कल झारखंड के किसी कस्बे में रह रहे मेरे एक इंस्टाग्राम मित्र ने चिंतित होकर मुझसे पूछा कि दिल्ली में बाढ़ के क्या हालात हैं। मैं वाकई चौंक गया था- बाढ़? दिल्ली में? मैंने उनको बस इतना कहा- दिल्ली में बाढ़ आयी है सो आपको कैसे पता चला? उन्होंने फटाकदेनी से कहा, टीवी पर दिखा रहे।
हां, टीवी वाले दिखा रहे हैं कि यमुना में बाढ़ है। आप भी अगर टेलिविज़न पर खबरें देखते हैं तो हहाती हुई यमुना का दृश्य जरूर देख रहे होंगे। बिला शक, इन दिनों यमुना का यौवन देखने लायक है। पर खबरची दिल्ली को डराने की कोशिश कर रहे हैं। बाढ़ का संकट बताया जा रहा है। नदियों में बाढ़ क्या कोई अघट जैसी घटना है? यह तो बहुत प्राकृतिक है। हर नदी में बाढ़ आती है और आनी भी चाहिए। कई लोग ताज्जुब कर रहे हैं दिल्ली में बाढ़ क्यों जबकि बाढ़ लाने लायक बारिश भी नहीं हुई।
ऐसा कहने वाले लोग न तो नदियों के स्वभाव को जानते हैं न नदीतंत्र को। ‘कैचमेंट’ और ‘नदी बेसिन’ जैसे शब्दों से अनजान लोग यमुना पर बने लोहे को पुल को यमुना के पानी घटने-बढ़ने का आधार बताते हैं।
दिल्ली में रहने वाले या कभी यमुना को पार करने वाले लोग उसे रोज़ाना देखते होंगे, उसके काले गंधाते पानी पर हाय-हाय करते होंगे। पूरी दिल्ली में आपको यमुना में कभी भी साफ पानी नहीं दिखता होगा। बस, दिल्ली से पहले वजीराबाद बराज ही वह जगह है जहां पर यमुना का पानी काला नहीं होता, लेकिन वहां तो हम यमुना का करीबन सारा पानी रोक लेते हैं और उसके आगे जो पानी हमें दिखता है वह दिल्ली का सीवर है। उद्योगों और घरों का गंदा प्रदूषित पानी, जो बिना ट्रीटमेंट के सीधे उसमें गिराया जाता है।
यमुना नदी की बदहाली वजीराबाद से ही शुरू हो जाती है। दिल्ली में वजीराबाद से ओखला बैराज के बीच की यह दूरी, दुनिया में किसी भी नदी की तुलना में यमुना के लिए सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। इसी हिस्से में यमुना सबसे अधिक प्रदूषित है।
आखिर यमुना को यूं ही वैज्ञानिक ‘जैविक रेगिस्तान’ नहीं कहते। इसे भारत की सर्वाधिक प्रदूषित नदी का शर्मनाक दर्जा मिला हुआ है। इसके पानी में नाइट्रोजन, पोटेशियम, फास्फोरस और बायोमाइडस जैसे कृषि रसायन की मौजूदगी में पिछले 25 वर्षों में चार गुना वृद्धि हुई है। देहरादून, यमुना नगर, करनाल, सोनीपत, पानीपत, दिल्ली, फरीदाबाद, वल्लभगढ़, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बागपत, गाजियाबाद, नोएडा, मथुरा और आगरा घरेलू और औद्योगिक कचरा सीधे यमुना में गिराते हैं। अनुमान है कि हरियाणा के 22, दिल्ली की 42 और उत्तर प्रदेश की 17 फैक्टरियां यमुना में सीधे तरल कचरा बहाती हैं।
इसी हिस्से में आकर यमुना सिकुड़कर डेढ़ से तीन किलोमीटर चौड़ी रह जाती है। यमुना पर किये गए कई शोधों में से एक शोध कहता है कि गर्मियों में इसकी गहराई भी करीबन एक मीटर और चौड़ाई महज 80 मीटर रह जाती है। अभी जिस धारा को देखकर आपको बाढ़ की धमकी दी जा रही है, गर्मी में यमुना उसका महज 16 फीसद ही रह जाती है।
यमुना को दिल्ली ने मौत दी है और उसमें भी सबसे अधिक चुनौती सरकारी एजेंसियों से मिली है। 100 एकड़ पर शास्त्री पार्क मेट्रो, 100 एकड़ में यमुना खादर आइटीओ मेट्रो, 100 एकड़ में खेलगांव और उससे जुड़े दूसरे निर्माण, 61 एकड़ में इन्द्रपस्थ बस डिपो और 100 एकड़ में बनाया अक्षरधाम। नगर निगम के नालों ने यमुना का आंचल रोजाना मैला करने का ठेका लिया हुआ है, सो अलग।
महरौली, वसन्त विहार से लेकर द्वारका तक की हरियाणा से सटी पट्टी साल भर त्राहि-त्राहि करती है। यही वह हिस्सा है, जिसने 1947 से 2010 के बीच नौ बाढ़ देखे हैं। 1947, 1964, 1977, 1978, 1988, 1995, 1998, 2008 और 2010 में। यमुना के पेटे में धड़ाधड़ निर्माण किये जा रहे हैं, यह भूलकर कि यमुना भ्रंश रेखा में बहती है और कभी भी भूकंप के तगड़े झटके लगे तो यह सब ठाठ धरा रह जाएगा।
केन्द्रीय जल आयोग का प्रस्ताव कहता है कि यमुना धारा के मध्य बिन्दु और एकतरफ के पुश्ते के बीच की दूरी कम-से-कम पांच किलोमीटर रहनी चाहिए। हकीकत यह है कि मेट्रो, खेलगांव, अक्षरधाम जैसे सारे निर्माण सुरक्षा से समझौता कर बनाये गए हैं।
पंचतत्व: आखिरकार सबसे बड़ी अदालत में यमुना की सुनवाई
पर्यावरण संरक्षण कानून 1986 की मंशा के मुताबिक, नदियों को ‘रिवर रेगुलेशन जोन’ के रूप में अधिसूचित कर सुरक्षित किया जाना चाहिए था। 2001-2002 में की गयी पहल के बावजूद पर्यावरण मंत्रालय आज तक ऐसा करने में अक्षम साबित हुआ है। बाढ़ क्षेत्र को ‘ग्राउंड वाटर सेंचुरी’ घोषित करने के केन्द्रीय भूजल आयोग के प्रस्ताव को हम कहां लागू कर सके?
यमुना जहां अभी बह रही है, यह उसी का रास्ता है। उफान मारते पानी को देखकर हम डर इसलिए रहे हैं क्योंकि हमने अवैध रूप से उसके पेटे में अपना घर बसा लिया है।
यमुना में बाढ़ से डरिए मत, इसी बहाने कुछ तो नदी में साफ पानी बहने दीजिए।
(कवर तस्वीर FW के ट्विटर से साभार)