फोन या टीवी का रिमोट, कंप्यूटर या घर का कोई इलेक्ट्रॉनिक सामान खराब हो जाए, पुराना हो जाए तो आप उसका क्या करते हैं? जाहिर है, हम उसे कबाड़ी वाले को दे देते हैं. देश भर में हम सबके घरों से निकले इस ई-कचरे का पचास फीसद हिस्सा उत्तर प्रदेश के शहर मुरादाबाद पहुंच जाता है. वही शहर जो कभी, पीतल के बर्तनों के लिए मशहूर था. अब यह शहर भारत के ई-कचरे का सबसे बड़ा कबाड़खाना है और इसका बुरा असर पड़ रहा है इसके बगल से बह रही बदकिस्मत नदी रामगंगा पर.
गंगा नदी की बड़ी सहायक नदियों में से एक है रामगंगा, जो उद्गम स्थल से दो अलग धाराओं के रूप में शुरू होती है. तब इसे पूर्वी रामगंगा और पश्चिमी रामगंगा कहते हैं और पहाड़ों से उतरकर यह मैदानों तक बहती आती है.
पश्चिमी रामगंगा उत्तराखंड में गैरसैंण के पास निचले हिमालय के दूधा-टोली श्रेणी से निकलती है. यह पटाली दून से होती हुई निचले शिवालिक में उतरती है और मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, बदायूं और शाहजहांपुर जिलों में बहती हुई फर्रुखाबाद के पास गंगा में मिल जाती है. मार्छूला के पास यह कॉर्बेट नेशनल पार्क में प्रवेश करती है. जंगल में करीब 40 किमी तक इसका बहाव होता है और कालागढ़ के पास यह जंगलों से निकलकर मैदानी स्वरूप में आ जाती है.
जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के लिए यह एक बढ़िया बारहमासी स्रोत है. रामगंगा की प्रमुख सहायक धाराएं पलैन, मंडल और सोनानदी है जो जंगल के भीतर ही इसमें जाकर मिल जाती हैं. इसके बेसिन का आकार करीबन 30.6 हजार वर्ग किमी है और इसकी लंबाई 569 किमी है.
पूर्वी रामगंगा नंदाकोट पहाड़ के नामिक ग्लेशियर से निकलती है. यह पिथौरागढ़ जिले में है और वहां से यह पूर्व की तरफ बहती है. रामेश्वर घाट पर यह जाकर सरजू नदी में मिल जाती है, वहां के बाद इस नदी का नाम सरयू पड़ जाता है, जो आगे चलकर काली नदी में समाहित हो जाती है. काली नदी खुद कुमायूं श्रेणी के मिलम ग्लेशियर से निकलती है और यह नदी भी फर्रुखाबाद के पास गंगा में मिल जाती है.
कालागढ़ बांध तक रामगंगा नदी के पानी में कोई दिक्कत नजर नहीं आती. इसके पानी में सैकड़ों नस्ल की मछलियां पायी जाती हैं. इसके अलावा अनोखे किस्म के और भी जीव पाये जाते हैं. कालागढ़ के डाउनस्ट्रीम के बाद से रामगंगा का डाउनफॉल शुरू हो जाता है. कालागढ़ से इसके पानी को सिंचाई के लिए खींचा जाने लगता है और इसकी धारा मुरादाबाद और उसके बाद से पतली और बीमार नजर आने लगती है. घरेलू अपशिष्ट और औद्योगिक गंदगी उत्तराखंड और पूरे यूपी में इसमें गिरायी जाती है.
इस नदी के किनारे बढ़ती आबादी और उद्योगों की संख्या ने नदी की हालत पतली कर दी है. आइआइटी, रुड़की के वैज्ञानिकों ने नदी की सेहत का एक अध्ययन किया है. इन्होंने नदी के 16 साइट्स पर पानी के नमूनों का अध्ययन किया है और हर सीजन में पानी की जांच की. अध्ययन में निष्कर्ष निकला कि रामगंगा नदी अपनी निचली धारा में बहुत अधिक प्रदूषित है. इस प्रदूषण में फ्लोराइड, क्लोराइड, सोडियम, मैग्नीशियम और कैल्सियम जैसे तत्वों के यौगिकों की मात्रा काफी अधिक है.
समस्या की असली जड़ मुरादाबाद शहर का कबाड़ उद्योग है.
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मुरादाबाद रामगंगा के किनारे बसा है और यह ई-कचरे की रीसाइक्लिंग के लिए भी जाना जाता है. गैर-सरकारी संस्था सेंटर फॉर साइंस ऐंड इनवॉयर्नमेंट (सीएसई) ने मुरादाबाद के ई-कचरे के अध्ययन के बाद निष्कर्ष निकाला है कि इनमें भारी धातु का प्रदूषण का स्तर का काफी ऊंचा है. सीएसई ने नदी के किनारे मिट्टी और पानी के नमूने लिए क्योंकि शहर के लोग इस पानी का इस्तेमाल कपड़े धोने और पीने के लिए भी करते हैं.
वैसे, भारत में मिट्टी में भारी धातुओं के प्रदूषण के स्तर के मापन के लिए कोई मानक अभी तक तय नहीं किया गया है. ऐसे में सीएसई ने जांच के नतीजों की तुलना अमेरिकी और कनाडाई मानकों से की. इन नमूनों में तय मानकों से 15 गुना अधिक जिंक पाया गया जबकि तांबे का स्तर 5 गुना अधिक था. मिट्टी के नमूने में क्रोमियम (कैंसरकारक तत्व) भी कनाडाई मानकों के मुकाबले तीन गुना अधिक था जबकि कैडमियम का स्तर 1.3 गुना अधिक था.
यह नतीजे पानी के नमूनों में भी समान निकले. रामगंगा के पानी में पारे का स्तर भारतीय मानकों से आठ गुना अधिक है. पानी के नमूनों में आर्सेनिक भी मिला है. यह सब नमूने नवाबपुरा, करूला, दसवाघाट और रहमत नगर से लिए गये थे. यह वही जगहें हैं जहां ई-कचरे का कामकाज होता है.
प्रशासन का मानना भी है कि देश में कुल प्रिंटेड सर्किट बोर्ड (पीसीबी) का पचास फीसदी मुरादाबाद में आकर जमा होता है और रोजाना शहर में ई-कचरे की 9 टन मात्रा जमा हो जाती है.
रामगंगा के घाटों पर ई-कचरे के रीसाइक्लिंग की गतिविधियों से न सिर्फ गैस रिलीज होती है बल्कि एसिड सोल्यूशन, जहरीला दुआं और राख भी निकलती है. इनमें भारी धातु होते हैं जो पर्यावरण के लिए काफी खतरनाक हैं. इनसे कैंसर होने का खतरा होता है. ई-कचरे से निकले रसायन जमीन में चले जाते हैं और इस तरह मिट्टी और भूमिगत जल को प्रदूषित कर देते हैं.
असल में, पारा और आर्सेनिक इंसानी सेहत के नजरिये से काफी जहरीले तत्व होते हैं. पारा अगर खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जाय, जाहिर है जलीय जीवों और मछलियों के जरिये, तो इंसानी मस्तिष्क के कामकाज करने पर बुरा असर डालता है. इससे तंत्रिका तंत्र भी प्रभावित होता है. इनसे होने वाली बीमारियों का इलाज अभी पूरी तरह मुमकिन नहीं हो पाया है.
जानकार कहते हैं कि इस इलाके में रहे वाले लोगों में खासतौर पर पीसीबी को डिसमैंटल करने वाले लोगों में सांस लेने की परेशानियों में इजाफा हुआ है. अमूमन गरीब लोग ऐसी तकलीफों में डॉक्टरी मदद लेने नहीं पहुंचते इसलिए कितने लोगों पर असर हुआ है इसका विश्वसनीय आंकड़ा उपलब्ध नहीं है.
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि ई-कचरे का यह काम अधिकतर अवैध है जहां किसी किस्म के सुरक्षा मानकों का भी पालन नहीं किया जाता, इसलिए यह समस्या कहीं अधिक घातक है. मानकों का पालन नहीं करने की वजह से भारी धातुओं का आधा हिस्सा कचरे से निकाला नहीं जा सकता और उससे ई-प्रदूषण फैल रहा है.
हाल ही में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश सरकार पर ई-कचरे के समाधान में उचित कार्रवाई न करने के एवज में 10 लाख रूपये का जुर्माना ठोंका है. इसका असर क्या होगा यह देखना बाकी है. फिलहाल, रामगंगा में ई-कचरे की वजह से जमा हो रहे भारी धातुओं ने खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करना शुरू कर दिया है. इसके घातक परिणाम दिखने शुरू हो गये हैं. इससे पहले कि मामला हाथ से निकल जाय, गंगा की इस सहायक नदी की सेहत पर ध्यान देना जरूरी है.
रामगंगा को साफ नहीं किया तो गंगा कभी साफ नहीं होगी.
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